राम सेतु या एडम ब्रिज, तमिलनाडु के तट पर पंबन द्वीप को श्रीलंका के तट पर मन्नार द्वीप से जोड़ने वाला एक लाइमस्टोन निशान है, जो दशकों से राजनीतिक, धार्मिक और पारिस्थितिक विवादों का केंद्र बिंदु रहा है। ‘पुल’ को लेकर चल रही वर्तमान राजनीति उस हिंदू पौराणिक मान्यता से उपजी है, जिसमें बताया गया है कि इसका निर्माण वानरों की एक सेना ने किया था, जिसका नेतृत्व भगवान हनुमान ने किया था। यह सेना सीता को बचाने के लिए लंका की ओर जा रही थी, जिन्हें रावण ने बंदी बनाया हुआ था। पुल के ढांचे को अब्राहमिक धर्मों में भी महत्वपूर्ण बताया गया है। ऐसा माना जाता है कि यह आदम के पैरों के निशान थे, जब उन्हें स्वर्ग से निकाल दिया गया था, जिससे इसे ‘एडम ब्रिज’ नाम दिया गया।

जिस जगह पर यह पुल है, वह सामरिक रूप से भी महत्वपूर्ण है। 19वीं शताब्दी की शुरुआत में, अंग्रेजों ने बड़े जहाजों को भारतीय तट पर नेविगेट करने या पूर्वी और पश्चिमी तटों के बीच यात्रा करने में सक्षम बनाने के लिए इस चैनल को ड्रेज करने की योजना बनाई थी। जबकि ब्रिटिश योजनाएं कभी सफल नहीं हुईं, इस परियोजना को स्वतंत्र भारत में सेतुसमुद्रम परियोजना के रूप में पुनर्जीवित किया गया था।

हालांकि, इस प्रस्ताव का उन समूहों द्वारा लगातार विरोध किया गया, जो ढांचे और रामायण के बीच संबंध में विश्वास करते हैं। नतीजतन, स्वतंत्र भारत के राजनीतिक परिदृश्य में इस बात पर बहस छिड़ गई कि क्या राम सेतु वास्तव में भगवान राम द्वारा बनाया गया था या नहीं।

राम सेतु के प्रति औपनिवेशिक रवैया

यह ध्यान देने योग्य है कि भारतीय धार्मिक मान्यताओं को बदनाम करने की औपनिवेशिक प्रथा के विपरीत, जब राम सेतु की बात आई, तो यूरोपीय दृष्टिकोण ने अपने लेखों में ढांचे के आसपास की पौराणिक कथाओं को सूक्ष्म रूप से मजबूत किया। कुछ दिनों में आने वाली दो पुस्तकों – एडम्स ब्रिज (रूटलेज 2023) और राम सेतु (रूपा 2023) में, प्रोफेसर अरूप के. चटर्जी बताते हैं, “उनके पास ज्ञान की जानकारियों के विश्लेषण संबंधी बहुत सतर्क नीति थी।”

चटर्जी कहते हैं, “औपनिवेशिक भूवैज्ञानिकों ने राम सेतु के आसपास के मिथक की सत्यता पर कोई रुख नहीं अपनाया। उन्हें पूरा विश्वास था कि उन्हें यह समझाने की आवश्यकता नहीं है कि राम एक वास्तविक व्यक्ति थे या नहीं, बल्कि पौराणिक कथाओं को बहुत सम्मान से देखते थे क्योंकि उनके पास बेहतर व्याख्या नहीं थी।”