उरी हमले के बाद से देशभर में पाकिस्तान के खिलाफ लड़ाई की आवाज बुलंद की जा रही है। देशभर में भावना है कि 18 शहीदों का बदला पाकिस्तान से लिया जाए। लेकिन पाकिस्तान से लगती सीमा के पास बसे गांवों के लोगों का रुख इससे अलग है। पंजाब के तरन तारण के राजोके गांव के लोग वर्तमान माहौल से परेशान हैं। गांव के सुखबीर सिंह का कहना है कि माहौल चिंताजनक है लेकिन विश्वास है कि लड़ाई नहीं होगी। उन्होंने कहा, ”उरी हमला दुर्भाग्यपूर्ण था और पाकिस्तान इसमें शामिल था। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हमें पाकिस्तान पर हमला कर देना चाहिए। किसी देश को झुकाने के लिए और भी तरीके होते हैं।” सुखबीर के परिवार ने 1965, 1971 और 1999 की जंग में हुई तबाही के बाद पक्का घर नहीं बनवाया। पंजाब की 553 किलोमीटर सीमा पाकिस्तान से लगती है। यहां पर 1871 गांवों को सीमाई गांव का दर्जा दिया गया है।
राजोके गांव के पुलिस कांस्टेबल स्वर्ण सिंह ने बताया, ”सीमा के पास बसे गांवों के लोगों की जिंदगी हमेशा मुश्किल होती है। मैंने अपनी आंखों से देखा है कि गांव के सभी घर मिट्टी के बने हुए थे क्योंकि लोगों को डर लगता था कि कभी भी युद्ध हो सकता है। हमारे गांवों पर आतंकवाद का भी सबसे ज्यादा असर पड़ा। फिर कारगिल की जंग हुई। लेकिन उस कड़वे अनुभव के बावजूद लोग यहां पर रहे। हम कोई और जंग नहीं चाहते।” रत्तोके गांव के रहने वाले हरनाम सिंह कहते हैं, ”कारगिल युद्ध के समय हम केवल दूरदर्शन देखा करते थे। लेकिन अब हमारे गांव में भी कई सारे चैनल आते हैं। कई चैनल पाकिस्तान से जंग का पक्ष ले रहे हैं। लेकिन उन्हें समझना चाहिए कि जंग होने पर दिल्ली और लाहौर पर सबसे पहले असर पड़ेगा। हम लड़ाई का पक्ष नहीं लेते। पिछले 15 साल में हमारे गांव में स्थायित्व आया है और हम फिर से विस्थापन नहीं चाहते।”
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हरनाम के 80 वर्षीय दादा सुबेध सिंह ने कहा, ”राजनेता कुछ भी कर सकते हैं। सीमा के दोनों तरफ के लोगों को सबसे पहले तकलीफ मिलेगी। पाकिस्तान के खिलाफ लड़ाई छेड़ने से पहले हमें पूछा जाना चाहिए।” स्थानीय विधायक वीरसा सिंह वल्थोटा ने बताया, ”1965 के युद्ध के दौरान पाकिस्तानी सेना मेरे विधानसभा क्षेत्र के 35 गांवों में घुस आई थी। जो कुछ भी उन्हें मिला वे उसे ले गए। आपको हैरानी होगी वे लकड़ी के दरवाजे तक ले गए। मेहदीपुर, रत्तोके, मारिके, खेमकरण, कलस और मियां वाला गांवों को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ।”
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