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पहली 2 फिल्में बैन हुईं, डिप्रेशन से घिरे, सेंसर से भिड़े, पर फिल्मों के प्रति पैशन ने बनाया जीनियस फिल्ममेकर

अनुराग कश्यप। बॉलीवुड में मॉर्डन डार्क फिल्मों के सबसे बड़े सिपहसलार। बॉलीवुड में कुछ परिवारों के नेक्सस को तोड़कर प्रयोगधर्मी सिनेमा का स्पेस स्थापित किया। आज एक गॉडफादर की तरह कई उभरते कलाकारों को मौका दे रहे हैं। गोरखपुर में जन्मे अनुराग आज अपना 48वां जन्मदिन मना रहे हैं।

By: जनसत्ता ऑनलाइन
September 10, 2018 18:28 IST
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    अनुराग कश्यप। बॉलीवुड में मॉर्डन डार्क फिल्मों के सबसे बड़े सिपहसलार। बॉलीवुड में कुछ परिवारों के नेक्सस को तोड़कर प्रयोगधर्मी सिनेमा का स्पेस स्थापित किया। आज एक गॉडफादर की तरह कई उभरते कलाकारों को मौका दे रहे हैं। गोरखपुर में जन्मे अनुराग आज अपना 46वां जन्मदिन मना रहे हैं।

  • अनुराग के दिमाग में कहानियां घूमती रहती हैं। फिल्मों से बेइंतहा मोहब्बत है, इसलिए उनकी खास कद्र भी करते हैं। एक ऐसे दौर में जब पाइरेसी का बाज़ार चरम पर है, अनुराग ने अपने पूरे जीवन में महज कुछ फिल्मेें ही पायरेटेड देखी हैं। उनके घर में एक बहुत बड़ी लाइब्रेरी है जहां दुनिया भर की ओरिजिनल फिल्मों का कलेक्शन देखा जा सकता है। बॉलीवुड में फिल्म के कद्रदानों के बीच अनुराग की ये लाइब्रेरी काफी चर्चा में रहती हैं। बचपन में वो अपने स्कूल के बच्चों की तरह फर्राटेदार इंग्लिश नहीं बोल पाते थे, इसलिए ज्यादा समय दोस्तों की जगह किताबों में बीतने लगा। Dostoevsky और काफ्का जैसे कई महान साहित्यकारों का लिखा वे अपने जीवन के शुरूआती दौर में ही पढ़ चुके थे। आठवीं में सुसाइड पर कहानी लिखने के चलते उनके स्कूल टीचर्स ने घर पर बात बता दी थी। हालांकि हिदायतों के बावजूद अनुराग ने कभी लिखना नहीं छोड़ा।
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    अनुराग के दिमाग में कहानियां घूमती रहती हैं। फिल्मों से बेइंतहा मोहब्बत है, इसलिए उनकी खास कद्र भी करते हैं। एक ऐसे दौर में जब पाइरेसी का बाज़ार चरम पर है, अनुराग ने अपने पूरे जीवन में महज कुछ फिल्मेें ही पायरेटेड देखी हैं। उनके घर में एक बहुत बड़ी लाइब्रेरी है जहां दुनिया भर की ओरिजिनल फिल्मों का कलेक्शन देखा जा सकता है। बॉलीवुड में फिल्म के कद्रदानों के बीच अनुराग की ये लाइब्रेरी काफी चर्चा में रहती हैं। बचपन में वो अपने स्कूल के बच्चों की तरह फर्राटेदार इंग्लिश नहीं बोल पाते थे, इसलिए ज्यादा समय दोस्तों की जगह किताबों में बीतने लगा। Dostoevsky और काफ्का जैसे कई महान साहित्यकारों का लिखा वे अपने जीवन के शुरूआती दौर में ही पढ़ चुके थे। आठवीं में सुसाइड पर कहानी लिखने के चलते उनके स्कूल टीचर्स ने घर पर बात बता दी थी। हालांकि हिदायतों के बावजूद अनुराग ने कभी लिखना नहीं छोड़ा।

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    एक दौर में अनुराग दिन में 100 पेज लिख लिया करते थे। उन्होंने 90 के दौर में कई लोकप्रिय टेलीविज़न शो की कहानियां लिखी लेकिन वे उस दौर में अपने काम का क्रेडिट ही नहीं लेते थे। उनकी इस खूबी के चलते वे छोटे से समय में ही जबरदस्त पॉपुलर हो गए और महेश भट्ट के एक ऑफर के साथ ही वे इंडस्ट्री में स्थापित हो सकते थे लेकिन अनुराग ने फिर रिस्क लिया और उन्होंने रामगोपाल शर्मा की फिल्म सत्या के लिए काम किया। उन्होंने इस फिल्म की कहानी लिखी। अनुराग की फिल्ममेकिंग को निखारने में रामगोपाल वर्मा की भूमिका रही। हालांकि फिल्मों के प्रति उनका डार्क रवैया रामू को हैरान करता था और दोनों के बीच क्रिएटिव मतभेदों के चलते इन प्रतिभाशाली आर्टिस्ट्स ने अपनी अलग राह चुन ली। सत्या के बाद अनुराग ने रामू के लिए फिल्म कौन और शूल भी लिखी। स्टार बेस्ट सेलर के लिए केके मेनन को लेकर एक शॉर्ट फिल्म बनाई जिसका नाम था – लास्ट ट्रेन टू महाकाली। फिर उन्होंने अपनी पहली फिल्म निर्देशित की जिस पर आज भी सेंसर बोर्ड ने बैन लगाया हुआ है। हालांकि कई लोगों ने इस फिल्म को टौरेन्ट पर देखकर इसे कल्ट फिल्म बना दिया है।

