Surya Grahan 2024: साल 2024 का पहला सूर्य ग्रहण 8 अप्रैल यानी सोमवती अमावस्या के दिन लगने जा रहा है। यह ग्रहण बेहद खास माना जा रहा है क्योंकि ये एक पूर्ण सूर्य ग्रहण होगा और इसका समय काल लगभग 5 घंटे 10 मिनट का रहेगा। यह सूर्य ग्रहण कनाडा, यूनाइटेड स्टेट, ग्रीनलैंड, नॉर्वे, नीदरलैंड, डोमिनिका, पनामा सेंट मार्टिन स्पेन जैसे देशों में दिखाई देगा। इस तरह का सूर्य ग्रहण किसी भी देश के लिए दुर्लभ घटना है। रॉयल म्यूजियम ग्रीनविच के मुताबिक एक बार जब धरती पर किसी भी जगह पूर्ण सूर्य ग्रहण होता है तो उस हिस्से में अगला सूर्यग्रहण लगने में करीब 400 साल लग जाते हैं।
सूर्य ग्रहण तब होता है जब चंद्रमा अपने पथ पर चलते हुए सूर्य और धरती की सीध में आ जाता है। इस दौरान चंद्रमा सूर्य को ढक लेता है और कुछ समय के लिए सूर्य की रोशनी धरती पर पहुंचनी बंद हो जाती है। इसके चलते धरती पर दिन के दौरान अंधेरा छा जाता है। यह सूर्योदय और सूर्यास्त की तरह की घटना होती है। पूर्ण सूर्य ग्रहण उस समय होता है जब चंद्रमा पृथ्वी के करीब होता है, जिससे इसका आकार बड़ा दिखाई देता है और यह पूरे सौर डिस्क को ढक लेता है।
सूर्य ग्रहण कितने तरह के होते हैं
सूर्य ग्रहण कुल चार तरीके का होता है। इनमें पूर्ण सूर्य ग्रहण, आंशिक सूर्य ग्रहण, वलयाकार सूर्य ग्रहण और हाइब्रिड सूर्य ग्रहण शामिल हैं। पूर्ण सूर्य ग्रहण सबसे ज्यादा प्रभावशाली होते हैं, जो सूर्य को पूरी तरह से ढक देते हैं। संपूर्णता के दौरान जिस क्षेत्र में यह होता है, वहां अंधेरा हो जाता है। इस दौरान आसमान में सूर्य का कोरोना दिखाई देता है।
आंशिक सूर्य ग्रहण उस वक्त होता है, जब चंद्रमा सूर्य के केवल एक हिस्से को कवर करता है। इस दौरान पृथ्वी से सूर्य की रोशनी एक अर्धचंद्राकार टुकड़े में दिखाई देती है। हालांकि, यह पूर्ण सूर्य ग्रहण जितना नाटकीय नहीं होता। लेकिन फिर भी आंशिक ग्रहण आकाश में एक आकर्षक झलक देता है और बड़ी संख्या में दर्शकों को दिखाई देता है। वहीं अगर वलयाकार सूर्य ग्रहण की बात करें तो यह रिंग ऑफ फायर कहलाता है। यह तब होता है, जब आसमान में सूर्य से छोटा चंद्रमा दिखाई दे। इस वजह से यह सूर्य को पूरी तरह कवर नहीं कर पाता और आसमान में एक छल्ला दिखाई देता है।
कभी-कभी ग्रहण अपने पथ के कुछ हिस्सों में पूर्ण और अन्य हिस्सों में वलयाकार या आंशिक होगा। लेकिन पृथ्वी के चारों ओर चंद्रमा की कक्षा का तल सूर्य के चारों ओर पृथ्वी की कक्षा के संबंध में लगभग पांच डिग्री झुका हुआ है। इसके कारण चंद्रमा की छाया अक्सर पृथ्वी के ऊपर या नीचे से गुजरती है। यह सूर्य ग्रहण का सबसे कम बार होने वाला प्रकार है।
सूर्य ग्रहण कितनी बार होता है
सूर्य ग्रहण केवल अमावस्या के दौरान देखा जाता है, जब चंद्रमा और सूर्य पृथ्वी के एक ही तरफ होते हैं। एक अमावस्या लगभग 29.5 दिनों में होती है क्योंकि चंद्रमा को पृथ्वी की परिक्रमा करने में इतना ही वक्त लगता है। हालांकि, इसका मतलब यह नहीं है कि हर महीने सूर्य ग्रहण होता है। यह साल में दो से पांच बार ही होता है।
चंद्रमा पृथ्वी के सापेक्ष लगभग पांच डिग्री झुका हुआ है। ज्यादातर समय जब चंद्रमा सूर्य और पृथ्वी के बीच में होता है, तो उसकी छाया पृथ्वी पर पड़ने के लिए या तो बहुत ऊंची या बहुत नीची होती है। अगर आप सूर्य के चारों ओर पृथ्वी की कक्षा को एक डिस्क के रूप में और पृथ्वी के चारों ओर चंद्रमा की कक्षा को एक दूसरी डिस्क के रूप में कल्पना करें। इन दोनो डिस्क के बीच में करीब पांच डिग्री का कोण होता है। यह दो डिस्क एक दूसरे को काटते भी हैं। ये दोनों बिंदु चंद्रमा की कक्षा पर हैं। पेन्सिलवेनिया स्टेट यूनिवर्सिटी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, ये नोड्स कहलाते हैं और इन दो बिंदुओं को जोड़ने वाली रेखा को नोड्स की रेखा कहा जाता है। जब भी अमावस्या इनमें से किसी भी नोड्स को पार कर लेती है तो सूर्य ग्रहण होता है।
पूर्ण सूर्यग्रहण इतना दुर्लभ क्यों
हर साल में दो से पांच सूर्य ग्रहण हो सकते हैं। पूर्ण ग्रहण लगभग हर 18 महीने में एक बार होता है। जैसा कि पहले भी बताया गया है कि धरती पर एक विशेष जगह पर 400 सालों में केवल एक बार पूर्ण सूर्य ग्रहण होता है। पूर्ण सूर्य ग्रहण तब ही नजर आता है जब कोई उपच्छाया में खड़ा होता है। छत्र छाया बहुत छोटी होती है। यह धरती के केवल एक ही हिस्से को कवर करती है। वास्तव में छत्रछाया का पूरा रास्ता दुनिया के केवल एक प्रतिशत से भी कम हिस्से को कवर करेगा। यही वजह है कि एक समय में बहुत ही कम लोग पूर्ण सूर्य ग्रहण को देख पाएंगे। इसके अलावा, दुनिया का लगभग 70 प्रतिशत भाग पर पानी है और कुछ पर जंगल है। इसीलिए ऐसा बहुत कम होता है जब पूर्ण सूर्य ग्रहण होता है और बहुत ज्यादा लोग इसे देख नहीं पाते है।