तेल और प्राकृतिक गैस निगम लिमिटेड ने गुजरात उद्योग विद्युत कंपनी लिमिटेड के सहयोग से इसे अंजाम दिया। भूमिगत कोयला गैसीकरण में रणनीतिक लाभ के साथ ही पर्यावरणीय और भूगर्भीय स्तर पर भारी-भरकम जोखिम है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह देखते हुए भारत को इस दिशा में सूझबूझ के साथ कदम आगे बढ़ाने होंगे।

क्या है तस्वीर
भूमिगत कोयला गैसीकरण की अब तक की सबसे पहली परियोजना गुजरात के सूरत में चलाई गई। ओएनजीसी ने सूरत जिले के नानी नारोली में गुजरात उद्योग विद्युत कंपनी लिमिटेड (जीआइपीसीएल) के स्वामित्व वाले वास्टन माइन ब्लाक को शोध और विकास से जुड़ी सबसे पहली परियोजना के लिए अपने मातहत लेकर यह काम राष्ट्रीय खनन अनुसंधान केंद्र- स्कोचिंस्की खनन संस्थान (एनएमआरसी-एसआइएम), रूस के साथ सहयोग के जरिए भूमिगत कोयला गैसीकरण प्रौद्योगिकी की स्थापना के मकसद से इस गतिविधि को पूरा किया गया।

ओएनजीसी और नेवेली लिग्नाइट निगम लिमिटेड ने भूमिगत कोयला गैसीकरण के लिए कई जगहों की पहचान की। इनमें गुजरात का ताड़केश्वर और राजस्थान के होडू-सिणधरी और पूर्वी कुर्ला शामिल हैं। भूमिगत कोयला गैसीकरण परियोजनाओं पर प्रगति की रफ्तार सुस्त रही है, लेकिन यह बहस तो छिड़ गई है कि क्या ये पूरी कवायद भारत में कोयले को कार्बन रहित करने का विकल्प बन सकती है?

हाइड्रोजन और आत्मनिर्भरता

कोयला, हाइड्रोजन का स्वाभाविक स्रोत है और संभावित रूप से हाइड्रोजन, भविष्य के लिए शून्य के करीब कार्बन उत्सर्जन करने वाला ऊर्जा का अहम वाहक है। भारतीय कोयले के महज एक छोटे से हिस्से का भूमिगत तौर पर खनन होता है, जबकि बाकी के ज्यादातर हिस्से का खुले-खदानों के जरिए खनन किया जाता है।

कोयले के बड़े भंडार 300 मीटर से ज्यादा की गहराइयों पर उपलब्ध है, जो खनन की पारंपरिक प्रौद्योगिकियों के हिसाब से कम उपयुक्त हैं। भारत के पास लिग्नाइट के भी बड़े भंडार जमा हैं। हालांकि निम्न ऊर्जा तत्व के चलते आर्थिक रूप से इसका खनन मुनाफे का सौदा नहीं होता। मध्यवर्ती गहराई में स्थित निम्न दर्जे वाले भारतीय कोयले के तकरीबन 66 फीसद हिस्से को भूमिगत स्तर पर गैसीकृत करके सिंथेटिक प्राकृतिक गैस, मिथेनाल, पेट्रोल, डीजल और हाइड्रोजन तैयार किए सकते हैं।

उत्सर्जन में कमी

भारतीय कोयले में राख की बड़ी मौजूदगी से कार्यकारी चुनौती पेश आती है। इस वजह से घरेलू तौर पर खनित किए गए कोयले के सतही उपकरणों (जैसे गैसीफायर्स और बायलर्स) में इस्तेमाल कठिन हो जाता है। भूमिगत कोयला गैसीकरण में गहन राख वाले कोयले से ताप मूल्य हासिल करने की अनोखी क्षमता मौजूद है।

