सफदरजंग अस्पताल में रेडियो थेरेपी विभाग पिछले हफ्ते अचानक बंद होने से कैंसर के सैकड़ों मरीजों के सामने जीवन का संकट पैदा हो गया है। विभाग बंद होने से मरीजों की रेडियो थेरेपी बीच में ही छूट गई। इलाज के लिए मरीजों को दूसरे अस्पताल जाने को कह दिया गया। मजबूरी यह है कि वे जहां भी जाएंगे उनका इलाज समय से शुरू नहीं हो पाएगा। क्योेंकि इलाज के लिए मशीन व दवा की खुराक वगैरह तैयार होने की प्रक्रिया फिर से शुरू करनी पड़ेगी। इसके अलावा इलाज की मशीन या दवा बीच में बदलने से इलाज के नतीजे में भी फर्क आ जाता है।
सफदरजंग में रेडियो थेरेपी का इलाज शुरू करा चुके मरीजों तक को विभाग ने आगे का इलाज देने से मना कर दिया है। आम तौर से सफदरजंग में रेडियो थेरेपी के लिए वही मरीज आता है जो निजी अस्पताल में इलाज का खर्च वहन नहीं क र सकता या जिसकी एम्स या दूसरे अस्पताल में पहुंच नहीं है। इनमें से कुछ, फिर भी किसी तरह हिम्मत जुटा पाए वे राजीव गांधी कैंसर अस्पताल गए। लेकिन ज्यादातर मरीजों के सामने कोई रास्ता नहीं है। इनमें से कुछ एम्स में इलाज की उम्मीद में धक्के खा रहे हैं। वे मरीज जो अभी इलाज शुरू नहीं करा पाए हैं वे मशीन फिर से चालू होने की उम्मीद में रोज सफदरजंग अस्पताल के चक्कर लगा रहे हैं।
एक महिला मरीज ने बताया कि उनके गले में कैंसर के इलाज के लिए सफदरजंग में रेडियो थेरेपी चल रही थी। काफी धक्के खाने के बाद इलाज का दिन आया था। इलाज शुरू भी हो गया था। लेकिन अचानक हमें कह दिया गया कि सभी मशीनें बंद पड़ी हैं। अब यहां इलाज नहीं होगा, जाओ कहीं और से बाकी का इलाज लो। एक अन्य मरीज ने भी सफदरजंग में इलाज बीच में बंद होने की शिकायत की। उन्होंने कहा कि हम तो यहां आए। लेकिन यहां पर मुश्किल यह भी कि एम्स में पहले से पंजीकृत मरीजों को ही तीन से छह महीने के आगे की तारीख इलाज (रेडियो थेरेपी) के लिए मिल रही है। ऐसे में हमारी कितनी सुनवाई हो पाएगी हम नही जानते।
एम्स के डाक्टरों के सामने चुनौती यह है कि इन मरीजों की बीच में रह गई थेरेपी को वे तुरंत कैसे शुरू करें। यहां के एक संकाय सदस्य ने बताया कि इलाज बीच में बंद होने से कई तरह के नुकसान भी होते हैं। हर अस्पताल के मशीन या प्रोटोकॉल भी अलग हो सकते हैं। फिर किसी भी मरीज को रेडिएशन देने से पहले बाकी अंगों की सुरक्षा के लिए मास्क बनाए जाते हैं। उनका मार्कर लगा कर नाप लिया जाता है। इसके बाद मशीन में रेडिएशन की खुराक वगैरह मरीज के हिसाब से तय किए जाते है। जिनमें वक्त लगता है।उन्होंने बताया कि रेडियो थेरेपी में एक्स रेज व गामा की हल्की खुराक कई चरण में दी जाती है ताकि कैंसर सेल तो मर जाए, लेकिन मरीज के स्वस्थ अंगों को विकिरण से ज्यादा नुकसान न पहुंचे। ऐसे में समय भी काफी अहम है।
इन मरीजों के इलाज में समय का फर्क आ गया तो इलाज का नतीजा भी बदल सकता है। ऐसे में यह मरीज जिस भी अस्पताल में इलाज के लिए जाएंगे इन्हें नए सिरे से सारी प्रक्रिया पूरी करनी पड़ेगी। गौरतलब है कि कैंसर दुबारा न पनपे इसके लिए या कैंसर का आकार कम करके मरीज को आॅपरेशन लायक बनाने के लिए रेडियो थेरेपी दी जाती है।
सफदरजंग अस्पताल के रेडियो थेरेपी विभाग में रोजाना 25 से 30 मरीजों का पंजीकरण होता है और हफ्ते भर में करीब 120 मरीजों को यहां इलाज दिया जाता रहा है। लेकिन पिछले साल के नवंबर से अस्पताल के मरीजों को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। अस्पताल के इस विभाग को बंद कर नए मरीज नहीं लेने का निर्देश दिया गया था। तब रेडियो थेरेपी के लिए लाइसेंस की नवीनीकरण प्रक्रिया में कमी रह जाने की वजह से ऐसा हुआ था।

