हरेकाला हजब्बा (Harekala Hajabba) उस वक्त राशन की दुकान पर लाइन में खड़े थे। अचानक उनके फोन की घंटी बजी। उन्होंने फोन उठाया और उधर से आवाज आई, ‘आपको पद्मश्री सम्मान मिला है….।’ मूल रूप से कर्नाटक के रहने वाले हजब्बा उन लोगों में शामिल हैं, जिन्हें इस बार सरकार ने पद्म पुरस्कारों के लिए चुना है। पेशे से संतरा बेचने वाले हरेकाला हजब्बा की कहानी लोगों का दिल जीत रही है और यह सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रही है। IFS अधिकारी प्रवीण कसवान ने भी हजब्बा की स्टोरी साझा की है।
कौन हैं हरेकाला हजब्बा?: हरेकाला हजब्बा कर्नाटक में दक्षिण कन्नड़ा के एक छोटे से गांव न्यूपाड़ापू (Newpadapu) के रहने वाले हैं। 68 साल के हजब्बा ने तमाम मुश्किलों का सामना किया। खुद कभी स्कूल नहीं जा पाए, लेकिन उन्होंने कुछ ऐसा कर दिखाया, जिसने देश-दुनिया का ध्यान उनकी तरफ खींचा और उन्हें देश के चौथे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार के लिए चुना गया।
संतरा बेच पैसे जुटाए और खोल दिया स्कूल: संतरा बेचकर गुजर-बसर करने वाले हरेकाला हजब्बा (Harekala Hajabba) यूं तो खुद कभी स्कूल नहीं जा पाए, लेकिन उनकी तमन्ना थी कि उनका गांव शिक्षित हो। हर घर में शिक्षा का उजियारा फैले। बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक हजब्बा के गांव में साल 2000 तक कोई स्कूल नहीं था। इसके बाद उन्होंने अपने गांव में एक स्कूल खोलने की ठानी। हर दिन करीब 150 रुपये कमाने वाले हजब्बा ने अपनी जीवन भर की पूंजी इस काम में लगा दी। पहले एक मस्जिद में छोटे से स्कूल की शुरुआत हुई। फिर कारवां बढ़ता गया।
Harekala Hajabba was in a line on a ration shop when authorities informed him that he got #Padma Shri. This fruit seller from Dakshin Kannada is educating poor children in his village of Newpadapu from a decade in a mosque. Doing all the efforts including spending his savings. pic.twitter.com/rufL3RZ15o
— Parveen Kaswan, IFS (@ParveenKaswan) January 26, 2020
आखिर क्यों खोलना पड़ा स्कूल?: हरेकाला हजब्बा कहते हैं कि एक बार एक विदेशी ने मुझसे अंग्रेजी में फल का दाम पूछा। चूंकि मुझे अंग्रेजी नहीं आती थी, इसलिये फल का दाम नहीं बता पाया। उस वक्त पहली बार मैंने खुद को असहाय महसूस किया। इसके बाद मैंने तय किया कि अपने गांव में स्कूल खोलूंगा, ताकि यहां के बच्चों को इस स्थिति का सामना न करना पड़े। हजब्बा के पास जो जमा-पूंजी थी, उससे एक मस्जिद के अंदर छोटी सी पाठशाला की शुरुआत की। लेकिन जैसे-जैसे बच्चों की संख्या बढ़ी, बड़ी जगह की जरूरत भी महसूस हुई। फिर स्थानीय लोगों की मदद से गांव में ही दक्षिण कन्नड़ा जिला पंचायत हायर प्राइमरी स्कूल की स्थापना की।
रहने को ढंग का घर भी नहीं है: हरेकाला हजब्बा ने अपने जुनून के आगे कभी हार नहीं मानी। न ही पीछे मुड़ कर देखा, भले ही राह में कितनी भी मुश्किलें थीं। डीडी न्यूज के मुताबिक उनके पास रहने के लिए ढंग का मकान तक नहीं है, बावजूद इसके उन्होंने अपनी सारी कमाई गांव के बच्चों की पढ़ाई में खर्च कर दी। अब हजब्बा इस स्कूल को प्री यूनिवर्सिटी कॉलेज के तौर पर अपग्रेड करने की तैयारी कर रहे हैं।
