वायनाड में विनाशकारी लैंडस्लाइड ने कई जिंदगियां हमेशा के लिए तबाह कर दी हैं, मेहनत से बनाए घर उजड़ चुके हैं, अपनों को खोने का दर्द लोगों के चेहरे पर साफ दिखाई दे रहा है। ऐसा ही एक परिवार वायनाड में शौकत का भी था। कुवैत में अपना काम कर रहे थे, घर वालों के लिए पैसा कमा रहे थे, लेकिन फिर एक प्राकृतिक आपदा और उनका पूरा परिवार उसमें उजड़ गया। वायनाड में आई लैंडस्लाइड ने शौकत के परिवार के 26 लोगों की जान ले ली है। शौकत को तो बस इस बात का इंतजार है कि कब मलबा हटेगा और वे अपने परिजनों के शव इकट्ठा कर पाएंगे।
श्मशान में बदल चुके हैं गांव
जो कहानी शौकत की दिखाई पड़ती है, वैसा ही हाल इस समय वायानाड के कई परिवारों का है। इस लैंडस्लाइड की वजह से सबसे ज्यादा प्रभावित वाला इलाका मुंडकई ही रहा है। यहां ना कोई घर दिखाई पड़ता है ना किसी तरह की कोई सड़क मौजूद है। पूरी तरह यह गांव ही श्मशान में तब्दील हो चुका है जहां बस लाशें पड़ी हैं और अपनों को खोजने की एक जद लोग रो रहे हैं और अपनों को खोजने की जद्दोजहद।
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कितनी मौतें, कितने लापता?
वायनाड में इस समय हालात ऐसे बन चुके हैं कि मुख्यमंत्री के विजयन को सामने से आकर कहना पड़ रहा है कि अब जिंदा तो कोई बचा ही नहीं है, बस शवों को बाहर निकालने की तैयारी की जा रही है। इस प्राकृतिक आपदा में आधिकारिक मौत का आंकड़ा अभी 210 चल रहा है, लेकिन 218 लोग मिसिंग बताए जा रहे हैं। इसी वजह से न सिर्फ मौत का आंकड़ा और ज्यादा बढ़ने वाला है बल्कि कहना पड़ेगा कि कई और घर अभी उजाड़ने जा रहे हैं।
शौकत की कहानी
शौकत से जब बात की गई तो उन्होंने बड़े विस्तार से अपनी आपबीती बताई। वे कहते हैं कि मेरा सब कुछ बर्बाद हो चुका है, मैंने सब खो दिया. मेरा भाई मेरा परिवार अब कोई नहीं बचा है। अभी तक सिर्फ चार शव बरामद हो पाए हैं, मेरी पत्नी और मेरे एक बच्चे की जान तो सिर्फ इसलिए बच गई क्योंकि पहले लैंडस्लाइड के बाद ही वे पहाड़ों की ओर ऊपर भाग गए थे। आज जब मैं देखता हूं तो मेरा दो मंजिला मकान जो खून पसीने की मेहनत से बनाया था, वो मलबे में तब्दील हो चुका है, मेरे पास जाने के लिए अब कोई जगह नहीं बची है।
क्या चुनौतियां आ रहीं?
शौकत की कहानी आपको इसलिए बताई जा रही है जिससे यह पता चल सके कि वायनाड में सिर्फ हालात खराब नहीं है बल्कि कहना चाहिए हर बीतते दिन के साथ और बिगड़ते जा रहे हैं। शौकत बताते हैं कि वे वायनाड के लिए बुधवार को निकल चुके थे, लेकिन शुक्रवार को वे मुंडकई गांव पहुंच पाए। उनकी आपबीती से पता चला कि कई गांव से इस समय संपर्क टूट चुका है और सेना और एनडीआरएफ की टीम रस्सियों की मदद से एक जगह से दूसरी जगह जाने की कोशिश में है। 24 घंटे के अंदर में एक टेंपरेरी ब्रिज भी खड़ा कर दिया गया है। अब हालात सुधारने की कोशिश जारी है, लेकिन शौकत जैसे लोगों की जिंदगी क्या फिर सामान्य हो पाएगी, क्या फिर पटरी पर लौट पाएगी, अभी कह पाना काफी मुश्किल है।
Shaju Philip की रिपोर्ट