राष्ट्रपति द्वारा नामित राज्यसभा सांसद स्वपन दासगुप्ता को राज्यसभा से इस्तीफा देना पड़ गया। टीएमसी नेता महुआ मोइत्रा ने ऐंटी डिफेक्शन लॉ के तहत उनके खिलाफ आवाज उठाई थी। दरअसल भाजपा ने उन्हें तारकेश्वर विधानसभा सीट से अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया। इसी वजह से स्वपन दासगुप्ता को यह कुर्बानी देनी पड़ गई। आइए जानते हैं कि आखिर वह कानून क्या है जिसकी वजह से सांसद को अपनी सीट छोड़नी पड़ी।

नामित सदस्य

संविधान के निर्माण के समय ही यह चर्चा हुई थी कि राज्यसभा में ऐसा सदस्य भी होना चाहिए जो कि भले ही चुनाव जीतकर न आया हो लेकिन मुद्दों को लेकर उसकी समझ हो और वह चर्चा को सही दिशा दे सके। एन गोपालस्वामी अयंगर ने कहा था कि वह ऐसा शख्स होना चाहिए जो किसी राजनीतिक दल की तरफ न हो। इसीलिए राज्यसभा में 12 नामित सदस्य होते हैं जो कि अलग-अलग क्षेत्र से आते हैं।

ये सदस्य, साहित्य, विज्ञान, कला और सामाजिक कार्य के क्षेत्र से हो सकते हैं। केंद्र सरकार की सिफारिश पर राष्ट्रपति इन सदस्यों को नामित करते हैं। इन सदस्यों के पास भी चुने हुए सांसदों जितनी ही शक्तियां और अधिकार होते है्ं। हालांकि वे राष्ट्रपति चुनाव में मतदान नहीं कर सकते हैं।

दल बदल विरोधी कानून

1985 की 10वीं अनुसूची को ही ऐंटी डिफेक्शन कानून के रूप में जाना जाता है। 1967 में हुए आम चुनाव के बाद इस कानून की ज़रूरत ज्यादा महसूस हुई थी। यह वह समय था जब विधायकों की दल बदल की वजह से कई राज्य सरकारें गिर गई थीं। 1985 में इस कानून में संशोधन किया गया जिससे कि दल-बदल को रोका जा सके। इसके लिए सजा यह रखी गई कि ऐसा करने वाले सदस्य को संसदीय सीट खोनी होगी और वह केंद्रीय मंत्री नहीं बन सकेगा।

सांसद के बारे में इसमें तीन स्थितियों का जिक्र किया गया है। पहला है कि सांसद उस पार्टी को अपनी इच्छा से छोड़ दे जिसके टिकट पर उसे चुना गया है। दूसरा है कि कोई सांसद निर्दलीय चुना गया हो और बाद में राजनीतिक दल में शामिल हो जाए। इन दोनों ही परिस्थितियों में उसे संसद की सीट से हाथ धोना पड़ेगा।

तीसरी स्थिति यह है कि अगर कोई सांसद राष्ट्रपति द्वारा नामित किया गया है तो 6 महीने के अंदर वह किसी भी दल में शामिल हो सकता है। लेकिन 6 महीने के बाद अगर वह ऐसा करता है तो उसे संसद की सीट छोड़नी पड़ेगी। दासगुप्ता के साथ भी यही हुआ। उन्हें साल 2016 में राज्यसभा की सदस्यता दी गई थी।