केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति (सीईसी) ने उच्चतम न्यायालय में पिछले महीने जमा अपनी रिपोर्ट में यह भी कहा कि ‘टाइगर रिजर्व’ और संरक्षित क्षेत्र में चिड़ियाघर बनाने या सफारी की दी गई अनुमति को तुरंत वापस लिया जाना चाहिए। समिति ने कहा है कि केवल ऐसे स्थान पर घायल या अशक्त जानवरों को बचाने या पुनर्वास के लिए गतिविधियों की मंजूरी दी जा सकती है।
उच्चतम न्यायालय द्वारा गठित समिति ने यह टिप्पणी उत्तराखंड के ‘कार्बेट टाइगर रिजर्व’ के बफर जोन में टाइगर सफारी स्थापित किए जाने से जुड़े मामले में की है। राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) की ओर से 2012 में जारी और 2016 एवं 2019 में संशोधित दिशानिर्देश के मुताबिक टाइगर रिजर्व के बफर जोन या उससे जुड़े सीमांत इलाकों में टाइगर सफारी की शुरुआत की जा सकती है, ताकि ‘मुख्य और अहम बाघ पर्यावासों पर से पर्यटन का दबाव कम किया जा सके और बाघ संरक्षण के प्रति सार्वजनिक समर्थन के लिए जागरूकता पैदा की जा सके।’
मंत्रालय ने भी पिछले साल जून में वन संरक्षण अधिनियम-1980 के तहत आवश्यक मंजूरी को खत्म करते हुए कहा था कि वनक्षेत्र में चिड़ियाघर की स्थापना को गैर-वन गतिविधि नहीं माना जाना चाहिए। उसने कहा था कि केवल अपवाद स्वरूप मामले में ही संरक्षित क्षेत्र के बफर जोन या उससे संबंधित सीमांत इलाकों में वन भूमि पर चिड़ियाघर के निर्माण पर विचार किया जा सकता है।
समिति ने कहा है कि केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण (सीजेडए) को बाघ अभयारण्यों, वन्यजीव अभयारण्यों, राष्ट्रीय उद्यानों, पशु गलियारों और पशु फैलाव मार्गों के भीतर चिड़ियाघरों और सफारी की स्थापना पर विचार और अनुमोदन नहीं करना चाहिए। समिति के अनुसार, एनटीसीए को यह अनिवार्य करना चाहिए कि टाइगर सफारी की स्थापना ‘केवल अधिसूचित टाइगर रिजर्व और बाघों के पर्यावास के बाहर’ की जाए।
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘बाघ गलियारों और बाघों के फैलाव वाले मार्गों से हमेशा बचा जाना चाहिए, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि पर्यटन के विकास के लिए बाघों के पर्यावास की बलि न दी जाए।’ समिति ने एनटीसीए को फटकार लगाते हुए कहा कि टाइगर सफारी की स्थापना पर उसके दिशानिर्देशों का जोर ‘पर्यटन को बढ़ावा देने पर अधिक और लुप्तप्राय राष्ट्रीय पशु के संरक्षण पर कम है और इसलिए इसकी तत्काल समीक्षा का अनुरोध किया जाता है।’