राष्टीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने शुक्रवार को एक कार्यक्रम में कहा कि महात्मा गांधी हमारे समय के सबसे बड़े हिंदू देशभक्त थे। अगर कोई हिंदू है तो उसे देशभक्त होना ही पड़ेगा, वो उसकी प्रकृति में है। मोहन भागवत ‘मेकिंग आफ ए हिंदू पैट्रियॉट – बैक ग्राउंड आफ गांधीज हिंद स्वराज’ नाम की पुस्तक के विमोचन समारोह में शामिल हुए। यह कार्यक्रम राजघाट स्थित गांधी दर्शन में आयोजित हुआ। इसके लेखक जेके बजाज और प्रो. एमडी श्रीनिवास हैं। संघ प्रमुख ने कहा कि पूजा पद्धति, कर्मकांड कोई हो लेकिन सबको मिलकर रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि अंतर का मतलब अलगाववाद नहीं है।

मोहन भागवत ने कहा कि जब तक मन में यह डर रहेगा कि आपके होने से मेरे अस्तित्व को खतरा है और आपको मेरे होने से अपने अस्तित्व पर खतरा लगेगा तब तक सौदे तो हो सकते हैं लेकिन आत्मीयता नहीं। उन्होंने कहा कि अलग होने का मतलब यह नहीं है कि हम एक समाज, एक धरती के पुत्र बनकर नहीं रह सकते। उन्होंने कहा की किताब के नाम और मेरा उसका विमोचन करने से अटकलें लग सकती हैं कि यह गांधी जी को अपने हिसाब से परिभाषित करने की कोशिश है। उन्होंने कहा कि महापुरुषों को कोई अपने हिसाब से परिभाषित नहीं कर सकता। यह किताब व्यापक शोध पर आधारित है और जिनका इससे विभिन्न मत है, वह भी शोध कर लिख सकते हैं।

संघ प्रमुख ने कहा कि गांधीजी ने कहा था कि मेरी देशभक्ति मेरे धर्म से निकलती है। मैं अपने धर्म को समझकर अच्छा देशभक्त बनूंगा और लोगों को भी ऐसा करने को कहूंगा। उन्होंने कहा कि गांधीजी ने कहा था कि स्वराज को समझने के लिए स्वधर्म को समझना होगा। स्वधर्म और देशभक्ति का जिक्र करते हुए संघ प्रमुख ने कहा कि यदि कोई हिंदू है तो उसे देशभक्त होना ही होगा क्योंकि उसके मूल में यह है। केवल वह सोया हो सकता है जिसे खड़ा करना होगा लेकिन कोई हिंदू भारत विरोधी नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि पुस्तक में जो कहा गया है, उसके एक-एक शब्द, वाक्य के लिए गांधी जी के संबंध में साक्ष्य लिया है। यह एक प्रमाणिक शोध ग्रंथ है। जिनको इसके बारे में चर्चा करनी है, वे शोध के बाद ही कर सकते हैं।

उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी ने कहा कि मेरा धर्म सभी धर्मों का धर्म है। यह हमारे यहां अनुभूति की बात है। भारत के सभी संप्रदायों के मूल में इसको माना गया है। विविधता की एकता में एकता ही विविधता है। यह भारत के सभी धर्मों के मूल में हैं। हम इस धरती के पुत्र बनकर रह सकते हैं और सदियों से रह रहे हैं। इसेभारत ने अपना लिया है।

उन्होंने अपील की कि विचारवान लोग अध्ययन करें और समाज के सभी लोगों को जोड़ें और उन्हें आचरण सिखाएं। यदि हम निर्भयता, आत्मीयता व सद्भावना का भाव उत्पन्न करें तो गांधी जी के स्वराज का सपना साकार कर सकेंगे। इसको समझना है तो इस पुस्तक का अध्ययन करें। समारोह में केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल, केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति महेश शर्मा, हर आनंद प्रकाशन के नरेंद्र कुमार, समिति के पूर्व सलाहकार बसंत समेत अन्य गणमान्य लोग उपस्थित थे।