प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में नाविक समुदाय उनसे नाराज होकर अनिश्चित काल के लिए हड़ताल पर हैं। द टेलिग्राफ की रिपोर्ट के मुताबिक गंगा के घाटों पर नाव चलाने वाले तमाम नाविक नरेंद्र मोदी की क्रूज योजना के खिलाफ हैं। उनका कहना है कि इससे उनके रोजगार पर संकट गहरा जाएगा। गंगा नदी में सैलानियों को सुविधा और टूरिज्म को बढ़ावा देने के लिए क्रूज सेवा शुरू की गई है। इसमें एक सेवा काम संचालन में है, जबकि दूसरी शुरू होने की राह देख रही है।

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक ‘गंगा पुत्र’ समुदाय के 1,100 नाविक 28 दिसंबर से हड़ताल पर हैं। उन्होंने दशाश्वमेध घाट और राजघाट तक अपनी नावों को एक साथ पार्क कर दिया है। उनकी कोशिश क्रूज शिप को आगे बढ़ने से रोकने की है। नाविकों का कहना है कि क्रूज को गंगा में लाकर उनके पेट पर लात मारने का काम किया जा रहा है। उन्होंने आरोप लगाया कि उनकी नावों में भी संगीत से लेकर पुजारी तक की सुविधा है। लेकिन, केंद्र और राज्य सरकार का टूरिज्म विभाग सिर्फ कॉरपोरेट लोगों के साथ खड़ा है। इसीलिए क्रूज के जरिए उनकी रोजी-रोटी छीनी जा रही है।

नाविकों की हड़ताल से यहां आए टूरिस्ट बेमन वापस लौट रहे हैं। क्योंकि, दुनिया के सबसे प्राचीन शहरों में शुमार वाराणसी को महसूस करने का असली तरीका नौका विहार ही है। सैलानी नावों में सवार होकर गंगा किनारे बने 84 घाटों को देखते हैं और प्राचीन शहर की खूबियों और इसकी खासियत को समझते हैं। अब हड़ताल की वजह से नौका-विहार का मुमकिन नहीं हो पा रहा है। नाविक हड़ताल के जरिए पीएम मोदी पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं।

गौरतलब है कि पहला क्रूज अलकनंदा दो महीने पूर्व ही शुरू किया गया। इसमें एक साथ सौ से अधिक लोग सवार हो सकते हैं। यह क्रूज सेवा रोजाना सुबह और शाम को चलती है। इसकेलिए टूरिस्टों को 200 और 500 रुपये का टिकट लेना पड़ता है। क्रूज का खर्च नाविकों की तुलान में ज्यादा है। लकड़ी की बनी कई नावों में एक साथ 20 लोग बैठ सकते हैं और उन्हें 100 रुपये देने होते हैं। अब दूसरी क्रूज शिप भी आ गई है, लेकिन नाविकों के गुस्से को देखते हुए इसे नदी में नहीं उतारा जा सका है। स्थानीय प्रशासन लगातार हड़ताल खत्म करने को लेकर बातचीत कर रहा है।