कृषि मंत्रालय द्वारा वित्त मामलों की संसदीय समिति को सौंपी रिपोर्ट के हवाले से आई खबर को केंद्रीय कृषि मंत्री राधामोहन सिंह ने यह कहते हुए खारिज कर दिया है कि नोटबंदी से किसानों की आर्थिक स्थिति पर कोई बुरा असर नहीं पड़ा था। उन्होंने सोशल मीडिया पर जारी अपने वक्तव्य में सफाई देते हुए कहा है कि कुछ मीडिया चैनलों एवं समाचार पत्रों द्वारा चलाई जा रही खबर सही नहीं है। उन्होंने लिखा है, “कुछ मीडिया चैनलों एवं समाचार पत्रों द्वारा यह खबर चलाई जा रही है कि कृषि विभाग ने यह माना है कि किसानों पर नोटबंदी का बुरा असर पड़ा था और किसान कैश की किल्लत के कारण बीज नहीं खरीद पाए थे। यह वास्तविक तथ्यों के बिल्कुल विपरीत है। वास्तविक तथ्य ये हैं।”

इसके साथ ही कृषि मंत्री ने अपने प्रेस नोट में नोटबंदी से पहले और बाद की स्थितियों का आंकड़ा पेश किया है। मंत्री की तरफ से कहा गया है, “नोटबंदी के कारण किसानों को कोई कठिनाई न हो उसके लिए कई उपाय किए गए थे, जिसका फल यह रहा कि पूरे देश में वर्ष 2016-17 के पूरे रबी सीजन में बीज का वितरण 348.58 लाख टन रहा जो कि वर्ष 2015-16 (304.04 लाख टन) से अधिक था। यह भी उल्लेखनीय है कि वर्ष 2016-17 में गेहूँ का उत्पादन भी 98.51 मिलियन टन था जो कि 2015-16 के 92.24 मिलियन टन से अधिक था।” मंत्री ने लिखा है कि नोटबंदी देश का फैसला राष्ट्र निर्माण में एक ऐतिहासिक एवं साहसिक कदम था। जिसका किसानों या रबी फसल पर कोई बुरा असर नही पड़ा था। बतौर मंत्री गेहूं फसल का आच्छादित क्षेत्रफल भी 2015-16 के मुकाबले 2016-17 में 3.77 लाख हेक्टेयर ज्यादा था।

कृषि मंत्री ने लिखा है, “नोटबंदी के समय राज्य सरकारों द्वारा बीज निगमों व अन्य संस्थाओं को निर्देश दे दिया गया था कि वे पुराने 500-1000 के नोटों के माध्यम से बीज की बिक्री सुनिश्चित कराएँ। भारत सरकार ने भी ये अनुमति राष्ट्रीय बीज निगम व अन्य संस्थाओं को दे दी थी।जिससे किसानों को बीज मिलने में कष्ट ना हो।” प्रेस नोट में कहा गया है कि राष्ट्रीय बीज निगम द्वारा 1.38 लाख क्विंटल बीज न बेच पाना एक सामान्य स्थिति है जो कि विभिन्न कारणों से हरेक साल उत्पन्न होती है।