2012 लंदन ओलंपिक की टॉर्च रिले में भारत का प्रतिनिधित्व करने वाली पिंकी करमाकर आज बेहद दुख भरा जीवन व्यतीत कर रही हैं। असम के डिब्रूगढ़ की रहने वाली पिंकी ने महज 17 वर्ष की उम्र में नॉटिंघमशायर की सड़क पर ओलंपिक टॉर्च लेकर भारत का प्रतिनिधित्व किया था। लेकिन आज पिंकी 167 रुपए रोजाना मजदूरी करके अपना जीवन-यापन कर रही हैं।

28 जून, 2012 को लंदन ओलंपिक की टॉर्च बियरर बनीं पिंकी करमाकर आज 26 साल की उम्र में बोरबोरूआ चाय बागान (Borborooah tea estate) में 167 रुपए रोजाना की कमाई कर अपना और परिवार का पेट पाल रही हैं। आपको बता दें हम उन पिंकी के बारे में ही बता रहे हैं जिनका 2012 में एयरपोर्ट पर स्वागत करने तत्कालीन मुख्यमंत्री सरबानंद सोनोवाल पहुंचे थे।

9 साल पहले जिस पिंकी को सीएम का काफिला उनके चाय बागान स्थित घर में छोड़ने गया था आज वो ही पिंकी पाई-पाई को मोहताज हो चुकी हैं। पिंकी की आर्थिक स्थिति इस वक्त काफी खराब हो चुकी है। मां की मृत्यु और पिता के ओवरएज होने के बाद पिंकी ही अपने परिवार की जिम्मेदारी संभाल रही हैं। उनका एक छोटा भाई और दो छोटी बहनें भी हैं।

लंदन ओलंपिक से लौटन पर हुआ पिंकी का स्वागत

पिंकी की मां भी चाय बागान में पत्तियां बीनने का काम करती थीं। आज पिंकी भी वो ही काम रोजाना 167 रुपए की मजदूरी पर करके अपने परिवार का पेट पाल रही हैं।

पिंकी को कैसे मिला टॉर्च बियरर बनने का मौका ?

2012 में पिंकी की उम्र महज 17 साल थी और उस वक्त वे 10वीं कक्षा में पढ़ रही थीं। उस दौरान वे UNICEF के Sports for Development (S4D) प्रोग्राम चलाती थीं। इस प्रोग्राम के तहत वे रोजाना 40 महिलाओं को कई सामाजिक मुद्दों और फिटनेस के प्रति जागरूक करती थीं।

पिंकी के इस कार्य से प्रभावित होकर लंदन ओलंपिक की ऑर्गनाइजिंग कमेटी ने उनका चयन भारत के टॉर्च बियरर के रूप में किया। जिसके बाद पिंकी को ओलंपिक में नॉटिंघमशायर की सड़क पर ओलंपिक की मशाल लेकर दौड़ते देखा गया था। देश लौटने पर उनका इस तरह स्वागत हुआ था कि मानों वे मेडल जीत कर आई हों।

मां की मृत्यु के बाद सबकुछ बदल गया

पिंकी ने टाइम्स ऑफ इंडिया से बातचीत करते हुए बताया कि, जिस वक्त उन्हें लंदन ओलंपिक में भारत के लिए टॉर्च बियरर बनने का अवसर मिला था उस वक्त वे 10वीं कक्षा में पढ़ रहीं थी। उन्होंने कहा कि,’मेरे कई बड़े सपने थे लेकिन आज कोई भी उम्मीद नहीं बची है। मां की मौत के बाद मुझे अपना कॉलेज छोड़ना पड़ा। परिवार की आर्थिक हालत खराब हो चुकी थी जिसके लिए मुझे चाय बागान में मजदूरी शुरू करनी पड़ी।’

‘मजदूर की बेटी आज मजदूर बनकर रह गई’

पिंकी ने बताया कि,’जिस वक्त डिब्रू कॉलेज मे वे बीए कर रहीं थी उस दौरान से ही उनकी जिंदगी में कई परेशानिंया आ गईं। जो लड़की अपने सामाज के लिए सबकुछ ती आज उसका कोई महत्व नहीं था। मैं किसी को कुछ राय नहीं दे सकती थी लेकिन मुझसे हर कोई सवाल पूछता था कि मैंने जिंदगी में क्या हासिल किया। सरकार और UNICEF दोनों ने मुझसे पल्ला झाड़ लिया था।’

पिंकी ने दावा किया कि, ‘ओलंपिक टॉर्च रिले में भारत का प्रतिनिधित्व करने के बाद उनसे कई वादे किए गए थे। लेकिन आज तक उन्हें वादों के अनुसार कुछ भी नहीं मिल सका है। सच तो ये है कि एक मजदूर की बेटी आज मजदूर बनकर रह गई है।’