रियो जाने वाले ओलंपिक दल के सदस्य मनोज कुमार से छह साल पहले पदोन्नति का वादा किया गया था जो उन्हें अभी तक नहीं मिला है। साथ ही उनके पास कोई प्रायोजक भी नहीं है लेकिन इस मुक्केबाज ने खेल छोड़ने के बारे में विचार नहीं किया। अपनी मेहनत की बदौलत ही उन्होंने रियो तक का सफर तय किया है। इस मुक्केबाज का कहना है कि उनकी जिद ने उन्हें ऐसा करने (खेल छोड़ने) से रोके रखा है। रियो ओलंपिक के लिए शिव थापा (56 किग्रा) और विकास कृष्ण (75 किग्रा) समेत तीन भारतीय मुक्केबाजों ने क्वालीफाई किया है।
वेल्टरवेट वर्ग में भाग लेने वाले मनोज (64 किग्रा) ने कहा कि मेरी जड़े मराठों से जुड़ी हैं और मैं शिवाजी से काफी प्रेरित हूं, जिससे मैं काफी मजबूत हूं और उतना ही जिद्दी भी हूं। इस अड़ियलपन ने ही मुझे परिस्थितियों से लड़ने में मदद की।वह जिन परिस्थितियों का जिक्र कर रहे हैं, इसमें विभाग से मिलने वाली पदोन्नति का इंतजार शामिल है जो उन्हें 2010 राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक जीतने के बाद दिया जाना था। वह भारतीय रेल में तीसरे दर्जे के कर्मचारी हैं, उन्हें तब की केंद्रीय मंत्री ममता बनर्जी ने तरक्की देने का वादा किया था। उस वादे के बाद सात मंत्री इस पद पर आ-जा चुके हैं लेकिन मनोज की स्थिति जस की तस है।
मनोज ने कहा कि मैंने इसके बारे में सभी को लिखा है। मुकुल राय से लेकर मौजूदा मंत्री सुरेश प्रभु तक। मुझसे प्रत्येक ने कार्रवाई करने का वादा किया है लेकिन जमीनी स्तर पर कुछ नहीं हो रहा। उन्होंने कहा कि जहां तक प्रायोजकों की बात है तो मैंने मदद के लिए सभी बड़ी कंपनियों को लिखा है लेकिन शायद सभी को लगता है कि मैं इतनी दूर तक नहीं जा सकता। इसलिए उनसे भी कोई जवाब नहीं मिला है। मेरे पास मेरे बारे में बात करने के लिए कोई नहीं है इसलिए यह भी हमेशा मेरे विरूद्ध ही जाता रहा है। यह पूछने पर कि इतनी मुश्किलों के बाद भी उन्होंने मुक्केबाजी को छोड़ने पर विचार नहीं किया तो मनोज ने कहा कि ‘एक सेकेंड के लिए भी नहीं। लोगों को गलत साबित करने में काफी मजा आता है, अब मैं अपने बारे में अच्छा महसूस करता हूं। मैंने किसी के समर्थन के बिना यह सब हासिल किया है, सिर्फ मेरे पास मेरे कोच और बड़े भाई राजेश हैं।’
हरियाणा के एथलीटों को राज्य सरकार से काफी मदद मिलती है तो वह इससे कैसे महरूम रह गए। उन्होंने इस सवाल के जवाब में कहा कि शायद इसलिए क्योंकि मैं लोगों के आगे झुक नहीं सकता। मैं अपने दिल की बात कहता हूं, मैं किसी को खुश रखने की कोशिश नहीं करता। इस देश में और यहां तक कि बांग्लादेश के क्रिकेटरों को भी प्रायोजक मिल जाते हैं।