विवादित इस्लामिक प्रचारक जाकिर नाईक ने शनिवार को भारतीयों के नाम खुले खत में पांच सवाल और एक अपील की। इस खत में उन्होंने लिखा कि उन्हें निशाना बनाया गया और उन पर आतंकी उपदेशक का ठप्पा लगा दिया गया। नाईक ने लिखा, ”150 देशों में मेरा सम्मान किया जाता है और मेरी चर्चाओं का स्वागत होता है। लेकिन मेरे खुद के देश में मुझे आतंक का दबाव डालने वाला कहा जाता है। कितनी दुखद बात है। अब ही ऐसा क्यों जबकि मैं 25 साल से ऐसा कर रहा हूं।” जाकिर नाईक इस समय देश से बाहर हैं। उन्होंने 1991 में इस्लामिक रिसर्च फाउंडेशन की स्थापना की थी। इसके जरिए वे धार्मिक उपदेश देते हैं। उनके उपदेशों में इस्लाम को अन्य धर्मों से श्रेष्ठ बताया जाता है।
ढाका हमले में शामिल एक आतंकी के जाकिर नाईक से प्रभावित होने के बाद उन पर कार्रवार्इ की गई। नाईक ने खत के जरिए पूछा कि वे राज्य और केंद्र सरकार के लिए दुश्मन नंबर वन क्यों बन गए हैं। उन्होंने सरकारी एजेंसियों की जांच पर सवाल उठाया। नाईक ने अपने ऊपर लगे तमाम आरोंपों को खारिज करते हुए खुद को बेगुनाह बताया। उन्होंने लिखा, ”मैं खुद को यह पूछने से नहीं रोक पा रहा हूं कि मुझ पर निशाना क्यों साधा गया? तब मुझे अहसास हुआ कि यदि आपको किसी समुदाय को निशाना बनाना है तो उसके सबसे बड़े चेहरे को सबसे पहले निशाना बनाओ।” नाईक ने अपील करते हुए कहा, ”यदि आपको मेरी तरफ से कोई भी गलती मिले तो मुझे सभी तरह से दंड दो। मैं हर जांच के लिए तैयार हूं। सभी से मेरी अपील है कि संविधान को नष्ट करने की अनुमति ना दे। मेरी सरकार से अपील है कि जांच में पारदर्शिता रखिए। जो भी आरोप लगाएं उस पर साफ रहें। तथ्यों के साथ सच बोलें।”
जाकिर नाईक ने लिखा, ”यह हमला सिर्फ मेरे ऊपर नहीं है, बल्कि यह भारतीय मुसलमानों के खिलाफ है। अगर आईआरएफ और मुझ पर प्रतिबंध लगाया गया तो हाल के सालों में यह देश के लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ा झटका होगा। मैं ऐसा सिर्फ अपने लिए नहीं कह रहा। यह प्रतिबंध भारत के 20 करोड़ मुसलमानों के खिलाफ अन्याय होगा। अगर आप मुस्लिम समुदाय को नीचा दिखाएंगे और उसे शैतान के रूप में पेश करेंगे तो सब कुछ आसान हो जाएगा। यह सब साजिश हो रही है। जबरदस्ती धर्मांतरण के आरोपों पर उन्होंने कहा कि अगर किसी के साथ ऐसा हुआ है तो उसे पेश किया जाना चाहिए। ऐसा होने पर यह अपने-आप में एक सबूत होगा। लेकिन सच यह है कि जबरदस्त किसी का धर्मांतरण हुआ ही नहीं।
अपने एनजीओ के खिलाफ सरकार की कार्रवाई पर उन्होंने पूछा कि सरकार ने आईआरएफ के एफसीआरए पंजीकरण का नवीकरण क्यों किया और फिर इसे रद्द क्यों किया। और इस तरह यह अतार्किक लगता है। पत्र में कहा गया है, ‘क्या सरकार, सॉलीसीटर जनरल और गृहमंत्रालय की गोपनीय सूचना लीक करने का मंसूबा था? क्या चुनिंदा सरकारी दस्तावेज मीडिया को लीक करने का मंसूबा था?’ चिकित्सक से धार्मिक उपदेशक बने नाइक ने कहा कि पिछले कुछ महीनों में पूरे विवाद से वह स्तब्ध हैं और इसे लोकतंत्र की हत्या और मूल अधिकारों का दम घोंटा जाना बताया। मुंबई आधारित इस्लामिक रिसर्च फाउंडेशन (आईआरएफ) द्वारा चलाए जा रहे पीस टीवी के संस्थापक नाइक उस वक्त से सुरक्षा एजेंसियों की निगरानी के दायरे में आ गए जब एक बांग्लादेशी अखबार ने लिखा कि ढाका में एक जुलाई को हुए आतंकी हमले का एक हमलावर उनके उपदेशों से प्रेरित था।

