अयोध्या में 2.77 एकड़ विवादित राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि के स्वामित्व के लिए हिंदू पक्षों के दावों का विरोध करते हुए मुस्लिम पक्षकारों ने सोमवार (2 सितंबर, 2019) को सुप्रीम कोर्ट में अपनी दलीलें दीं। मुस्लिम पक्ष ने कहा कि यह विवादित भूमि का मामला हिंदुओं की आस्था और विश्वास के आधार पर तय नहीं किया जा सकता है कि भगवान राम का जन्म विवादित स्थल पर हुआ। मुस्लिम पक्ष की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने कहा कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का भारत के भविष्य, इसकी धर्मनिरपेक्षता और संविधान के धर्मनिरपेक्ष चरित्र पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा। कोर्ट में उन्होंने पूछा कि ‘क्या निर्धारित किया जाना है और इस मामले में कैसे? अदालत भगवान राम के जन्मस्थान के सटीक स्थान का निर्धारण कैसे करेगी?”

मुस्लिम पक्ष ने कहा कि हिन्दुओं ने 1934 में बाबरी मस्जिद पर हमला किया, फिर 1949 में अवैध घुसपैठ की और 1992 में इसे तोड़ दिया तथा अब कह रहे हैं कि संबंधित जमीन पर उनके अधिकार की रक्षा की जानी चाहिए। प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई के नेतृत्व वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने महत्वपूर्ण कार्यवाही के 17वें दिन मुस्लिम पक्ष की दलीलें सुननी शुरू कीं। वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने पीठ को बताया कि कानूनी मामलों में ऐतिहासिक बातों और तथ्यों पर पूरी तरह भरोसा नहीं किया जा सकता।

सुन्नी वक्फ बोर्ड और वास्तविक याचिकाकर्ताओं में से एक एम सिद्दीक की ओर से पेश धवन ने कहा, ‘1934 में आपने (हिन्दुओं) मस्जिद को तोड़ दिया और 1949 में अवैध घुसपैठ की तथा 1992 में आपने मस्जिद को पूरी तरह नष्ट कर दिया…और सभी तबाही के बाद आप कह रहे हैं कि ब्रिटिश लोगों ने हिन्दुओं के खिलाफ काम किया और अब आप कह रहे हो कि हमारे अधिकार की रक्षा की जानी चाहिए।’’

पीठ ने हालांकि, उनसे कहा, ‘‘कृपया इस सबमें मत जाइये। आपकी दलीलें मुद्दों से संबंधित होनी चाहिए।’’ धवन ने कहा कि ये सभी मुद्दे दूसरे पक्ष द्वारा उठाए गए हैं और उन्हें जवाब देने की अनुमति मिलनी चाहिए क्योंकि यह सुनवाई ‘‘देश के भविष्य’’ से जुड़ी है। इस पर देवता (रामलला विराजमान) पक्ष के वरिष्ठ अधिवक्ता सी एस वैद्यनाथन खड़े हुए और कहा कि धवन को मुद्दई (मुस्लिम पक्षों) के मामले के बारे में चर्चा करनी चाहिए।

इस पर प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘वह अपने मामले को जिस तरह से रखना चाहें, उसके लिए वह स्वतंत्र हैं।’’ धवन ने पीठ से कहा कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय के तीन न्यायाधीशों में से एक ने उल्लेख किया था कि ऐतिहासिक तथ्य स्वामित्व पर फैसला करने के लिए पर्याप्त आधार नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि तुलसीदास द्वारा लिखी गई रामायण एक काव्य है और उसे इतिहास का हिस्सा नहीं कहा जा सकता। (भाषा इनपुट)