Adultery Law Section 497 IPC Verdict: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को ऐतिहासिक फैसला सुनाया। सर्वोच्च अदालत ने व्यभिचार को अपराध के दायरे से बाहर करते हुए अंग्रेजों के जमाने के कानून आईपीएस की धारा 497 को असंवैधानिक और मनमाना ठहराया। इसी के तहत व्यभिचार या एडल्ट्री अपराध के दायरे में आता था। फैसला सुनाते वक्त एक जज ने बेहद अहम टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि महिलाओं को संपत्ति नहीं समझा जा सकता है। वहीं, चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा, ‘व्यभिचार अपराध नहीं हो सकता। व्यभिचार की वजह से वैवाहिक जीवन खराब नहीं भी हो सकता है। यह भी मुमकिन है कि असंतुष्ट शादीशुदा जीवन ही व्यभिचार की वजह हो। यह शादीशुदा जिंदगी से असंतुष्ट चल रहे लोगों को सजा देने के समान है।’ आइए, जानते हैं इस फैसले से जुड़ी अहम बातें
-जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा, ‘यह प्राइवेसी का मामला है। पति, पत्नी का मालिक नहीं है। महिलाओं के साथ पुरुषों के समान बर्ताव किया जाना चाहिए।’
-चीफ जस्टिस ने अपने और जस्टिस ए. एम. खानविलकर की ओर से फैसला सुनाते हुए कहा कि कई देशों में व्यभिचार को अपराध के दायरे से बाहर कर दिया गया है। उन्होंने कहा, “यह अपराध नहीं होना चाहिए।’
-दीपक मिश्रा के मुताबिक, एक महिला को उस तरह से सोचने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता जिस तरह से समाज चाहता है कि वह उसी तरह से सोचे।
-जस्टिस नरीमन ने अपने फैसला में कहा, ‘महिलाओं को अपनी संपत्ति नहीं समझा जा सकता।’
-जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि समाज में यौन व्यवहार को लेकर दो तरह के नियम हैं, एक महिलाओं के लिए और दूसरा पुरुषों के लिए।
-चंद्रचूड़ ने कहा कि समाज महिलाओं को सदाचार की अभिव्यक्ति के रूप में देखता है, जिससे ऑनर किलिंग जैसी चीजें होती हैं। आईपीसी की यह धारा भारतीय संविधान द्वारा हासिल सम्मान, स्वतंत्रता और सेक्स की आजादी की गारंटी के खिलाफ है।
-चंद्रचूड़ ने कहा कि किसी शादी में होने के बावजूद महिला का यौन संबंधों के मामले में अपनी इच्छा और अधिकार होता है और शादी का मतलब यह नहीं है कि अपने अधिकारों को दूसरे के लिए छोड़ दें।
-चंद्रचूड़ ने कहा, ‘हर शख्स को अपनी पसंद के मुताबिक संबंध बनाने की मंजूरी होनी चाहिए और ऐसे में महिलाओं को इस हक से वंचित नहीं रखा जा सकता।’
-संविधान पीठ की इकलौती महिला जज इंदू मल्होत्रा ने कहा कि कानून की किताब में इस कानून के बने रहने का कोई औचित्य नहीं है।