भारतीय सेना के पराक्रम के कई किस्से आपने सुने होंगे। सेना के जवानों ने अपनी बहादुरी से दुश्मन को कई बार मुंहतोड़ जवाब दिया है। आप हम आपको दुनिया की इकलौती घुड़सवार सेना के बारे में बताने जा रहे हैं। 61 कैवेलरी (61 cavalry) का नाम आपने शायद ही सुना होगा। गणतंत्र दिवस और कुछ खास मौकों पर जब भी आप भारत के राष्ट्रपति को कई जाते देखते होंगे तो उनके साथ एक घुड़सवार सेना भी चलती है। गणतंत्र दिवस के मौके पर कर्तव्यपथ पर होने वाली परेड में यह घुड़सवार दस्ता राष्ट्रपति की अगुवाई करता है।
दुनिया की इकलौती सक्रिय घुड़सवार सेना
बता दें कि 61 कैवेलरी दुनिया की एकमात्र सक्रिय सेवारत हॉर्स कैवेलरी रेजिमेंट है। इसके सभी जवान ना सिर्फ कुशल योद्धा होते हैं बल्कि इन्हें घुड़सवारी में महारत हासिल होती है। इस रेजिमेंट में राजपूत, कायमखानी और मराठा जवानों को उनकी बेसिक मिलिट्री ट्रेनिंग के बाद 61वीं कैवेलरी रेजिमेंट में भेजा जाता है। इस रेजिमेंट में शामिल होना इतना आसान नहीं होता है।
सबसे पहले सभी जवानों का चयन कर उन्हें 18 महीने की ट्रेनिंग देकर एक्सपर्ट राइडर बनाया जाता है। ट्रेनिंग के दौरान हर जवान एक खास घोड़े के साथ मिलनसार हो जाता है। पहले दो महीने इन जवानों को घोड़ों की सार-संभाल और उनकी मालिश करने दी जाती है। इससे घोड़े और जवान के बीच एक रिश्ता बन जाता है।
घोड़ों की भी होती है खास ट्रेनिंग
61 कैवेलरी में शामिल होते के लिए जितनी कड़ी ट्रेनिंग से जवान गुजरते हैं उतनी ही कड़ी ट्रेनिंग घोड़ों की भी होती है। रेजिमेंट में शामिल होने के लिए खास किस्म के घोड़ों का चुनाव किया जाता है। कई महीनों तक उनकी ट्रेनिंग होती है। राष्ट्रपति जब भी गणतंत्र दिवस परेड और संसद के संयुक्त अधिवेशन के लिए जाते हैं तो यही रेजिमेंट उनके साथ होती है। इस रेजीमेंट को 1 अगस्त, 1953 को 6 राज्य बलों की घुड़सवार इकाइयों को मिलाकर स्थापित किया गया था।
हाइफा युद्ध में दिखाया था पराक्रम
कई मौके पर यह रेजिमेंट अपनी बहादुरी का परिचय दे चुकी है। सबसे पहले 1918 में ओटोमैन साम्राज्य की सेना को हाइफा में शिकस्त दी थी। रेजीमेंट के जवानों ने अब तक 12 अर्जुन पुरस्कार और एक पदमश्री पुरस्कार जीता है। इसे कुल 39 युद्ध सम्मान मिल चुके हैं।