बंटवारे के बाद राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने एक प्रार्थना सभा के दौरान 4 जनवरी, 1948 को कश्मीर मुद्दे पर अपने विचार रखे थे। उनके इस भाषण के कुछ अंश नीचे प्रस्तुत किए गए हैं:
“आज हर तरफ जंग की चर्चा है। सबको डर है कि दोनों देशों के बीच एक युद्ध होने को है। अगर ऐसा होता है तो यह भारत और पाकिस्तान, दोनों के लिए आपदा साबित होगा। भारत ने संयुक्त राष्ट्र को पत्र लिखकर समझौते की अपील की है। इस पर पाकिस्तान के नेताओं जफरुल्ला खान और लियाकत अली ने लंबे-लंबे बयान जारी किए हैं। मुझे उनके तर्क समझ नहीं आते। अगर कोई मुझसे पूछे कि क्या मैं केन्द्र सरकार द्वारा संयुक्त राष्ट्र से मदद मांगने के फैसले के साथ हूं या नहीं, तो मैं कहूंगा कि मैं हूं भी, नहीं भी। मैं उनके इस कदम के साथ हूं क्योंकि आखिरकार वे और क्या करेंगे? उन्हें भरोसा है कि वे जो कर रहे हैं, वह सही है। अगर कश्मीर की सीमा के बाहर से छापेमारी हो रही है, तो इसका मतलब यही है कि ऐसा पाकिस्तान की शह से हो रहा है। पाकिस्तान इससे इनकार कर सकता है, लेकिन इनकार से मामला नहीं सुलझता। कश्मीर ने कुछ शर्तों के साथ भारत में रहने पर स्वीकृति दी है। अगर पाकिस्तान कश्मीर को परेशान करता है और कश्मीर के नेता शेख अब्दुल्ला केन्द्र से मदद मांगते हैं तो उन्हें मदद करनी होगी। इसीलिए मदद कश्मीर भेजी गई।”
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“पाकिस्तान से बार-बार कश्मीर से बाहर निकलने और भारत के साथ द्विपक्षीय मुद्दों पर समझौता करने के लए कहा गया है। अगर इस तरह से कोई रास्ता नहीं निकलता तो जंग होनी ही हैै। जंग की संभावना को खत्म करने के लिए केन्द्र सरकार ने कदम उठाए। वे सही कर रहे हैं या गलत, ये ईश्वर जाने। इस मुद्दे पर पाकिस्तान का रुख चाहे जो होता, मैं पाकिस्तान के प्रतिनिधियों को भारत बुलाता और हमने मिलने, मुद्दे पर चर्चा करते और कुछ रास्ता निकालते। पाकिस्तान कहता है कि वह दोस्ताना समझौता चाहता है लेकिन ऐसे समझौते के लिए उचित परिस्थितियां नहीं बनाता। इसलिए मैं पाकिस्तान के जिम्मेदार नेताओं से कहना चाहता है कि भले ही हम दो देश हैं’- जो कि मैं कभी नहीं चाहता था- मगर हमें एक समझौता करना ही होगा ताकि दोनों पड़ोसी शांति से रह सकें। अगर हम यह मान भी लें कि सब भारतीय बुरें हैं, मगर पाकिस्तान धर्म के नाम पर बना नया देश है और उसे खुद को साफ रखना चाहिए। लेकिन वे ऐसा कोई दावा नहीं करते। मेरे विचार से, यह उनका दायित्व है कि भारत के साथ मैत्रीपूर्ण समझौता करें। गलतियां दोनों तरफ से हुई हैं, इसमें कोई शक नहीं। मगर इसका मतलब यह तो नहीं कि हम उन्हीं गलतियों को दोहराते रहे। इस तरह तो हम खुद को एक जंग में तबाह कर बैठेंगे और पूरा उप -महाद्वीप किसी तीसरी ताकत के हाथ में चला जाएगा। यह हमारे लिए सबसे बुरा होगा। मैं यह सोचकर ही कांप जाता है। इसलिए दोनों गणतंत्रों को समझौता करना ही चाहिए।”
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“अब जरा दिल्ली की बात करते हैं। मुझे बृजकिशन में कल शाम हुई कुछ घटनाओं के बारे में पता चला है। हमने कैंप में कुछ लोगों से बात की। कैंप से कुछ ही दूरी पर कुछ मुस्लिम घर हैं। कैंप के चार से पांच सौ लोग जिनमें ज्यादातर महिलाएं और बच्चे थे- ने कैंप में घोषणा की कि घरों को कब्जे में ले लो। मुझे बताया गया है कि वे ऐसी हिंसा में नहीं पड़ते। कुछ घर खाली थे, कुछ के मालिक घर में मौजूद थे। उन लोगों ने उन घरों पर भी कब्जा करने की कोशिश की जिनमें पहले से लोग मौजूद थे। पुलिस करीब ही थी, वह मौके पर गई और रात करीब 9 बजे तक स्थिति नियंत्रण में आ गई। पुलिस वहीं पर है। मैं समझता है कि उन्हें आंसू गैस का इस्तेमाल करना पड़ा। इससे इंसान मरता नहीं, मगर उसे दर्द बहुत होता है। मुझे बताया गया है कि ऐसा ही कुछ आज भी हुआ।”
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“मैं बस इतना कहना चाहता हूं कि यह हमारे लिए शर्म की बात है। क्या शरणार्थियों को अपने कष्टों से यह सीख नहीं मिली कि वे खुद पर थोड़ा काबू रखें? किसी दूसरे के घर में घुसकर कब्जा करना बेहद गलत है। उनकी जरूरतें और उन्हें शरण देना सरकार की जिम्मेदारी है। आज सरकार हमारी अपनी है, लेकिन अगर हम अपनी ही सरकार को चुनौती देंगे और जबरदस्ती घरों पर कब्जा करेंगे तो सरकार ज्यादा देर तक टिक नहीं पाएगी। यह और भी शर्मनाक है कि ऐसी घटनाएं भारत की राजधानी में हो रही हैं जहां पूरी दुनिया के राजदूत रहते हैं। क्या हम उन्हें यह दिखाना चाहते हैं कि हमें हर चीज पर कब्जा कर लेते हैं? दुख की बात तो ये है कि महिलाओं और बच्चों को ढाल बनाकर इस्तेमाल किया गया है। यह बर्बरतापूर्ण एवं असामाजिक व्यवहार है। मैं सभी शरणार्थियों से कहना चाहूंगा कि इस तरह व्यवहार ना करें। उन्हें शांत होने दें। अगर वे नहीं होते तो भारत और पाकिस्तान को जंग की जरूरत नहीं पड़ेगी। हम ऐसे ही आपसी तनाव में एक-दूसरे को खत्म कर बैठेंगे। हमारे हाथ से दिल्ली भी जा सकती है और पूरी दुनिया की नजर में हम हंसी के पात्र बन जाएंगे। अगर हमें भारत को एक आजाद देश बनाए रखना है, तो हमें ऐसी घटनाओं को होने से रोकना होगा।” (Source: Collected Works of Mahatma Gandhi, Vol. 90, pg 356-58)





