20,000 फुट की ऊंचाई पर स्थित सियाचिन ग्लेशियर में -45 डिग्री तापमान में बर्फ के 35 फुट नीचे कई दिनों तक दबे रहने के बाद जीवित बचे जवान हनमनप्पा की जिंदगी आखिर बच गई? पांच दिनों की तलाश के बाद आखिर हनमनथप्पा के बारे में बचावकर्मियों को कैसे जानकारी मिली? आखिर उन्हें यह कैसे पता चला कि बर्फ के 35 फुट नीचे एक जिंदा शख्स दबा है? ये कुछ ऐसे सवाल हैं, जिनके अभी तक नहीं मिले हैं।
35 फुट नीचे दबाने होने के बाद भी कैसे बचा जवान?
1- विशेषज्ञों के मुताबिक स्नोफॉल के दौरान के बीच जब बर्फ गिरती तो उसके बीच कुछ जगह रह जाती है। जहां से हवा आने-जाने का थोड़ा बहुत रास्ता बाकी रह जाता है।
2- यह भी संभव है कि दूसरे जवानों की तुलना में उसके पास आक्सीजन लेवल अच्छा था, इसलिए उसके भीतर एनर्जी दूसरे जवानों की तुलना में अधिक रही होगी।
3- मौत का मतलब होता है, जब किसी व्यक्ति को दिमाग काम करना बंद कर दे। ब्रेन को नॉर्मल कंडीशन में अगर ऑक्सीजन या एनर्जी की सप्लाई बंद कर दी जाए, मौत हो जाती है। लेकिन अगर बॉडी का टेंपरेचर कम किया जाए तो बॉडी की ऑक्सीजन और एनर्जी की डिमांड बहुत ही कम हो जाती है। ऐसे में जो दिमाग नॉर्मल कंडीशन में 4- से 5 मिनट में ऑक्सीजन सप्लाई बंद होने से मर जाता है, वह 4 से 5 दिन भी जीवित रह सकता है।
4- बॉडी का टेंपरेचर जब 28 डिग्री सेंटीग्रेड से नीचे चला जाता है, तब डॉक्टर ब्रेन डैड घोषित नहीं करता है।
5- यह संभव है कि बाकी जवान किसी और जगह टकराए हों, किसी पेड़ या पत्थर से टकराए हों या फिर उनके साथ कोई और हादसा हुआ हो। इसके अलावा जो एनर्जी हनमनथप्पा के पास स्टोर थी, उतनी बाकी जवानों के पास न हो।
हनमनथप्पा के बारे में आखिर बचाव दल को कैसे मिली जानकारी और बाकी जवानों का क्या हुआ?
1- सोमवार रात को बचाव दल जवानों की खोज में जुटा था। अचानक उनकी नजर उस स्थान पर गई, जहां हनमनथप्पा बर्फ के नीचे दबा था। उस जगह को खोदा गया तो किसी जिंदा शख्स के मिलने के संकेत मिलते गए।
2- जवानों की खोज के लिए लेह से बर्फ काटने वाले भारी उपकरण हेलीकॉप्टर से सियाचिन भिजवाए गए थे। इन उपकरणों के कारण भी बचाव अभियान चलाने में काफी मदद मिली।
3- जानकारों की मानें अक्सर जब हिमस्खलन आता है तो उसमें बड़ी दरारें पैदा हो जाती हैं। यह संभव है कि कुछ जवान इन दरारों में फंस गए हों और उनका बाहर आना बेहद मुश्किल हो। से दरारें 300 फुट गहरी हो सकती हैं।
दरारों के भीतर का तापमान शून्य से 200 डिग्री नीचे तक चला जाता है।
4- सियाचिन में तैनात फौजियों की सुरक्षा के लिए सेना ने कई निगरानी केंद्र भी बना रखे हैं। बेस कैंप में मौजूद ऐसे केंद्र मौसम में होने वाले हर बदलाव पर नजर रखते हैं और हिमस्खलन की भविष्यवाणियां भी करते हैं।
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