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दाद, खाज और खुजली जैसी त्वचा संबंधी समस्याएं आजकल बहुत आम हो गई हैं। कई बार ये साधारण एलर्जी से शुरू होकर जिद्दी फंगल इन्फेक्शन, एक्जिमा या सोरायसिस का रूप ले लेती हैं। एलोपैथिक क्रीम और स्टेरॉयड जैसी आधुनिक क्रीम और लोशन अक्सर केवल ऊपर-ऊपर से राहत देती हैं, जबकि आयुर्वेद इन रोगों को जड़ से ठीक करने पर जोर देता है। (Photo Source: Pexels)
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आयुर्वेद के अनुसार त्वचा रोग क्यों होते हैं?
आयुर्वेद मानता है कि त्वचा रोग केवल बाहरी संक्रमण नहीं, बल्कि शरीर के अंदरूनी असंतुलन का परिणाम होते हैं। प्रमुख कारण हैं- मंद अग्नि (पाचन शक्ति का कमजोर होना), विरुद्ध आहार (गलत फूड कॉम्बिनेशन), दोषों का असंतुलन (विशेषकर पित्त और कफ), पंचकर्म या शरीर शुद्धि का अभाव, गलत लाइफस्टाइल और स्ट्रेस और लंबे समय तक शरीर में जमा टॉक्सिक एलिमेंट्स। (Photo Source: Pexels) -
समय पर शरीर की शुद्धि न होने से दोष और टॉक्सिक एलिमेंट्स स्किन की परतों में जमा हो जाते हैं, जो आगे चलकर दाद, फंगल इन्फेक्शन, एक्जिमा या सोरायसिस जैसी समस्याओं का रूप ले लेते हैं। (Photo Source: Pexels)
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आयुर्वेदिक उपचार का सिद्धांत
आयुर्वेद में त्वचा रोगों का इलाज दो स्तरों पर किया जाता है, 1. आंतरिक शुद्धि – रक्त और दोषों की सफाई, और 2. बाह्य उपचार – त्वचा की स्थानीय देखभाल। इसी समग्र दृष्टिकोण से लंबे समय तक राहत संभव मानी जाती है। (Photo Source: Pexels) -
आंतरिक उपचार के लिए चूर्ण की सामग्री
आयुर्वेद में कई औषधियां रक्तशोधक, पाचन सुधारक और फंगल नाशक मानी जाती हैं। परंपरागत रूप से प्रयोग की जाने वाली सामग्री इस प्रकार बताई जाती है: 40-40 ग्राम नीम छाल, गिलोय, हरड़, आंवला, सोंठ, और 20 ग्राम सूखा नींबू। (Photo Source: Unsplash) -
इसके साथ 10-10 ग्राम बायविडंग, चक्रमर्द, पिप्पली, अजवाइन, बच, जीरा, कुटकी, खदिर छाल, सेंधा नमक, हल्दी, नागरमोथा, और देवदार छाल लें। ध्यान रखें कि सभी औषधियों की गुणवत्ता शुद्ध और प्रमाणित होना अत्यंत आवश्यक है। (Photo Source: Unsplash)
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चूर्ण बनाने और सेवन की विधि
सभी औषधियों को 2–4 दिन धूप में सुखाकर अच्छी तरह साफ करें। फिर इन्हें बारीक पीसकर चूर्ण बना लें। रोजाना भोजन से लगभग एक घंटे पहले एक छोटा चम्मच चूर्ण गुनगुने पानी के साथ लें। यह चूर्ण शरीर के अंदर से दोषों को संतुलित करने और रक्त को शुद्ध करने में सहायक माना जाता है। (Photo Source: Unsplash) -
बाह्य उपचार के लिए तेल मालिश का महत्व
आयुर्वेद के अनुसार, केवल अंदरूनी दवा पर्याप्त नहीं होती। त्वचा की बाहरी देखभाल भी जरूरी है ताकि खुजली, जलन और पपड़ी जैसी समस्याओं में राहत मिले। परंपरागत तेल की सामग्री: 10-10 ग्राम पारा, गंधक, कूट, हरताल, सतौना, लहसुन, बावची, अमलता के बीज, और तांबे की भस्म लें। (Photo Source: Unsplash) -
बनाने की विधि
सभी औषधियों को बहुत बारीक चूर्ण कर कपड़े से छान लें। इन्हें शुद्ध सरसों के तेल में मिलाकर कांच या मिट्टी के पात्र में भर दें। मिश्रण को लगभग एक सप्ताह तक सुरक्षित स्थान पर रखें। बाद में तेल छानकर प्रभावित स्थान पर दिन में दो बार हल्की मालिश करें। (Photo Source: Unsplash) -
जरूरी सावधानियां
यह उपचार परंपरागत आयुर्वेदिक ज्ञान पर आधारित है। पारा, हरताल जैसी औषधियां शक्तिशाली और विषाक्त हो सकती हैं, इसलिए इन्हें स्वयं प्रयोग न करें। किसी योग्य आयुर्वेद चिकित्सक की देखरेख में ही उपचार शुरू करें। गर्भवती महिलाएं, बच्चे और गंभीर रोगी बिना चिकित्सकीय सलाह के ऐसे प्रयोग न करें। (Photo Source: Unsplash)
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