देश की संसद में आज सोमवार को राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम की 150वीं वर्षगांठ को लेकर महत्वपूर्ण चर्चा हुई। इस चर्चा की शुरुआत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की। इतिहास के कई प्रसंगों का उल्लेख करते हुए उन्होंने 1906 की एक क्रांतिकारी घटना का जिक्र किया। इस दिन वंदे मातरम का झंडा लेकर हजारों लोग ब्रिटिश शासन के खिलाफ एकजुट हो गए थे। यह एक ऐसा आंदोलन था जिसमें सभी समुदायों के लोग बड़ी संख्या में शामिल हुए थे।

यह वह दौर था जब ‘वंदे मातरम’ का नारा पूरे देश में गूंज रहा था। ब्रिटिश हुकूमत इस नारे को बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी। उन्हें लगता था कि यह नारा जनता को बगावत के लिए प्रेरित कर रहा है। कई शहरों और राज्यों में इस नारे के खिलाफ पुलिस कार्रवाई शुरू हो चुकी थी। लोगों को गिरफ्तार किया जाता था और उन पर अत्याचार किए जाते थे।

1905 में ब्रितानी शासन ने बंगाल को पूर्वी और पश्चिमी बंगाल के रूप में विभाजित करने का फैसला किया। बंगाल समेत पूरे देश में इसके खिलाफ जनाक्रोश पैदा हो गया। जगह-जगह पर जनता का गुस्सा विरोध प्रदर्शन के रूप में फूटने लगा।

ऐसी ही एक घटना 20 मई 1906 को बारीसाल (Barisal) में हुई जो वर्तमान में बांग्लादेश में स्थित है। बंगाल विभाजन के विरोध में लाखों लोगों ने ‘वंदे मातरम’ का नारा लगाते हुए जुलूस निकाला। 10,000 से ज्यादा लोग इस जुलूस में शामिल थे। इस आन्दोलन में सभी रिलीजन के लोग शामिल थे।

‘वंदे मातरम’ के बढ़ते प्रभाव और जनता की एकजुटता को देखकर ब्रिटिश हुकूमत घबरा गई। इसके बाद उन्होंने कई कठोर कदम उठाए। उस समय पूर्वी बंगाल प्रांत की सरकार ने स्कूलों और कॉलेजों में वंदे मातरम का नारा लगाने पर पूरी तरह रोक लगा दी। कई शैक्षणिक संस्थानों की मान्यता रद्द करने की चेतावनी तक दी गई। साथ ही, जिन छात्रों ने ऐसे किसी राजनीतिक आंदोलन में हिस्सा लिया, उनके खिलाफ भी कार्रवाई की गई।

बारीसाल सम्मेलन को इतना महत्वपूर्ण इसलिए माना जाता है क्योंकि ब्रिटिश सरकार ने इस शांतिपूर्ण प्रदर्शन को पुलिस लाठीचार्ज करवा कर तितर-बितर कर दिया था। इसी सम्मेलन के बाद स्वदेशी आंदोलन ने नई रफ्तार पकड़ी और उसे व्यापक जनसमर्थन भी मिला। बाद में ब्रिटिश सरकार को बंग-भंग का फैसला वापस लेना पड़ा था।

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