इसके लिए सतह पर कोयले के आवागमन की आवश्यकता नहीं होती, जिससे लागत घट जाती है। साथ ही रेल (या ट्रकों) के जरिए कोयले के परिवहन से जुड़े स्थानीय प्रदूषणकारी कारकों में भी कमी आती है। इस कवायद से कोयले के भंडारण से जुड़े प्रदूषण में भी गिरावट आती है। भूमिगत कोयला गैसीकरण के लिए किसी भी तरह की सतही गैसीकरण प्रणालियों की दरकार नहीं होती, लिहाजा इसकी पूंजीगत लागत नीची होती है।

कार्बन प्रबंधन

ग्रीन हाउस गैसों (मुख्य रूप से कार्बन डाइआक्साइड) में कमी लाने के लिए कार्बन कैप्चर, इस्तेमाल और भंडारण की कवायद प्रौद्योगिकी के एक प्रमुख घटक के तौर पर उभरकर सामने आई है। इसके लिए मुख्य रूप से भूगर्भीय जब्ती का प्रयोग किया जाता है। भूमिगत कोयला गैसीकरण प्रक्रिया के जरिए खाली जगह में कार्बन डायआक्साइड के भंडारण में अनेक फायदे हैं।

पहला, भूमिगत कोयला गैसीकरण की प्रक्रिया खदानों के बीच अपेक्षाकृत बड़ी सुराख (चौड़ाई में करीब 5-8 मीटर तक) तैयार करती है। तीन सौ मीटर के दायरे वाले कुओं में एक इकलौते प्रज्ज्वलन से 6000-15000 घन मीटर का खाली स्थान तैयार हो सकता है, जिसमें 8000 टन कार्बन डाइआक्साइड का भंडारण हो सकता है। तीसरे, कार्बन डाइआक्साइड के प्रति कोयले की भौतिक प्रतिक्रिया से जब्ती की कार्रवाई को बढ़ावा मिल सकता है।

क्या है प्रक्रिया

भूमिगत कोयला गैसीकरण के तहत कोयले की तह का यथास्थान दहन कर उपयोगी गैस का उत्पादन किया जाता है। कोयले की तह में भाप और हवा (या आक्सीजन) को प्रवेश कराकर गैसीकरण की प्रक्रिया शुरू कर दी जाती है। इसके लिए 1000 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा तापमान की दरकार होती है।

इनसे निर्मित गैसों में (सिंथेटिक गैस या सिनगैस) प्रमुख रूप से कार्बन मोनोआक्साइड, कार्बन डाइआक्साइड, हाइड्रोजन, मिथेन और अल्प मात्रा में हाइड्रोजन सल्फाइड और कुछ ऊंचे परमाणु भार वाले पायरोलिसिस उत्पाद शामिल होते है। इस्तेमाल चाहे कुछ भी हों, लेकिन सिनगैस को वाणिज्यिक तौर पर मौजूद प्रौद्योगिकियों के जरिए साफ करना जरूरी होता है। ऐसा करके उनसे अशुद्ध कण बाहर निकाले जाते हैं और उन्हें इस्तेमाल लायक बनाया जा सकता है।

क्या कहते हैं जानकार

भूमिगत कोयला गैसीकरण से रणनीतिक फायदे जुड़े हैं। इनमें घरेलू स्रोत का इस्तेमाल शामिल है, जो ऊर्जा सुरक्षा देने के साथ-साथ वैकल्पिक स्वच्छ प्रौद्योगिकियों की तुलना में लागत प्रतिस्पर्धा मुहैया कराते हैं। साथ ही भारत में सीमित भू संसाधनों की मांग भी कम रहती है।

वीके सारस्वत, सदस्य, नीति आयोग (विशेषज्ञ पैनल में)

  • भूमिगत कोयला गैसीकरण परियोजनाओं का पूंजीगत व्यय उसके समकक्ष सतही गैसीकरण इकाइयों के मुकाबले काफी कम हो सकता है क्योंकि यूसीजी में गैसीकरण इकाई की खरीद की जरूरत नहीं होती। कोयला खनन, कोयला परिवहन और राख प्रबंधन पर कार्यकारी व्यय भी भूमिगत कोयला गैसीकरण में काफी घट जाता है।
  • नलिन सिंघल, विशेषज्ञ एवं सीएमडी-भेल (विशेषज्ञ पैनल में)