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    अनुराग ने अपनी तीसरी फिल्म गुलाल को लगभग 8 सालों में कंप्लीट किया था। इस फिल्म से जुड़े कई लोगों ने फिल्म के लिए एक पैसा नहीं लिया था। दरअसल अनुराग हर साल जयपुर में अपनी पूरी टीम को लेकर दीवाली में शूट करने जाते थे क्योंकि जयपुर में दीवाली के समय काफी रोशनी हुआ करती थी। अनुराग 6 सालों तक वहां जाते रहे और फिल्म शूट की। लेकिन ये फिल्म भी खास कामयाब नहीं रही। हालांकि आज ये फिल्म सिनेफाइल्स के बीच कल्ट का दर्जा हासिल कर चुकी है। इसके बाद उन्होंने डेविड लिन्च स्टायल में एब्सर्ड और सर्रियल फिल्म नो स्मोकिंग का निर्माण किया। ये अपने समय से आगे की फिल्म थी और फिल्म भारतीय दर्शकों को समझ ही नहीं आई हालांकि फिल्म ने विदेशों में काफी नाम कमाया था। अनुराग ने इसके बाद अभय देओल के साथ मिलकर देव डी का निर्माण किया। इसी फिल्म के साथ ही कल्कि ने अपने करियर की शुरूआत की। इस फिल्म के कुछ साल बाद आई गैंग्स ऑफ वासेपुर ने उन्हें इंडस्ट्री में एक सफल प्रयोगधर्मी फिल्ममेकर के रूप में स्थापित कर दिया था।

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    अनुराग उन दुर्लभ निर्देशकों में से भी हैं जो सत्ता के अन्यायों के खिलाफ आवाज़ उठाते रहे हैं। उन्होंने करण जौहर की फिल्म ए दिल है मुश्किल के बैन होने के खतरों के बीच पीएम मोदी से ट्विटर पर सवाल पूछे जिसके चलते कई लोगों और बीजेपी के कई लोगों ने उन्हें ट्रोल किया। पद्मावत पर प्रतिबंध की धमकियों के बीच भी वे कर्णी सेना के खिलाफ मुखर हुए। अनुराग हमेशा से मानते आए हैं कि किसी भी फिल्म को ऑडियन्स की समझ पर छोड़ देना चाहिए और सेंसर का काम भी केवल सर्टीफिकेशन तक ही सीमित होना चाहिए, फिल्म पर प्रतिबंध लगाना नहीं।

  • 6/8

    अपनी फिल्ममेकिंग के अलावा अनुराग में हुनर पहचानने का अद्भुत गुण है। वे हमेशा अपनी फिल्मों के लिए यंग और कम अनुभवी लोगों को चुनते हैं। वे केके मेनन, नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी, हुमा कुरैशी, जयदीप अहलावत, अमित त्रिवेदी, स्नेहा खनवाकर, विनीत कुमार सिंह, अमिताभ भट्टाचार्य जैसे कई आर्टिस्ट्स को मौका दे चुके हैं और अपनी फिल्मों में कभी प्रयोगों से घबराते नहीं हैं। यही कारण है कि उनकी फिल्मों में हद दर्जे का रियलिज़्म होता है और वे अक्सर छोटे बजट की फिल्मों में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हैं। अनुराग की बड़े बजट की फिल्म बॉम्बे वेलवेट जब पिट गई तो उन्होंने कहा भी था कि रणबीर जैसे मेनस्ट्रीम सितारे ने जोखिम उठाकर मेरे साथ काम किया था लेकिन मैं उन्हें अपेक्षित सफलता देने में नाकामयाब रहा।

  • 7/8

    अनुराग कश्यप और सेंसर बोर्ड के बीच 36 का आंकड़ा रहा है। उनकी पहली फिल्म पांच आज भी रिलीज नहीं हो पाई है। इसके अलावा उनकी फिल्म ब्लैक फ्राइडे के भी कुछ साल प्रतिबंध का सामना करना पड़ा था। अनुराग जब अपनी फिल्म ब्लैक फ्राइडे के स्क्रीनिंग के लिए तैयार हो रहे थे तो उन्हें एक कॉल आया था कि उनकी फिल्म पर प्रतिबंध लगा दिया था। नया कोट पहने अनुराग वापस अपने कमरे में चले गए थे और उन्होंने तीन दिन अपने कमरे में बैठकर शराब पी थी। पांच के बाद अनुराग की फिल्म ब्लैक फ्राइडे भी बैन हो चुकी थी। लगातार दो फिल्मों पर प्रतिबंध के बाद अनुराग अवसाद में चले गए थे।

  • 8/8

    अनुराग कश्यप, हॉलीवुड फिल्ममेकर मार्टिन स्कोर्से से काफी प्रभावित थे। मार्टिन की फिल्म और रॉबर्ट डिनीरो अभिनीत टैक्सी ड्राइवर (1975) ने उन्हें झकझोर कर रख दिया था। हालांकि 1993 में दिल्ली के एक फिल्म फेस्टिवल में 50 से ज्यादा फिल्में देखकर अनुराग ने फिल्ममेकर बनने का निर्णय़ किया था। इस दौरान उन्हें 1948 की इटैलियन फिल्म बाइसिकल थीव्स खासतौर पर पसंद आई थी। अनुराग की फिल्म गैंग्स ऑफ वासेपुर की कान फिल्म फेस्टिवल में पांच घंटे की स्क्रीनिंग हुई थी और जब फिल्म खत्म हुई थी तो वहां मौजूद लोगों ने अनुराग के लिए खड़े होकर तालियां बजाई थी।

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