स्‍वदेशी तकनीक से बना तेजस लाइट कॉम्‍बैट एयरक्राफ्ट शुक्रवार (1 July) को आधिकारिक तौर पर एयरफोर्स में शामिल कर लिया जाएगा। यह कार्यक्रम बेंगलुरु में होगा। तेजस को डेवलप करने का प्रोग्राम शुरू करने के तीन दशक बाद इसे सेना में शामिल किया जा रहा है। बहुत सारे जानकारों का यह मानना था कि जब दुनिया भर की कई बड़ी कंपनियां अत्‍याधुनिक तकनीक के साथ विमान डेवलप करने में लगे हुए हैं, ऐसे में जब तक तेजस एयरफोर्स में आएगा, वो पुराना पड़ जाएगा। हालांकि, ऐसा बिलकुल नहीं है। तेजस में आधुनिक इजरायल निर्मित मल्‍टी मोड रडार एल्‍टा 2032 लगा हुआ है। इसमें बेहद अत्‍याधुनिक डर्बी एयर टू एयर मिसाइल्‍स हैं जो विरोधी जेट्स को निशाना बनाने के काम आते हैं। इसके अलावा, जमीन पर स्‍थ‍ित लक्ष्‍यों को निशाना बनाने के लिए आधुनिक लेजर डेजिग्‍नेटर और टारगेटिंग पॉड्स हैं।

PHOTOS: 33 साल में बना लड़ाकू विमान तेजस, एक विमान 250 करोड़ का 

जानकारों का मानना है कि तेजस कई मायनों में फ्रेंच निर्मित मिराज 2000 फाइटर जेट जितना सक्षम है। एचएएल ने इस विमान को ही पैमाना मानकर विमान को विकसित किया। यहां तक कि इसकी टेस्‍ट फ्लाइट लेने वाले पायलट्स भी इसके फ्लाइट कंट्रोल सिस्‍टम से प्रभावित हैं। 3000 से ज्‍यादा सामरिक उड़ानों के दौरान एक भी तेजस विमान हादसे का शिकार नहीं हुआ।

आलोचकों की राय
आलोचक यह कह सकते हैं कि तेजस किसी तरह से स्‍वदेसी नहीं है। उनका कहना है कि इसका इंजन अमेरिकी है, रेडार और वेपन सिस्‍टम इजरायल का, इजेक्‍शन सीट ब्रिटेन का है। इसके अलावा, कई अन्‍य विदेशी सिस्‍टम और पुर्जे लगे हुए हैं। एचएएल का तर्क है कि दुनिया के सबसे विकसित फाइटर जेट्स में शुमार फ्रांस का राफेल और स्‍वीडन का ग्र‍िपन में भी इम्‍पोर्टेड सिस्‍टम लगे हैं क्‍योंकि कलपुर्जे विकसित करना बेहद महंगी और वक्‍त लगने वाली प्रक्रिया है।

क्‍यों भारतीय है तेजस
ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्‍या तेजस को एक उपलब्‍ध‍ि के तौर पर देखा जा सकता है? बहुत सारे जानकार इसका जवाब हां में देते हैं। विमान में फ्लाई बाई वायर सिस्‍टम है। इसके जरिए जेट को उड़ाने में सहायक कम्‍प्‍यूटर नियंत्रित इनपुट्स मिलते हैं। यह पूरी तरह इंडियन तकनीक है। शत्रु के विमानों से निपटने के लिए इस्‍तेमाल होने वाले इसका मिशन कम्‍प्‍यूटर भारतीय है। इसके जरिए सेंसर के डेटा को रिसीव करके प्रोसेस किया जाता है। मिशन कम्‍प्‍यूटर का हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर ऐसा है, जिसे भविष्‍य में अपग्रेड या बेहतर किया जा सकता है। इस जेट को बनाने में भारत निर्मित कार्बन फाइबर का इस्‍तेमाल किया गया है। इसकी वजह से यह हल्‍का और धातु के मुकाबले बेहद मजबूत है। प्‍लेन में लगा मुख्‍य सेंसर तरंग रडार पायलट को दुश्‍मन जेट्स या जमीन से हवा में मार करने वाली मिसाइल के बारे में बताता है। यह सेंसर भी भारत में बना है।

तेजस की दूसरी खासियतें
सारे आधुनिक लड़ाकू विमान, जिनमें भारतीय एयरफोर्स की ताकत माने जाने वाले सुखोई 30 विमान भी शामिल हैं, वे पूरी तरह न तो विश्‍वसनीय हैं और इनका रख रखाव और मेंटेनेंस भी काफी ज्‍यादा है। मिशनों को अंजाम देने के लिए सुखाई की फ्लीट का 60 फीसदी ही एक वक्‍त पर मुहैया है। यह एयरफोर्स की चिंता का बड़ा विषय है। वहीं, तेजस के डेवलपमेंट से जुड़े वैज्ञानिकों का दावा है कि मिशन के वक्‍त जरूरत पड़ने पर तेजस की 70 फीसदी फ्लीट तुरंत मौजूद होगी और 80 फीसदी से ज्‍यादा लक्ष्‍यों को निशाना बनाने में सक्षम होगी। अगर ऐसा है तो तेजस भारतीय वायुसेना की वर्तमान क्षमता से कहीं ज्‍यादा परफॉर्म कर पाने में सक्षम है। यह सभी मानते हैं कि तेजस दुनिया के सबसे बेहतरीन फाइटर जेट्स में से एक नहीं है। हालांकि, ये इंडियन एयरफोर्स के लिए बहुत कुछ ऐसा कर पाने में सक्षम है, जैसा कि वो चाहती है।

तीन दशक से ज्‍यादा वक्‍त में हुआ विकसित
हालांकि, वायुसेना में शामिल किए जाने में हुई इस देरी को सही ठहराया नहीं जा सकता, लेकिन इसकी क्‍या वजह है, इसको लेकर काफी बहस हो चुकी है। विमान को डेवलप करने वाली हिंदुस्‍तान एरोनॉटिक्‍स लिमिटेड (एचएएल) यह कहती रही है कि सेना अपनी जरूरतें बदलती रही, जिससे यह भ्रम की स्‍थ‍िति बनी रही कि उसे कैसा विमान चाहिए। एचएएल का यह भी कहना है कि पोखरण परमाणु परीक्षण के बाद अमेरिका ने जो बैन लगाया, उसका भी असर इसे डेवलप करने वाले प्रोग्राम पर पड़ा। बैन की वजह से इसे विकसित करने में इस्‍तेमाल होने वाली अहम तकनीक पहुंच से बाहर हो गई थी।