Sambhal Jama Masjid Survey: लगातार सर्द हो रहे मौसम के बीच उत्तर प्रदेश के संभल में हुई हिंसा की वजह से माहौल गर्म हो रहा है। संभल के पूरे इलाके में तनाव पसरा हुआ है और हालात को देखते हुए एहतियातन बाजार, इंटरनेट सेवा और स्कूलों को बंद रखा गया है। संभल की शाही जामा मस्जिद में जब रविवार को कोर्ट कमिश्नर की एक टीम सर्वे करने पहुंची थी तो उस दौरान हिंसा भड़क उठी थी। पुलिस का कहना है कि हिंसा पूरी तरह सुनियोजित थी। पुलिस ने इस मामले में 3000 से ज्यादा लोगों के खिलाफ सात अलग-अलग FIR दर्ज की हैं।
संभल के सपा सांसद जिया उर रहमान बर्क और विधायक इकबाल महमूद के बेटे सोहैल इकबाल को भी मामले में आरोपी बनाया गया है। इस मामले में सपा, कांग्रेस और बीजेपी के नेताओं के बयानों ने माहौल को और तनावपूर्ण कर दिया है।
बताना होगा कि इस हिंसा में चार लोगों की मौत भी हो चुकी है। मरने वालों के नाम नईम गाजी, बिलाल अंसारी, अयान अब्बासी और कैफ अल्वी हैं।

संभल में हो रहे बवाल के बीच यह समझना जरूरी होगा कि इस मामले में कानूनी स्थिति क्या है?
हिंदू पक्ष का क्या कहना है?
संभल की जिला अदालत ने शाही जामा मस्जिद का सर्वे करने का आदेश दिया था। अदालत ने सर्वे का यह आदेश उन याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए दिया था जिनमें हिंदू पक्ष की ओर से यह दावा किया गया था कि संभल की जामा मस्जिद हिंदू मंदिर की जगह पर बनाई गई है। याद दिलाना होगा कि इस तरह के दावे वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद, मथुरा में शाही ईदगाह मस्जिद और मध्य प्रदेश के धार में कमाल-मौला मस्जिद को लेकर भी किए गए हैं। इन सभी दावों में कहा गया है कि इन जगहों पर पहले मंदिर था लेकिन मुगल शासन के दौरान मंदिरों को तोड़कर वहां पर मस्जिद बना दी गई।
संभल के मामले में याचिकाकर्ताओं का कहना है कि यहां पर हिंदू मंदिर था। 1526 में मुगल सम्राट बाबर ने हिंदू मंदिर को ध्वस्त करने के बाद यहां शाही जामा मस्जिद बनाई थी।
संभल की जामा मस्जिद को 22 दिसंबर, 1920 को Ancient Monuments Preservation Act, 1904 के तहत संरक्षित स्मारक घोषित किया गया था। इसे राष्ट्रीय महत्व का स्मारक भी घोषित किया गया है।

प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट, 1991
इस तरह के विवादों में अक्सर प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट, 1991 का जिक्र होता है। यह एक्ट क्या कहता है, इसे भी समझना-जानना जरूरी होगा। प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट, 1991 कहता है कि किसी भी पूजा स्थल का धार्मिक चरित्र वैसा ही रहना चाहिए जैसा यह 15 अगस्त, 1947 को था। इस एक्ट का सेक्शन 3 कहता है कि किसी भी धार्मिक संप्रदाय के पूजा स्थल को पूरी तरह या आंशिक रूप से किसी अन्य धार्मिक संप्रदाय के पूजा स्थल में नहीं बदला जाएगा। कांग्रेस की सरकार इस कानून को लाई थी और तब उसका कहना था कि इस कानून के बनने से सांप्रदायिक सौहार्द्र और सद्भावना बनी रहेगी।
हालांकि बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि विवाद के मामले को इस कानून से बाहर रखा गया था क्योंकि इस कानून के बनने से पहले से ही यह मामला अदालत में विचाराधीन था।
प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती
पिछले कुछ सालों में प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट, 1991 को लेकर काफी हंगामा भारत की राजनीति में हो चुका है। ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा की शाही ईदगाह मस्जिद के मामले में एआईएमआईएम के नेता असदुद्दीन ओवैसी और विपक्षी दलों ने बार-बार प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट, 1991 की बात कही है। इस एक्ट को चुनौती देने वाली देने वाली चार याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई हैं और इन पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है। सितंबर, 2022 में तत्कालीन चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया यूयू ललित की बेंच ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया था कि वह इस मामले में दो हफ्ते के भीतर अपना जवाब दायर करे।
तब से अब तक 2 साल से ज्यादा का वक्त बीत चुका है लेकिन केंद्र सरकार ने अभी तक अपना हलफनामा अदालत में दायर नहीं किया है।
हिंसा के बाद कैसा है संभल का हाल, तस्वीरों में देखें हर ओर किसका है पहरा?
क्या कहा था जस्टिस चंद्रचूड़ ने?
ज्ञानवापी मामले में सुनवाई करते हुए पूर्व सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा था कि हालांकि 1991 का यह कानून किसी भी उपासना स्थल या धार्मिक स्थल की प्रकृति को बदलने से रोकता है लेकिन किसी जगह के धार्मिक चरित्र का पता लगाना इस एक्ट की धारा 3 और 4 का उल्लंघन नहीं है। अगर आप आसान भाषा में कहें तो अदालत के कहने का मतलब यह था कि जो उस पूजा स्थल की प्रकृति 15 अगस्त, 1947 को थी उसे बदला नहीं जा सकता लेकिन यह पता जरूर किया जा सकता है कि 15 अगस्त, 1947 को उस पूजा स्थल की प्रकृति क्या थी।
मथुरा और ज्ञानवापी मस्जिद के मामले में मस्जिद पक्ष की ओर से प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट, 1991 के बारे में की गई इस टिप्पणी को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है और इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है। संभल में भी स्थानीय अदालत के आदेश को आगे ऊंची अदालतों में चुनौती दी जा सकती है लेकिन यह मामला अदालतों में आगे बढ़ने से पहले ही हिंसा की वजह से ज्यादा सुर्खियों में आ गया है।
संभल में हिंसा मामले में पुलिस की FIR क्या कहती है, पढ़िए इस खबर में।