मद्रास हाई कोर्ट ने ईशा फाउंडरेशन के सद्गुरु जग्गी वासुदेव को लेकर अक अहम टिप्पणी कर दी है। एक मामले की सुनवाई के दौरान उन्होंने सद्गुरु से ही पूछ लिया कि जब उनकी बेटी ने खुद शादी की है, तो दूसरों को वे कैसे संन्यास के तौर-तरीके अपनाने के लिए प्रेरित कर सकते हैं? असल में यह टिप्पणी एक मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस एसएम सुब्रह्मण्यम और जस्टिस वी शिवागणनम की बेंच ने की है।
कोर्ट की सद्गुरु पर सख्त टिप्पणी
असल में एक रिटायर्ड प्रोफेसर ने आरोप लगाया था कि उनकी दो बेटियों का ब्रेनवॉश किया गया, उन्हें जबरदस्ती ईशा योग केंद्र में कैद कर रखा गया। इस आरोप को ईशा योग केंद्र ने लगातार नकारा है और यहां तक बोला है कि जो भी वहां रहना चाहता है, वो अपनी इच्छा से रहता है। लेकिन इस मामले में जब हाई कोर्ट ने सुनवाई की, जजों की तरफ से कुछ तीखे सवाल भी पूछे गए। बेंच ने पूछा कि जब सद्गुरु की बेटी खुद शादीशुदा है, वे खुद एक अच्छा वैवाहिक जीवन जी रही हैं, वे अन्य युवतियों को सिर मुंडवाने, सांसारिक जीवन त्यागने के लिए कैसे बोल सकते हैं, उन्हें कैसे प्रोत्साहित कर सकते हैं।
इजरायल की तरह क्या भारत भी कर सकता है हमला?
ईशा फाउंडेशन ने क्या बोला?
बड़ी बात यह है कि इस मामले में जिन दो बेटियों को लेकर प्रोफेसर कोर्ट पहुंचे हैं, वे खुद इस बात को स्वीकार नहीं कर रही हैं कि उन्हें जबरदस्ती केंद्र में रखा जा रहा हो। उनकी तरफ से तो दूसरी बार कोर्ट में साफ-साफ शब्दों में कहा गया है कि वे अपनी मर्जी और इच्छा से वहां रह रहे हैं। उन पर किसी तरह का कोई दबाव नहीं है। अभी के लिए इस मामले में पुलिस को जांच करने के लिए कहा गया है।
वैसे ईशा फाउंडेशन ने तो कोर्ट में सिर्फ इतना कहा है कि हर कोई यहां अपनी इच्छा से रहने आता है। किसी भी पर भी कोई विचार थोपा नहीं जाता है। यहां तक बताया गया है कि हजारों लोग उस केंद्र में रहते हैं और उनमें से कई साधू भी नहीं हैं।