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हमारे दांत और मुंह की सफाई सिर्फ सुंदरता या ताजगी के लिए नहीं, बल्कि पूरे शरीर के स्वास्थ्य के लिए जरूरी है। आज भले ही हम आधुनिक टूथब्रश और पेस्ट का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि हजारों साल पहले भी हमारे पूर्वज दांतों की सफाई के लिए एक प्राकृतिक उपाय अपनाते थे? वह उपाय था “मिस्वाक” (Miswak) — एक हर्बल दातुन, जिसे महर्षि सुश्रुत ने करीब 2500 साल पहले अपने ग्रंथ सुश्रुत संहिता में सुझाया था। (Photo Source: Pexels)
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क्या है मिस्वाक?
मिस्वाक दरअसल सल्वाडोरा पर्सिका (Salvadora Persica) नामक पेड़ की जड़, टहनी या तने से बनाई जाने वाली एक चबाने योग्य लकड़ी की स्टिक होती है। इसे अरबी में मिस्वाक या सिवाक, संस्कृत में दंतकाष्ठ, और अंग्रेजी में Toothbrush Tree कहा जाता है। (Photo Source: Plant Wealth of India/Facebook) -
मिस्वाक के सिरे को चबाने पर इसके रेशे ब्रश की तरह फैल जाते हैं, जिससे यह दांतों और मसूड़ों की सफाई करता है। इसे बिना किसी टूथपेस्ट के इस्तेमाल किया जा सकता है क्योंकि इसमें खुद कई औषधीय गुण पाए जाते हैं। (Photo Source: Freepik)
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मिस्वाक के फायदे (Benefits of Miswak)
आधुनिक विज्ञान भी अब मिस्वाक के फायदों को मान चुका है। नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन और डब्ल्यूएचओ (WHO) की रिपोर्ट्स के अनुसार मिस्वाक के ये लाभ हैं:
(Photo Source: Unsplash) -
एंटी-बैक्टीरियल और एंटी-फंगल गुण: मुंह में बैक्टीरिया की वृद्धि को रोकता है और दांतों में कीड़ा लगने से बचाता है। (Photo Source: Freepik)
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सांसों की बदबू दूर करे: इसमें मौजूद सल्वाडोरिन (Salvadorine) और बेंजिल आइसोथायोसायनेट (Benzyl isothiocyanate) मुंह की दुर्गंध को खत्म करते हैं। (Photo Source: Freepik)
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दांतों का पीलापन घटाए: प्राकृतिक फ्लोराइड और कैल्शियम दांतों को सफेद और मजबूत बनाते हैं। (Photo Source: Jansatta)
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दांत दर्द से राहत: इसमें पाए जाने वाले सैलिसिलिक एसिड और रेजिन्स हल्के दर्दनिवारक का काम करते हैं। (Photo Source: Freepik)
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मसूड़ों को स्वस्थ रखे: इसके रेशे मसूड़ों की मालिश कर उन्हें मजबूत और संक्रमणमुक्त बनाते हैं। (Photo Source: Pexels)
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किफायती और पर्यावरण अनुकूल: यह प्लास्टिक ब्रश की तुलना में सस्ता, प्राकृतिक और बायोडिग्रेडेबल है। (Photo Source: Plant Wealth of India/Facebook)
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ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व
मिस्वाक का उल्लेख न केवल सुश्रुत संहिता और मनुस्मृति जैसे प्राचीन भारतीय ग्रंथों में मिलता है। महर्षि सुश्रुत, जिन्हें भारतीय चिकित्सा शास्त्र का जनक कहा जाता है, ने भी लगभग 500 ईसा पूर्व अपने ग्रंथों में मिस्वाक के उपयोग की सिफारिश की थी। (Photo Source: Pexels) -
सिर्फ यही नहीं यह इस्लामिक परंपरा में भी अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। पैगंबर मोहम्मद साहब (PBUH) स्वयं मिस्वाक का नियमित उपयोग करते थे और इसे हर नमाज से पहले इस्तेमाल करने की सलाह देते थे। इसी कारण आज भी मिस्वाक का प्रचलन अरब देशों, अफ्रीका, भारत और एशिया के कई हिस्सों में जारी है। (Photo Source: Freepik)
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वैज्ञानिक प्रमाण क्या कहते हैं?
कई आधुनिक शोधों में यह पाया गया है कि मिस्वाक से दांतों की सफाई करने वाले लोगों का पेरियोडॉन्टल स्टेटस (gum health) उन लोगों से बेहतर होता है जो सिर्फ टूथब्रश का इस्तेमाल करते हैं। एक अध्ययन (सूडान, 2003) में पाया गया कि मिस्वाक यूज़र्स में मसूड़ों की बीमारियों की संभावना बहुत कम थी। (Photo Source: Plant Wealth of India/Facebook) -
हालांकि, वैज्ञानिकों का मानना है कि अधिक शोध की आवश्यकता है, लेकिन अब तक के परिणाम मिस्वाक को एक प्रभावी और सुरक्षित नेचुरल विकल्प बताते हैं। (Photo Source: Unsplash)
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कैसे करें मिस्वाक का इस्तेमाल?
मिस्वाक की टहनी लगभग 6 इंच लंबी काटें। एक सिरे को 1 इंच तक चबाएं जब तक कि वह ब्रश जैसी न हो जाए। इस सिरों से दांतों को ऊपर-नीचे और गोलाई में धीरे-धीरे रगड़ें। इस्तेमाल के बाद ब्रश वाला सिरा काट दें और अगली बार नया सिरा चबाएं। इसे दिन में दो बार इस्तेमाल करना सबसे अच्छा रहता है। (Photo Source: Dentistry)
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