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संसद पर हमले के आरोपी अफजल गुरु के समर्थन में नारेबाजी के मामले में जेएनयू स्टूडेंट यूनियन के अध्यक्ष कन्हैया कुमार पर राजद्रोह का मुकदमा दर्ज किया गया है।
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देशद्रोह का कानून 1870 में ब्रिटिश सरकार ले आई थी। उस वक्त महात्मा गांधी और बाल गंगाधर तिलक जैसे कई स्वतंत्रता सेनानियों पर इस कानून के तहत मामला चलाया गया था। भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और महात्मा गांधी आजाद भारत में इसे जारी रखने के पक्ष में नहीं थे। तस्वीर में जेएनयू छात्रसंघ नेता कन्हैया की गिरफ्तारी के विरोध में प्रदर्शन करते छात्र।
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पंडित जवाहर लाल नेहरू
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महात्मा गांधी ने राजद्रोह कानून के बारे में कहा था, 'राजनीति में बैठे अभिजात्य वर्ग ने आम नागरिकों की आजादी को दबाने के लिए इंडियन पीनल कोड में यह सेक्शन रखा है।'
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उच्चतम न्यायालय (सुप्रीम कोर्ट)
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पांचवां हाई-प्रोफाइल मामला है कन्हैया का केस: जवाहर लाल नेहरू (जेएनयू) स्टूडेंट यूनियन के अध्यक्ष 29 वर्षीय कन्हैया कुमार को 12 फरवरी को कैंपस में भारत विरोधी नारेबाजी करने के मामले में गिरफ्तार किया गया। अफजल गुरु के समर्थन में छात्रों की ओर से विरोध प्रदर्शन का आयोजन जेएनयू में किया गया था। कुछ छात्रों का कहना है कि प्रदर्शन का आयोजन कन्हैया कुमार ने नहीं किया था और न ही वह भारत विरोधी नारेबाजी कर रहे थे।
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असीम त्रिवेदी के केस में हुई थी सरकार की किरकिरी: युवा कार्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी पर सितंबर 2012 में राजद्रोह का मुकदमा दर्ज किया गया था। त्रिवेदी ने कार्टून में राष्ट्रीय चिन्ह इस्तेमाल किए थे और पार्लियामेंट को टॉयलेट के रूप में पेश किया था। हालांकि, अक्टूबर 2012 में महाराष्ट्र सरकार ने राजद्रोह का केस वापस ले लिया था।
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पाटीदार आरक्षण आंदोलन के नेता हार्दिक पटेल को सितंबर 2015 में गिरफ्तार किया गया था। पुलिस का दावा है कि उन्होंने अपनी मांगों को पूरा कराने के लिए सरकार पर दबाव बनाने के मकसद से लोगों को हिंसा के लिए उकसाया था। हार्दिक पटेल इस समय सूरत जेल में कैद हैं।
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एंटी न्यूक्लियर एक्टिविस्ट उदय कुमार पर सितंबर 2011 से लेकर दिसंबर 2011 तक राजद्रोह के कई मामले में दर्ज किए गए। कुडनकुलम परमाणु संयंत्र के विरोध के चलते उन पर यह मामला दर्ज किया गया था। 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार से राजद्रोह का मामला वापस लेने के लिए कहा था, जिससे सरकार ने इनकार कर दिया था।
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बिनायक सेन राजद्रोह के मामले में 2010 में उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने 2011 में उन्हें जमानत दी। माओवादियों की मदद करने पर उन्हें यह सजा सुनाई गई थी।
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मशहूर लेखिका अरुंधति रॉय पर भी राजद्रोह का मुकदमा दर्ज हो चुका है। उन्होंने कश्मीर और माओवदियों के समर्थन में बयान दिया था।
