सीडीएस अनिल चौहान ने मध्य प्रदेश के आर्मी वॉर कॉलेज, महू में आयोजित प्रथम त्रि-सेवा संगोष्ठी, रण संवाद को संबोधित किया। इस दौरान उन्होंने कहा कि ऑपरेशन सिंदूर एक आधुनिक संघर्ष था जिससे हमने कई सबक सीखे और उनमें से ज़्यादातर पर अमल हो रहा है, कुछ पर अमल हो चुका है। सीडीएस ने यह भी कहा कि हमने हमेशा एक ही सांस में ‘शस्त्र’ और ‘शास्त्र’ के बारे में बात की है। वे वास्तव में एक ही तलवार के दो ब्लेड हैं।

सीडीएस ने कहा कि ऑपरेशन अभी भी जारी है। हम यहां ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा करने नहीं आए हैं। हम यहां ऑपरेशन सिंदूर से आगे की किसी बात पर चर्चा करने आए हैं। जनरल अनिल चौहान ने कहा, “हमने हमेशा एक ही सांस में ‘शस्त्र’ और ‘शास्त्र’ के बारे में बात की है। वे वास्तव में एक ही तलवार के दो ब्लेड हैं।”

सीडीएस अनिल चौहान ने महाभारत और गीता का दिया उदाहरण

सीडीएस जनरल अनिल चौहान ने कहा, “हम जानते हैं कि सैन्य रणनीति और योद्धाओं का संयोजन जीतने के लिए आवश्यक है और इसका सबसे बड़ा और सबसे अच्छा उदाहरण महाभारत और गीता है। हम जानते हैं कि अर्जुन सभी समय का सबसे महान योद्धा था फिर भी उसे जीत की ओर मार्गदर्शन करने के लिए कृष्ण की आवश्यकता थी। इसी तरह, हमारे पास चंद्रगुप्त थे जिन्हें चाणक्य के ज्ञान की आवश्यकता थी। भारत गौतम बुद्ध, महावीर जैन और महात्मा गांधी की भूमि रहा है जो सभी अहिंसा के चैंपियन थे।”

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रण संवाद में सीडीएस जनरल अनिल चौहान ने कहा, “एक विकसित भारत के रूप में, हमें शस्त्र, सुरक्षित और आत्मनिर्भर भी बनना होगा न केवल तकनीक में बल्कि विचारों और व्यवहार में भी। हमारे समाज के सभी वर्गों में सैद्धांतिक और वैचारिक पहलुओं यानी युद्ध कैसे लड़ा जाता है, इसकी एकेडमिक खोज और व्यावहारिक, वास्तविक युद्ध तकनीकों और युक्तियों के बारे में जागरूकता बढ़ाने की जरूरत है।”

शक्ति के बिना शांति एक स्वप्नलोक- अनिल चौहान

सीडीएस ने आगे कहा, “भारत हमेशा शांति के पक्ष में रहा है। हम एक शांतिप्रिय राष्ट्र हैं लेकिन ग़लतफ़हमी में न पड़ें, हम शांतिवादी नहीं हो सकते। मेरा मानना ​​है कि शक्ति के बिना शांति एक स्वप्नलोक है। मैं एक लैटिन उद्धरण कहना चाहूँगा जिसका अनुवाद है अगर आप शांति चाहते हैं तो युद्ध के लिए तैयार रहें।”

अनिल चौहान ने कार्यक्रम में कहा, “मुझे उम्मीद है कि यह विशेष सेमिनार, तकनीक के अलावा इस बात पर भी केंद्रित होगा कि भविष्य में किस तरह के युद्ध होंगे और उनकी पृष्ठभूमि क्या होगी। मेरे विचार से, चार आवश्यक रुझान हैं जिनकी मैं भविष्यवाणी करता हूं। पहला, राष्ट्रों और सरकारों में बल प्रयोग की प्रवृत्ति बढ़ रही है और ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि आज राजनीतिक उद्देश्य अल्पकालिक संघर्षों से प्राप्त किए जा सकते हैं। दूसरा रुझान जो मैं देख रहा हूं, वह है युद्ध और शांति के बीच अंतर का अभाव। इस विशेष युग में, जिसे हम घोषित युद्धों के रूप में जानते थे, मुझे लगता है कि वह अब समाप्त हो गया है।” पढ़ें- ऑपरेशन सिंदूर को लेकर अशोका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर खान का मामला