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क्या आपने कभी सोचा है कि आपका कुत्ता भौंक कर, आपकी बिल्ली म्याऊं करके या कोई पक्षी चहचहाकर आखिर क्या कहना चाहता है? अक्सर हम अपने पालतू जानवरों के हाव-भाव, आवाजों और हरकतों से उनके मूड को समझने की कोशिश करते हैं, लेकिन हाल के वर्षों में एक नई प्रैक्टिस सामने आई है – एनिमल टेलीपैथी (Animal Telepathy)। (Photo Source: Pexels)
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एनिमल टेलीपैथी क्या है?
एनिमल टेलीपैथी एक पर्सनल और स्पिरिचुअल प्रैक्टिस है, जिसमें इंसान जानवरों से मानसिक स्तर पर जुड़ने की कोशिश करता है। इस प्रक्रिया में इंसान जान पाता है कि उनका पालतू क्या महसूस कर रहा है, क्या सोच रहा है और क्या शेयर करना चाहता है। (Photo Source: Pexels) -
दिल्ली की एनिमल टेलीपैथी इंस्ट्रक्टर तनवीर पनेसर ने हमारे सहयोगी इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत के दौरान बताया, “जब आप खुद को पूरी तरह किसी जानवर के सामने समर्पित कर देते हैं, तभी जादू होता है।” पनेसर पिछले दो सालों से कुत्तों, बिल्लियों, पक्षियों और घोड़ों पर यह तकनीक आजमा रही हैं। उनके मुताबिक, टेलीपैथी से पालतू और उनके मालिक के रिश्ते और मजबूत हो जाते हैं। (Photo Source: Pexels)
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गुमशुदा पेट्स को ढूंढने में मदद
तेलंगाना की शोभा कल्याणस्वामी ने इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत के दौरान बताया कि उनकी बिल्ली अचानक घर से गायब हो गई थी। कई दिनों तक तलाश के बाद भी न मिलने पर उन्होंने एनिमल टेलीपेथी का सहारा लिया और इसी माध्यम से उन्हें अपनी प्यारी बिल्ली वापस मिल पाई। (Photo Source: Pexels) -
इसी तरह, दिल्ली की आशा अरुण ने अपनी पहली टेलीपैथी से जुड़ी घटना शेयर की। वह बताती हैं कि एक बार उन्होंने उत्तराखंड में खोई हुई लैब्राडोर डॉग ‘मिया’ को टेलीपेथी के जरिए लोकेट करने में मदद की। टेलीपैथी के जरिए वह यह भी जान पाईं कि मिया ने कहां खाना खाया और रात में कहां सोई। (Photo Source: Pexels)
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मिया ने उन्हें उस इलाके की पहचान, एक दुकान और एक अधूरा निर्माण स्थल तक का ब्योरा दिया, जिसके आधार पर उसे सुरक्षित वापस लाया गया। अब तक आशा 60 से 80 खोए हुए जानवरों को ढूंढने में मदद कर चुकी हैं। (Photo Source: Pexels)
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कैसे होती है एनिमल टेलीपैथी?
आस्था अरुण का कहना है, “जानवर से जुड़ने के लिए ध्यान और मेडिटेशन के जरिए मन को शांत करना जरूरी है। इरादा तय करने के बाद शरीर खुद संवाद की दिशा में बढ़ता है। और हां, बातचीत खत्म करने के बाद जानवर को धन्यवाद कहना बहुत जरूरी है।” (Photo Source: Pexels) -
वहीं, मुंबई की एनिमल कम्युनिकेटर अक्षया कवले ने इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत के दौरान बताया , “टेलीपैथी दरअसल हमारी इंद्रियों का अनुभव है। इसमें न तो दूरी मायने रखती है और न ही भाषा।” हालांकि, उनका मानना है कि सबसे बड़ी चुनौती यह विश्वास करना है कि वास्तव में जानवर वही संदेश दे रहा है जो हमें मिल रहा है। (Photo Source: Pexels)
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पेट्स की पसंद-नापसंद समझना
तानवीर पनेसर का मानना है कि एनिमल टेलीपेथी न सिर्फ खोए हुए पालतुओं को ढूंढने में मदद करती है, बल्कि यह पालतू और मालिक के रिश्ते को भी गहरा करती है। कई बार पालतू अपने खाने, खेलने या आसपास के माहौल से जुड़ी पसंद-नापसंद इस माध्यम से बताता है, जिसे जानकर मालिक बदलाव करते हैं। (Photo Source: Pexels) -
ट्रेनिंग और वर्कशॉप
दिल्ली और मुंबई में कई एनिमल कम्युनिकेटर्स वर्कशॉप और ट्रेनिंग भी देते हैं। इनमें शुरुआती कोर्स की फीस 1200 रुपये से लेकर 4000 रुपये तक हो सकती है। इसमें ध्यान की तकनीक, जानवर से जुड़ने के तरीके और वास्तविक अनुभवों के दौरान मार्गदर्शन दिया जाता है। (Photo Source: Pexels) -
क्या कहती है साइंस?
हालांकि, वैज्ञानिक दृष्टिकोण से अभी तक इस प्रैक्टिस के अस्तित्व पर सहमति नहीं है। कई लोग इसे भ्रम या कल्पना मानते हैं। लेकिन प्रैक्टिशनर्स का कहना है कि यह कोई चमत्कार नहीं, बल्कि हर इंसान में छुपी एक जन्मजात क्षमता है, जिसे अभ्यास और विश्वास से मजबूत किया जा सकता है। (Photo Source: Pexels)
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