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क्या आपने कभी खुद से बुदबुदाते हुए कोई बात की है? अकेले में चलते-चलते कोई सवाल खुद से किया है या आईने में देखकर खुद को कुछ समझाया है? अगर हां, तो यह एक सामान्य प्रक्रिया है जिसे ‘सेल्फ-टॉक’ कहा जाता है। (Photo Source: Pexels)
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साइकोलॉजी यानी मनोविज्ञान की दुनिया में इसे एक बेहद प्रभावशाली और सकारात्मक तकनीक माना गया है, जो न सिर्फ आपके मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाती है, बल्कि आत्मविश्वास, निर्णय क्षमता और मोटिवेशन को भी बढ़ाती है। (Photo Source: Pexels)
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क्या है सेल्फ-टॉक?
सेल्फ-टॉक यानी खुद से बात करना। यह बातचीत कभी शब्दों में होती है, तो कभी सिर्फ विचारों के रूप में। मनोवैज्ञानिकों यानी साइकेट्रिस्ट्स के अनुसार, हमारे मस्तिष्क में एक आंतरिक आवाज होती है, जो हमें दिशा दिखाती है, फैसले लेने में मदद करती है और हमारी सोच को प्रभावित करती है। (Photo Source: Pexels) -
साइंस क्या कहता है?
द माइंड जर्नल और नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन के अनुसार, जो लोग खुद से बात करते हैं, उनका आईक्यू सामान्य से अधिक होता है। वे कंपलेक्स प्रॉब्लम्स को जल्दी सुलझा पाते हैं और खुद के व्यवहार को ज्यादा अच्छे से समझते हैं। (Photo Source: Pexels) -
वहीं, साइकेट्रिस्ट्स के अनुसार, हमारा दिमाग खुद से कही बातों की तस्वीर बनाता है और उसी के अनुसार प्रतिक्रिया देता है। यही कारण है कि सेल्फ-टॉक के शब्दों का चुनाव बहुत मायने रखता है। (Photo Source: Pexels)
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खुद से बात करने के फायदे
थॉट्स में क्लियरिटी आती है
जब आप किसी उलझन में होते हैं, तो खुद से बात करने से अपने ही विचारों यानी थॉट्स को तर्क के साथ सुनने का मौका मिलता है। इससे सही निर्णय लेना आसान हो जाता है। (Photo Source: Pexels) -
गोल्स के प्रति बढ़ता है फोकस
सेल्फ-टॉक आपको अपने लक्ष्य की याद दिलाता है और बार-बार आपको उस दिशा में काम करने के लिए प्रेरित करता है। आप अपने उद्देश्य के प्रति और गंभीर हो जाते हैं। (Photo Source: Pexels) -
मिलती है खुद से प्रेरणा (Self-Motivation)
दूसरों की बातों से प्रेरणा लेना अच्छा है, लेकिन जब आप खुद को प्रेरित करते हैं, तो वह प्रेरणा कहीं ज्यादा प्रभावशाली होती है। सेल्फ-टॉक से आप खुद को “मैं कर सकता हूं” जैसे पॉजिटिव मैसेज देकर हौसला बढ़ा सकते हैं। (Photo Source: Pexels) -
निगेटिव सेल्फ-टॉक: मानसिक स्वास्थ्य के लिए खतरा
अगर सेल्फ-टॉक सकारात्मक नहीं होकर नकारात्मक (Negative) हो जाए, तो यह आपके आत्मविश्वास और सोचने की क्षमता को कमजोर कर सकता है। (Photo Source: Pexels) -
निगेटिव सेल्फ-टॉक के उदाहरण:
“मैं ये काम कभी नहीं कर पाऊंगा।”, “मेरे बस की बात नहीं है।”, “मैंने हमेशा असफलता ही पाई है।” ऐसी बातें धीरे-धीरे आपके भीतर डर, तनाव और आत्म-संशय को जन्म देती हैं। (Photo Source: Pexels) -
कैसे पाएं निगेटिव सेल्फ-टॉक से छुटकारा?
पहचानें निगेटिव सोच को
पहले ये समझें कि कौन-सी बातें आपको मानसिक रूप से कमजोर बना रही हैं। जब आप बार-बार किसी असफलता या डर पर बात कर रहे हैं, तो अलर्ट हो जाएं। (Photo Source: Pexels) -
पॉजिटिव शब्दों का करें इस्तेमाल
“मैं फेल हो गया” कहने की बजाय कहें “इससे मुझे सीख मिली”। “मैं ये नहीं कर सकता” की जगह कहें “मैं कोशिश करूंगा”। (Photo Source: Pexels) -
अपने शब्दों को बदलें, सोच बदल जाएगी
साइकोलॉजिस्ट्स के अनुसार, आप जिन शब्दों का प्रयोग करते हैं, दिमाग उन्हीं की तस्वीर बनाता है। इसलिए शब्दों को पॉजिटिव बनाइए, सोच अपने आप पॉजिटिव हो जाएगी। (Photo Source: Pexels)
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