तिरुपति बालाजी मंदिर के प्रसाद को लेकर विवाद चल रहा है। मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने दावा किया है कि उस प्रसाद में मिलावट हुआ करती थी, घी की गुणवक्ता खराब रहती थी। उन्होंने तो यहां तक कहा कि जानवर की चर्बी का इस्तेमाल भी हो रहा था। अब इस विवाद ने काफी तूल पकड़ लिया है। जिस मंदिर को लेकर दावा हुआ है, वहां लाखों की संख्या में भक्त आते हैं, कई सालों से आ रहे हैं, उन्हें प्रसाद भी मिलता है। लेकिन उसी प्रसाद की क्वालिटी को लेकर सारा बवाल शुरू हुआ है। यहां पर आपको बताते हैं कि आखिर यह विवाद है क्या, शुरू कैसे हुआ और इसका इतिहास क्या है।
यह विवाद शुरू कैसे हुआ?
असल में आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू एनडीए की एक बैठक में कहा था कि जो तिरुमाला लड्डू मिलता था, वो खराब क्वालिटी का होता था, वो घी की जगह जानवरों की चर्बी का इस्तेमाल कर रहे थे। जब से टीडीपी की सरकार आई है, पूरी प्रक्रिया को साफ किया गया है और लड्डू को गुणवक्ता को सुधारा गया है।
जगन की पार्टी ने क्या बोला?
अब इस पूरे विवाद पर और नायडू के दावों पर जगन रेड्डी की पार्टी की तरफ से मुंहतोड़ जवाब दिया गया है। तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम के पूर्व चेयरमेन और YSRCP के वरिष्ठ नेता वाई वी सुबा रेड्डी ने कहा कि नायडू राजनीतिक फायदे के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। जो घी पहले इस्तेमाल होता था, वो टॉप क्वालिटी का था, राजस्थान और गुजरात से जो गाय आती थीं, उनके जरिए निकलवाया जाता था। नायडू जो भी बोल रहे हैं वो पूरी तरह बकवास है, बिना तथ्यों के बोला गया है। बड़ी बात यह है कि तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम के ही एक और पूर्व चेयरमेन ने भी नायडू के दावों का खंडन किया है।
तिरुपति के लड्डुओं में जानवरों की चर्बी के मामले ने पकड़ा तूल
उन्होंने कहा है कि जो अधिकारी घी निकालने का काम करते थे, उन्होंने नायडू और जगन दोनों की सरकारों में काम कर रखा है। उस समय क्वालिटी को लेकर कभी कोई सवाल नहीं उठाया गया। आंध्र प्रदेश की कांग्रेस नेता वाई एस शर्मिला ने तो दो टूक कहा है कि अगर दावों में कोई भी सच्चाई है तो सीएम को सीधे सीबीआई जांच करवानी चाहिए।
कौन सी रिपोर्ट की बात हो रही?
असल में जो मंदिर बोर्ड है उसने लड्डू में इस्तेमाल होने वाले घी की जांच करवाई थी। उसकी तरफ से घी को गुजरात स्थित पशुधन लैब (NDDB CALF Ltd.) भेज दिया गया था। यह 9 जुलाई की तारीख थी जब घी का सैंपल लैब के पास भेजा गया था। उस जांच की रिपोर्ट फिर 16 जुलाई को आई जिसमें बताया गया कि घी का एक सैंपल ठीक नहीं निकला। राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड की फूड लैब काल्फ (CALF) ने दावा किया कि लड्डू बनाने में जिस घी का इस्तेमाल हो रहा था, उसमें जानवरों की चर्बी और फिश ऑयल भी मिला।
ये प्रसाद बनता कैसे है?
अब इस प्रसाद को लेकर विवाद तो हो रहा है, लेकिन इससे पहले तक जब भी खबरें आती थी, जिक्र सिर्फ उस प्रसाद की भव्यता का होता था। अब इस प्रसाद को लेकर बताया जाता है कि इसे एक स्पेशल किचन में बनाया जाता है, आंध्र प्रदेश में इसे Potu कहते हैं। वही प्रसाद बनाने की जिम्मेदारी भी एक खास वर्ग को दी जाती है जो पिछली कई सदियों से इसी काम में लगे हुए हैं, यानी कि उन लोगों के लिए यह संस्कृति का हिस्सा बन चुका है। ब़ड़ी बात यह है कि जो इस प्रसाद को बनाते हैं, उन्हें अपना सिर मुंडवाना पड़ता है, सिर्फ एक सिंगल कपड़ा पहनने की अनुमति रहती है। इस प्रसाद को बनाने के लिए घी के अलावा, चना बेसन, चीनी, चीनी के छोटे टुकड़े, काजू, इलायची, कपूर और किशमिश का उपयोग होता है। यह प्रसाद इतना खास है कि 2014 में इसे GI टैग भी मिल चुका है।
इस प्रसाद को बनाने के लिए हर दिन 400 से 500 किलो घी, 750 किलो काजू, 500 किलो किशमिश का इस्तेमाल होता है। ऐसे में रुपये भी काफी लगते हैं और क्वांटिटी भी काफी ज्यादा रहती है।
प्रसाद का इतिहास क्या है?
भगवान वेंकटेश्वर को प्रसाद का भोग लगाने की पृथा आज से 300 साल पुरानी है। तिरुपति में जो मंदिर है, वहां पर 1715 से ही भक्तों को लड्डू का प्रसाद दिया जा रहा है। यह एक ऐसी परंपरा है जो लगातार चली आ रही है, इसमें कोई बदलाव नहीं हुआ है। जानकार मानते हैं कि इसी वजह से इस प्रसाद की अहमियत ज्यादा है। लेकिन अब एक बड़ी बात यह पता चली है कि इसी प्रसाद को लेकर विवाद पहले भी हुआ है। कई साल पहले एक शख्स ने शिकायत की थी, तब भी गुणवक्ता को लेकर ही सवाल उठा था।
पहले भी हुआ प्रसाद को लेकर बवाल?
अमर उजाला के अखबार के मुताबिक 1985 में भी मंदिर के प्रसाद को लेकर विवाद हुआ था। तब कहा गया था कि अब प्रसाद को वैज्ञानिक पद्धति से बनाया जाएगा। असल में एक शख्स ने शिकायत की थी कि उन्होंने जो लड्डू खरीदे, उनमें फफूंदी और कील निकली। उस समय यह मामला काफी तूल पकड़ा था, आंध्र प्रदेश की विधानसभा में जबरदस्त हंगामा भी देखने को मिला। अब एक बार फिर उसी प्रसाद को लेकर बवाल शुरू हो गया है। इसे हिंदू आस्था से जोड़कर भी देखा जा रहा है।