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भारतीय उप महाद्वीप में बाल अधिकारों को बढ़ावा देने को लेकर काम करने के लिए भारत के कैलाश सत्यार्थी और पाकिस्तान की मलाला यूसुफजई को साझा तौर पर शांति का नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया। (फोटो: भाषा)
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बुधवार को यहां नार्वे की नोबेल समिति के प्रमुख थोर्बजोर्न जगलांद ने पुरस्कार प्रदान करने से पहले अपने संबोधन में कहा, ‘सत्यार्थी और मलाला निश्चित तौर पर वही लोग हैं जिन्हें अल्फ्रेड नोबेल ने अपनी वसीयत में शांति का मसीहा कहा था।’ उन्होंने कहा, ‘एक लड़की और एक बुजुर्ग व्यक्ति, एक पाकिस्तानी और दूसरा भारतीय, एक मुसलिम और दूसरा हिंदू, दोनों उस गहरी एकजुटता के प्रतीक हैं जिसकी दुनिया को जरूरत है। देशों के बीच भाईचारा।’ (फोटो: भाषा)
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मलाला को पिछले साल भी शांति के नोबेल के लिए नामांकित किया गया था। उन्होंने तालिबान के हमले के बावजूद पाकिस्तान सरीखे देश में बाल अधिकारों और लड़कियों की शिक्षा के लिए अपने अभियान को जारी रखने के लिए अपनी प्रतिबद्धता जताते हुए अदम्य साहस का परिचय दिया। (फोटो: भाषा)
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सत्यार्थी के गैर सरकारी संगठन बचपन बचाओ आंदोलन (बीबीए) ने भारत में कारखानों और दूसरे कामकाजी स्थलों से अस्सी हजार से अधिक बच्चों को बंधुआ मजदूरी से मुक्त कराया। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आइएलओ) के मुताबिक दुनिया भर में 16.8 करोड़ बाल श्रमिक हैं। माना जाता है कि भारत में बाल श्रमिकों का आंकड़ा छह करोड़ के आसपास है। (फोटो: भाषा)
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सत्यार्थी और मलाला को नोबेल का पदक मिला जो 18 कैरेट ग्रीन गोल्ड का बना है, इस पर 24 कैरेट सोने का पानी चढ़ा है और इसका कुल वजन करीब 175 ग्राम है। सत्यार्थी और मलाला 11 लाख डालर की पुरस्कार राशि को साझा करेंगे। (फोटो: भाषा)
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पुरस्कार ग्रहण करने के बाद सत्यार्थी ने उपस्थित दर्शकों से कहा कि वे अपने भीतर बच्चे को महसूस करें। उन्होंने कहा, बच्चों के खिलाफ अपराध के लिए सभ्य समाज में कोई स्थान नहीं है। उन्होंने कहा, ‘बच्चे हमारी अकर्मण्यता को लेकर सवाल कर रहे हैं और हमारे कदम को देख रहे हैं। सभी धर्म बच्चों की देखभाल करने की शिक्षा देते हैं।’ (फोटो: भाषा)
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बाल श्रमिकों की संख्या में कमी का जिक्र करते हुए सत्यार्थी ने कहा, ‘मेरा सपना है कि हर बच्चे को विकास करने के लिए मुक्त किया जाए। बच्चों के सपनों को पूरा नहीं होने देना से बड़ी हिंसा कुछ नहीं है।’ समाज के कमजोर तबकों के लोगों के साथ अपने अनुभव को साझा करते हुए नोबेल पुरस्कार विजेता ने कहा, ‘मैं उन करोड़ों बच्चों का प्रतिनिधित्व कर रहा हूं जिनकी आवाजें दबी हुई हैं और वे कहीं गुमनामी में जी रहे हैं।’ उन्होंने कहा, ‘इस सम्मान का श्रेय उन लोगों को जाता है जिन्होंने बच्चों को मुक्त कराने के लिए काम किया और त्याग दिया।’ (फोटो: भाषा)
