राजद के पूर्व सांसद और बाहुबली नेता शहाबुद्दीन की जेल से रिहाई के खिलाफ दायर अर्जियों पर उच्चतम न्यायालय शुक्रवार (30 सितंबर) को अपना फैसला सुनाएगा। एक हत्याकांड में पटना उच्च न्यायालय की ओर से शहाबुद्दीन को दी गई जमानत को चुनौती देने वाली दो अपीलों पर न्यायालय ने गुरुवार को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। पटना उच्च न्यायालय सहित विभिन्न अदालतों में शहाबुद्दीन के खिलाफ चल रहे मुकदमों में उसकी जमानत के विरोध पर लचर रवैया अपनाने को लेकर शीर्ष न्यायालय ने नीतीश कुमार की अगुवाई वाली बिहार सरकार को जमकर लताड़ लगाई। गौरतलब है कि बिहार के सत्ताधारी गठबंधन में राजद प्रमुख साझेदार है।
अपीलों पर सुनवाई की शुरुआत के बाद से ही न्यायालय के सख्त रुख का सामना कर रही बिहार सरकार से गुरुवार को फिर सवाल किया गया कि राजीव रोशन हत्याकांड के 17 महीने बाद भी शहाबुद्दीन को आरोप-पत्र की प्रति क्यों नहीं मुहैया कराई गई। अपने दो छोटे भाइयों की हत्या के चश्मदीद गवाह रहे राजीव की हत्या अदालत में उनकी गवाही से कुछ ही दिनों पहले कर दी गई थी। करीब तीन दिनों तक सभी पक्षों को सुनने वाली न्यायमूर्ति पी सी घोष और न्यायमूर्ति अमिताभ रॉय की पीठ ने निचली अदालत के रिकॉर्ड का हवाला देते हुए कहा कि वह उन अदालतों में पेश आए अलग-अलग वाकयों से निकाले गए ‘निष्कर्षों’ के आधार पर फैसला नहीं कर सकती, क्योंकि ऑर्डर शीट से पता चला है कि आरोपी को पुलिस रिकॉर्ड मुहैया नहीं कराया गया था।
प्रशांत ने उच्च न्यायालय के उस आदेश का हवाला दिया जिसमें इस साल फरवरी में शहाबुद्दीन की जमानत याचिका खारिज कर दी गई थी, और कहा कि उसमें भी शहाबुद्दीन ने आरोप-पत्र के ब्योरे दिए थे। उन्होंने कहा, ‘इससे शीशे की तरह साफ हो जाता है कि शहाबुद्दीन के पास आरोप-पत्र और केस डायरी थी, नहीं तो उसने आरोप-पत्र में लिखी बातों का हवाला कैसे दिया था।’ शहाबुद्दीन की तरफ से पेश हुए वकील शेखर नफाड़े ने कहा कि ट्रायल में देरी की कोशिश जानबूझकर की जा रही थी और इसी वजह से उसे आरोप-पत्र मुहैया नहीं कराया गया।
इसके अलावा, नफाड़े ने कहा कि अभियोजन के पास यह साबित करने का कोई सबूत नहीं है कि हत्या की साजिश में शहाबुद्दीन शामिल था। नफाड़े ने कहा, ‘यह दुराग्रह है। आरोप यह है कि राजीव रोशन की हत्या में मैं शामिल था, लेकिन मैं यह कैसे कर सकता हूं जब सबूत कह रहे हैं कि मैं तो न्यायिक हिरासत में था।’ उन्होंने कहा कि इस आरोप पर रुख स्पष्ट करने का जिम्मा बिहार सरकार पर है कि एक विचाराधीन कैदी जेल से बाहर गया और हत्या में शामिल हुआ।
वरिष्ठ वकील ने आरोप लगाया कि शहाबुद्दीन को सीवान से भागलपुर जेल भेजना ट्रायल में देरी की एक और कोशिश थी। उन्होंने कहा कि शहाबुद्दीन को भागलपुर जेल भेजने का प्रशासनिक आदेश ‘अवैध’ और ‘गैर-कानूनी’ था। उन्होंने कहा, ‘मुझे स्पीडी ट्रायल का मौलिक अधिकार प्राप्त है लेकिन मुझे किसी और जेल में भेजकर उन्होंने इसमें देरी करने की जानबूझकर कोशिश की थी।’ बिहार सरकार पर निशाना साधते हुए नफाड़े ने कहा, ‘बिहार में हम जानते हैं कि कानून का पालन कैसे किया जाए और हम यह भी जानते हैं कि कानून का पालन कैसे नहीं किया जाए।’
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