Malegaon blast Case: मालेगांव ब्लास्ट मामले में स्पेशल एनआईए कोर्ट ने सात आरोपियों को बर कर दिया है, सबूतों के आभाव में अदालत ने इतनी बड़ी राहत दी। अब यह फैसला वैसे कई बड़े सवाल खड़े कर गया, लेकिन लेफ्टिनेट कर्नल प्रसाद पुरोहित का मामला अभी भी चर्चा में है। असल में कोर्ट का जो विस्तृत ऑर्डर सामने आया है, उसमें कर्नल पुरोहित को लेकर कुछ सवाल कायम हैं, वे बरी जरूर हुए हैं, लेकिन कोर्ट ने कुछ बातों गौर किया है। उनका अभिनव भारत नाम के संगठन से जुड़ना अभी भी विवादित बताया जा रहा है।

कर्नल पुरोहित पर उठे सवाल

असल में कर्नल पुरोहित की तरफ से अदालत में बताया गया था कि उन्होंने तो कुछ ‘इंटेलिजेंस’ इकट्ठा करने के लिए अभिनव भारत ज्वाइन किया था। लेकिन कोर्ट का मानना है कि वे ऐसा कोई सबूत पेश नहीं कर पाए जिससे कहा जा सके कि वे उस संगठन के फंड्स का इस्तेमाल कर सकते थे या फिर वे एक मिलिट्री ऑफिसर के नाते सिर्फ इंटेलिजेंस इकट्ठा करने के लिए साथ जुड़े थे। अब समझने वाली बात यह है कि अभिनव भारत नाम के संगठन के तार भी मालेगांव ब्लास्ट के साथ जोड़े गए थे, उसी वजह से कर्नल पुरोहित भी इस मामले में फंसे।

इससे पहले भी जब इस केस का ट्रायल चल रहा था, जमानत का आधार कर्नल पुरोहित इन्हीं तर्कों को बना रहे थे। उनका जोर देकर कहना था कि वे तो उस समय मिलिट्री इंटेलिजेंस यूनिट में काम कर रहे थे, उनकी जिम्मेदारी थी कि वे SIMI जैसे प्रतिबंधित संगठनों के साथ जुड़ उनसे जुड़ी सारी इनफॉर्मेंशन निकालें। उन्होंने साफ कहा था कि उनका किसी भी आतंकी गतिविधि से कोई नाता नहीं रहा।

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क्लीन चिट के बाद भी विवाद

इस मामले की सुनवाई के दौरान स्पेशल जज एके लाहोटी ने स्पष्ट कहा था कि 6 आरोपियों के खिलाफ शक करने की कई वजह हैं, लेकिन कोई भी विश्वनीय सबूत उनके खिलाफ नहीं मिला है और सिर्फ शक को आधार समझ एक लीगल प्रूफ नहीं माना जा सकता। इसके ऊपर कोर्ट ने इस बात पर भी गौर किया है कि इस मामले की जांच पहले महाराष्ट्र एंट्री टेररिज्म स्क्वाड ने की और फिर 2016 में नेशनल इनवेस्टिगेशन एजेंसी ने, लेकिन दोनों ही माना था कि कर्नल पुरोहित अभिनव भारत के फाउडिंग मेंबर थे और उन्होंने वहां से काफी फंड इकट्ठा किया और उसका इस्तेमाल भी अपने निजी कामों के लिए किया।

क्या सेना ने नहीं किया पुरोहित का समर्थन?

यहां पर कर्नल पुरोहित के पक्ष में सिर्फ इतनी बात गई कि इस बात को साबित नहीं किया जा सका कि उन्होंने फंड्स का इस्तेमाल अपने निजी कामों के लिए किया। लेकिन कोर्ट का यह भी कहना रहा कि सबूत इस बात का भी नहीं है कि पुरोहित जिस समय अभिनव भारत के साथ जुड़े, वे ऑफिशियल ड्यूटी पर थे। इसी वजह से अदालत ने माना है कि कर्नल पुरोहित के खिलाफ सबूत नहीं मिले, लेकिन यह नहीं कहा जा सकता कि जो चार्ज उन पर लगे थे, वो सारे ही बेबुनियाद रहे, उन्हें बस साबित नहीं किया जा सका। इसके ऊपर कोर्ट ने सेना ही के कुछ दूसरे अधिकारियों के बयानों को भी आधार बनाकर कर्नल पुरोहित पर सवाल उठाए हैं।

गिरफ्तारी के बाद क्यों चुप थी सेना?

कहा गया है कि सेना के अफसरों ने अपने बयान में इस बात को स्वीकार नहीं किया कि पुरोहित ने एक ऑर्मी ऑफिसर की हैसियसत से अभिनव भारत जैसा संगठन ज्वाइन किया था, कोई ऐसा तथ्य भी सामने नहीं आया जिससे कहा जा सके कि उन्हें कोई खास परमीशन सेना से मिली थी। कोर्ट ने इस बात पर भी जोर दिया कि जब कर्नल पुरोहित की गिरफ्तारी हुई थी, सेना की तरफ से कोई कोशिश नहीं हुई कि उन्हें बचाया जाए, अगर सही में वे सिर्फ अपनी ड्यूटी कर रहे थे तो सेना कुछ तो प्रयास करती उन्हें बचाने का। लेकिन सेना तो पूरे समय चुप रही।

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