जहां कोरोना विषाणु ने पूरी दुनिया में मौत का खौफ सामने ला दिया है और उस के प्रकोप से सारी दुनिया दहल रही है। वहीं, भारत में 25 मार्च से पूरे देश में कोरोना विषाणु संक्रमण को रोकने के लिए देश में बंदी की घोषणा की गई जिससे पूरे देश की रफ्तार ठहर गई उद्योग धंधे बंद हो गए हैं।
हरिद्वार, ऋषिकेश, टिहरी, देवप्रयाग और उत्तरकाशी के गंगा तट भी विरान हो गए हैं। हर की पौड़ी समेत सभी गंगा घाटों गंगा आरती देखने के लिए श्रद्धालुओं पर पाबंदी लगा दी गई है जिससे यहां घाट सूने पड़े हैं। गंगा में लोग ना तो फूल डाल रहे हैं और ना ही पूजा का सामान डाल रहे हैं। मोटर कारें लोगों के गैराज में बंद पड़ी हैं जिससे गंगा तट के इन शहरों की आबोहवा तरोताजा हो गई है और प्रदूषण बहुत कम हुआ हैै जिसका अच्छा असर पर्यावरण पर पड़ा है।
उत्तरकाशी से लेकर हरिद्वार तक के सारे होटल, धमर्शालाएं बंद पड़े हैं। जिस कारण इन होटलों और धमर्शाला का गंदा पानी गंगा नदी में नहीं जा रहा है। हरिद्वार और ऋषिकेश के सभी उद्योग बंद पड़े हैं जिन उद्योगोंं का रसायन युक्त गंदा पानी पहले गंगा में जाता था, अब नहीं जा रहा है। एक अध्ययन के अनुसार पूर्ण बंदी के चलते 12 दिनों में एक अध्ययन के अनुसार गंगा जल उत्तरकाशी से लेकर हरिद्वार तक से 40 से 50 फीसद तक साफ हुआ है। इतना ही नहीं गंगा जल के और स्वच्छ होने से यहां बड़ी संख्या में प्रवासी पक्षियों ने भी डेरा डाल दिया है। गंगा के तटों पर इन पक्षियों को आसानी से बड़े-बड़े समूह में देखा जा सकता है।
गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के पर्यावरण विज्ञान विभाग के पूर्व प्रोफेसर और भारतीय पर्यावरण विज्ञान अकादमी के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉक्टर बीडी जोशी का कहना है कि देश बंदी के 14 दिन में यह देखने में आया है कि इन दिनों में गंगा जल की गुणवत्ता में बहुत सुधार हुआ है और गंगा की स्थिति एकदम बदल गई है। गंगा का जल देश बंदी से पहले के मुकाबले बहुत ही स्वच्छ नजर आ रहा है। बंदी के चलते हरिद्वार और ऋषिकेश में तीर्थ यात्रियों की आवाजाही बंद पड़ी हुई है। ऐसे मे ंगंगा स्नान व अन्य धार्मिक कार्य गंगा किनारे बंद हो गए हैं। उनका कहना है की इसके साथ तीर्थ यात्रियों की भीड़ के चलते हरिद्वार में जो कूड़ा कचरा गंगा में जाता था, अब वह पूरी तरह से बंद है। कारखानों का बंद होना व वाहनों की आवाजाही बंद होने से वायु में प्रदूषण काफी कम हो गया है। वायु प्रदूषण का प्रभाव भी कहीं न कहीं गंगा के जल पर पड़ता था।
इन सब वजहों से गंगा जल प्रदूषण के स्तर में काफी सुधार हुआ है। क्योंकि गंगा में होने वाले कुल प्रदूषण में उद्योगों की हिस्सेदारी 10 फीसद तक है। इसके अलावा अन्य कारणों से प्रदूषण होता है। उन्होंने कहा कि यदि प्रदूषण पर काफी हद तक अंकुश लगा दिया जाए तो गंगा पहले की तरह फिर से स्वच्छ हो सकती है। प्रोफेसर जोशी का कहना है कि 14 दिनों में गंगा में टीडीएस की मात्रा में 500 फीसद की कमी आई है, गंगा में जो कूड़ा कचरा और मल जाता था उसकी मात्रा में 100 यूनिट कमी आई है। इसी तरह घुलीय तत्वों में भारी कमी आने से गंगा के जल की गुणवत्ता में सुधार हुआ है। वहीं, गंगा के जल में आॅक्सीजन की मात्रा के स्तर में भारी सुधार हुआ है। बंदी से पहले गंगा जल में आॅक्सीजन की मात्रा 7.8 एमजी थी, गंगा बंदी के बाद आॅक्सीजन की मात्रा गंगाजल में बढ़कर 8.9 एमजी से 10 एमजी के बीच पहुंच गई है जो गंगा जल में रह रहे मछली कछुए और अन्य जलीय जंतुओं के लिए भी फायदेमंद है। वहीं, गंगा के जल के प्रदूषण में गंगा बंदी के बाद 50 से 60 फीसद कमी आई है।
हरिद्वार की हर की पौड़ी की प्रबंध कारिणी संस्था गंगा सभा के अध्यक्ष पंडित प्रदीप झा के अनुसार हर की पौड़ी पर रोजाना 25 से 30 हजार लोग गंगा की सांध्य कालीन आरती देखने आते थे और गर्मियों के मौसम के समय इनकी तादाद 50 हजार तक पहुंच जाती थी। इसके अलावा रोजाना हर की पौड़ी पर सुबह से रात तक गंगा स्नान करने वाले तीर्थ यात्रियों की तादाद एक से दो लाख के बीच रहती थी और स्नान पर्वों के समय यह तादाद पांच से 25 लाख तक पहुंचती थी। देश में पूर्ण बंदी के कारण तीर्थ यात्रियों के गंगा में अस्थि विसर्जन पर फिलहाल रोक लगी हुई है जिस कारण गंगा में धार्मिक गतिविधियां पूरी तरह से बंद हैं।
