प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले साल 27 मई को ‘मन की बात’ रेडियो प्रोग्राम में 135 वीं जयंती से ठीक एक दिन पहले विनायक दामोदर सावरकर की जमकर तारीफ की थी। मोदी ने उन्हें साहसिक क्रांतिकारी करार दिया था। कांग्रेस और उदारवादी धड़ा शुरुआत से ही सावरकर का आलोचक रहा है। मराठी ब्राह्मण परिवार में 28 मई, 1883 को पैदा हुए सावरकर ने ही सबसे पहले ‘हिंदुत्व’ शब्द का इस्तेमाल किया था। उन्होंने ‘हिंदुत्व: हिंदू कौन?’ नामक आलेख लिखा था, जिसको लेकर कभी भी एक राय नहीं बन सकी। सावरकर ने पहली बार हिंदू धर्म को राजनीतिक और सांस्कृतिक पहचान के तौर पर पेश किया था। सावरकर ने ही 1857 के सैन्य विद्रोह को भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम करार दिया था। उनके कई कदम बेहद विवादास्पद भी रहे थे। उन्होंने हिटलर की तारीफ की थी और महात्मा गांधी द्वारा अंग्रेजों के खिलाफ छेड़े गए ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ का प्रबल विरोध किया था।
सावरकर ने की थी हिटलर की तारीफ: सावरकर 1937 से 1942 के बीच हिंदू महासभा के अध्यक्ष रहे थे। भारत और पूरी दुनिया के लिए यह अवधि बेहद महत्वपूर्ण थी। सावरकर ने इस दौरान कई बार भारत की विदेश नीति पर अपना रुख स्पष्ट किया था। खासकर जर्मनी और इटली के संबंध में वह ज्यादा मुखर थे। इतालवी शोधकर्ता मरजिया कासोलरी ने इस दौरान सावरकर द्वारा दिए गए भाषणों का संकलन किया है, जिसमें हिटलर और नाजी दर्शन के प्रति उनका लगाव दिखता है। माना जाता है कि ऐसे ही एक भाषण में उन्होंने कहा था कि जर्मनी और इटली को नाजी या फासीवाद की जादुई छड़ी के स्पर्श की ही जरूरत थी, जिसके दम पर दोनों देशों ने आश्चर्यजनक तरीके से वापसी की और खुद को शक्तिशाली बनाया। बकौल सावरकर, ये दोनों ‘वाद’ जर्मनी और इटली के लिए अनुकूल और टॉनिक की तरह थे, जिनकी उनको जरूरत थी।
‘भारत छोड़ो आंदोलन’ का विरोध: विनायक दामोदार सावरकर के विचार महात्मा गांधी से बिल्कुल ही मेल नहीं खाते थे। सावरकर ने खिलाफत आंदोलन के दौरान गांधीजी द्वारा मुस्लिमों का तुष्टिकरण करने की तीखी आलोचना की थी। उन्होंने कांग्रेस के उस दावे को भी खारिज किया था कि वह भारत के समस्त हिंदुओं के हितों का प्रतिनिधित्व करती है। महात्मा गांधी ने 8 अगस्त, 1942 को ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन का आगाज करते हुए सरकारी सेवा में लगे सभी लोगों से अपना पद त्यागने का आह्वान किया था। सावरकर ने हिंदू महासभा के सदस्यों से इसका बहिष्कार करने की अपील की थी। साथ ही कहा था कि जो जहां और जिस पद पर काम कर रहे हैं, वे अपने-अपने पदों पर बने रहें।
