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24 नवंबर 1935 को इंदौर में जन्में सलीम खान हिंदी सिनेमा के पॉपुलर राइटर हैं। उन्होंने कई हिट फिल्मों की कहानियां लिखी हैं। 88 साल के हो चुके सलमान खान के पिता सलीम का 70-80 के दशक में एक अलग ही रुतबा हुआ करता था।
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उस समय हर फिल्ममेकर अपनी फिल्मों की स्क्रिप्ट सलीम खान से ही लिखवाना चाहता था, चाहे फीस कुछ भी हो। लेकिन क्या आप जानते हैं सलीम खान के स्क्रिप्ट राइटिंग का सिलसिला लव लेटर लिखने से शुरू हुआ था।
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सलीम खान जब इंदौर में रहते थे तो अपने दोस्तों के लिए उनके लव लेचर लिखा करते थे। लेटर लिखते-लिखते ही उनके राइटर करियर की शुरुआत हुई और वह हिंदी सिनेमा के बेहतरीन स्क्रिप्ट लेखक बन गए।
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लेकिन क्या आप जानते हैं कि सलीम इंदौर से मुंबई राइटर नहीं बल्कि हीरो बनने के लिए पहुंचे थे। दरअसल, फिल्ममेकर के. अमरनाथ इंदौर में एक शादी में शामिल हुए थे जहां उनकी नजर सलीम खान पर पड़ी। सलीम खान अपने समय में बेहद हैंडसम हुआ करते थे, जिन पर अमरनाथ की नजरें टिकी गई। इसके बाद उन्होंने सलीम खान को बुलाकर फिल्म ऑफर कर दिया।
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वहीं, ऑफर एक्सेप्ट करने के बाद सलीम मुंबई पहुंच गए। फिल्म बारात से सलीम खान ने एक्टिंग में डेब्यू किया था। इस फिल्म में वह साइड रोल में नजर आए। लेकिन यह फिल्म चल नहीं सकी। इसके बाद वह कई फिल्मों में छोटे-मोटे रोल में दिखाई दिए। एक एक्टर के तौर पर उन्होंने 30 से ज्यादा फिल्में कीं जिनमें वह सिर्फ साइड रोल में ही नजर आए। इनमें ‘बारात’, ‘तीसरी मंजिल’, ‘सरहदी लुटेरा’ और ‘दीवाना’ शामिल हैं।
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फिल्मों में छोटे-छोटे रोल करने के कारण उन्हें बहुत कम पैसे मिलते थे, जिससे गुजारा करना मुश्किल हो जाता था। इसलिए उन्होंने एक्टिंग के साथ-साथ राइटिंग में भी हाथ आजमाया। एक दिन वह मशहूर अभिनेता और फिल्म निर्माता गुरुदत्त के लेखक अबरार अल्वी के पास गए और उनके साथ काम करने की इच्छा जताई।
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अबरार अल्वी ने उनका टेस्ट लिया और कुछ लिखने को कहा। अबरार को सलीम का काम पसंद आया और उन्होंने उन्हें अपना असिस्टेंट बना लिया। उस वक्त में राइटर्स को काफी कम फीस मिलती थी। एक तरफ जहां किसी बड़े स्टार को 10 से 12 लाख रुपये मिलते थे तो वहीं राइटर की सैलरी 20 से 25 हजार होती थी।
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वहीं असिस्टेंट राइटर होने के कारण सलीम खान को बहुत कम फीस मिलती थी। एक दिन सलीम खान कम फीस होने के कारण अबरार से बोल पड़े कि ‘एक दिन ऐसा आएगा जब कोई फिल्म राइटर एक स्टार से ज्यादा फीस लेगा।’ उनकी यह बात सुनकर अबरार हंस पड़े।
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अबरार ने सलीम से कहा, “ये बात तुमने मुझसे कह दी, मगर किसी और से मत कहना, वरना लोग तुम्हें पागल समझेंगे।” सलीम खान ने कहा, “अगर यह साबित हो जाए कि फिल्म की सफलता का कारण हीरो नहीं बल्कि फिल्म की कहानी और लेखक हैं, तो यह संभव है।”
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साल 1966 में फिल्म ‘सरहती लुटेरा’ की शूटिंग के दौरान सलीम की मुलाकत जावेद अख्तर से हुई। इस फिल्म की शूटिंग के दौरान दोनों की दोस्ती हुई। फिर दोनों ने मिलकर टीम बनाया और छोटी-मोटी कहानी लिखनी शुरू कर दी। उन्होंने राजेश खन्ना की फिल्म ‘अंदाज’ की स्क्रिप्ट में सुधार किया। सुधारी हुई स्क्रिप्ट पर जो फिल्म बनी वो सुपरहिट हो गई।
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इस फिल्म के बाद राजेश खन्ना ने ‘हाथी मेरे साथी’ की स्क्रिप्ट भी सलीम-जावेद से लिखवाई। सलीम-जावेद को काम को देखकर मशबूर फिल्ममेकर जी.पी. सिप्पी ने उन्हें अपने प्रोडक्शन से जोड़ लिया। इसके बाद दोनो ने मिलकर ‘सीता-गीता’, ‘डॉन’ और ‘शोले’ जैसी बिच फिल्में लिखीं। उनके काम को देखने के बाद कई फिल्ममेकर्स उन्हें अपनी फिल्मों के लिए स्क्रिप्ट लिखने का ऑफर देने लगे। इसके लिए वह मुंहमांगी फीस भी देने को तैयार थे।
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फिल्म ‘दोस्ताना’ के लिए सुपरस्टार अमिताभ बच्चन को जहां 12 लाख रुपये मिले थे, वहीं राइटर सलीम-जावेद ने इसके लिए 12 लाख 50 हजार फीस ली। इस तरह से सलीम खान ने अपनी भविष्यवाणी को सच साबित किया और स्टार से 50 हजार ज्यादा फीस लेकर हिंदी सिनेमा में इतिहास रच दिया।
(Photos Source: Indian Express)
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