मस्क ने 44 अरब डालर में ट्विटर को खरीद लिया है और एक के बाद एक कई नए नियम लागू करने की घोषणा कर रहे हैं। उनकी घोषणाओं से नाराज लाखों ट्विटर उपयोक्ता इस माइक्रोब्लागिंग मंच को छोड़ रहे हैं। मस्क की घोषणाएं शाही फरमान की तरह लग रहे हैं। इनमें ‘ट्विटर ब्लू’ के लिए हर महीने 7.99 डालर शुल्क लेने की घोषणा भी शामिल है, जिसे लेकर काफी विवाद हो रहा है। कथित तौर पर यह एक सदस्यता सेवा है, जिसके तहत उपयोगकर्ताओं के नाम के आगे ब्लू टिक लग जाता है।

मस्क द्वारा ट्विटर खरीदने के बाद से, यह अनुमान लगाया गया है कि करीब 10 लाख खाते निष्क्रिय हो गए हैं। वहीं, करीब पांच लाख खाते निलंबित कर दिए गए हैं। हालांकि, 23.7 करोड़ उपयोगकर्ताओं वाले प्लेटफार्म के लिए यह कोई बड़ी संख्या नहीं है, लेकिन कुछ लोगों का कहना है कि ये तो अभी शुरुआत है। ऐसे में कई ऐसे सार्वजनिक मंचों की चर्चा शुरू हो गई है, जहां ट्विटर के उपभोक्ता जा सकते हैं। भारत के ‘कू’ समेत दुनिया भर के कई विकल्पों पर चर्चा शुरू हो गई है। भारत के अलावा जर्मनी, अमेरिका और आस्ट्रेलिया में ऐसे मंच कुछ अरसे से काम कर रहे हैं। ट्विटर से टूटने वाले उपयोक्ताओं के इन मंचों की लौटने की संभावना जताई जा रही है।

शुल्क की शर्त का नुकसान

अंदेशा जताया जा रहा है कि उपयोगकर्ताओं को शुल्क चुकाकर ब्लू टिक पाने की अनुमति देने से कोई भी व्यक्ति पैसे चुकाकर किसी हाई-प्रोफाइल व्यक्ति के नाम पर फर्जी पहचान बना सकता है। ब्लू टिक होने से यह पता करना मुश्किल हो जाएगा कि यह उस व्यक्ति की असली प्रोफाइल है या फर्जी। इसके अलावा कई उपयोगकर्ताओं की यह भी शिकायत है कि ट्विटर पर अभद्र भाषा का इस्तेमाल भी बढ़ा है।

सोशल मीडिया मंचों का विश्लेषण करने वाली वेबसाइट ‘डेटामाइनर’ के मुताबिक, मस्क द्वारा 27 अक्तूबर को ट्विटर खरीदने के बाद से इस मंच पर नस्लवादी और समलैंगिकता से जुड़ी अभद्र टिप्पणियों में वृद्धि देखने को मिली है। यहां तक कि ट्विटर के सुरक्षा प्रमुख योएल रोथ ने भी गालियां देने (ट्रोल करने) से जुड़े अभियान में वृद्धि को लेकर चेतावनी दी है। हालांकि, उन्होंने ट्वीट किया, ‘ऊपर से लेकर नीचे तक, ट्विटर की नीतियां नहीं बदली हैं। यहां किसी भी तरह के द्वेषपूर्ण व्यवहार को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।’

विकल्प की दौड़ में आगे कौन

सवाल यह है कि इस मंच को छोड़कर ट्विटर के उपयोक्ता कहां जा रहे हैं? यहां चार सबसे लोकप्रिय माइक्रोब्लागिंग मंचों की जानकारी दी गई है। इनमें ‘मेस्टोडोन’ इस समय काफी सुर्खियों में है। यह सभी लोगों के इस्तेमाल के लिए उपलब्ध है और पूरी तरह से गैर-लाभकारी मंच है। इसे किसी भी ब्राउजर पर इस्तेमाल किया जा सकता है और इसका अपना ऐप भी है।

ट्विटर पर मिलने वाली कई सुविधाएं इसमें मौजूद हैं और इसे इस्तेमाल करना बेहद आसान है।विकेंद्रीकृत होस्ट सर्वर के जरिए साइन अप करने के बाद, कोई उपयोगकर्ता यहां 500 वर्णों के ‘टाट्स’ पोस्ट कर सकता है। मेस्टोडोन पर पोस्ट किया गया आपका ‘टाट्स’ समय के हिसाब से आपकी टाइमलाइन पर दिखता है। साथ ही, उन पर जवाब भी दिया जा सकता है और उसे पसंदीदा के तौर पर दर्ज भी किया जा सकता है।

यहां भी दूसरों उपयोगकर्ताओं को फालो करने और उन्हें किसी पोस्ट में टैग करने का विकल्प मिलता है। हैशटैग भी है। मेस्टोडोन को 2016 में जर्मन साफ्टवेयर डेवलपर ओइगेन होस्को ने बनाया था। ये मेस्टोडोन के एकमात्र कर्मचारी भी हैं। फिलहाल मेस्टोडोन के हर दिन के सक्रिय उपयोगकर्ताओं की संख्या करीब 12 लाख है। ट्विटर के बिकने के बाद से इसके उपयोगकर्ताओं की संख्या कथित तौर पर तेजी से बढ़ी है।

कई और विकल्प

‘पार्लर’ को भी एक विकल्प माना जा रहा है। अमेरिकी निर्माता, रैपर और फैशन डिजाइनर ‘ये’ ने हाल ही में पार्लर खरीदने की योजना की घोषणा की है। पार्लर ऐसा मंच है, जो रूढ़िवादियों के बीच लोकप्रिय है। पार्लर को 2018 में स्थापित किया गया था। इसका मानना है कि इसके मंच पर खुलकर बोलने की आजादी है और यहां किसी सामग्री के ऊपर ज्यादा नियम-कानून लागू नहीं होते, किसी के साथ भेदभाव नहीं होता।

यहां पहले से ऐसे लोग सक्रिय हैं, जिन्हें मुख्यधारा की कई मंच पर प्रतिबंधित किया जा चुका है। इस मंच ने मई 2021 में सामग्री को फिल्टर करने की सुविधा लागू की। यहां 1,000 वर्णों तक के संदेश को जारी किया जा सकता है। इसके बाद ‘टंबलर’ की चर्चा आती है, जिसकी स्थापना 2007 में की गई थी। यहां मल्टीमीडिया और क्यूरेशन पर जोर है। टंबलर की तरह ही ‘रेडिट’ भी पुराना मंच है। इसका इस्तेमाल भी 2005 के आसपास से किया जा रहा है।

इसे सामाजिक खबरों को प्रकाशित करने वाला मंच बताया जाता है। ट्विटर के सह-संस्थापक और पूर्व सीईओ जैक डोर्सी ‘ब्लू स्काई’ विकसित करने में व्यस्त हैं। 2019 में इसे ट्विटर के गैर-लाभकारी विकल्प के तौर पर विकसित करने की प्रक्रिया शुरू हुई। फिलहाल, यह परीक्षण के दौर में है।

भारत का ‘कू’

ट्विटर का भारतीय वर्जन यानी ट्विटर जैसी सुविधाओं वाला भारत का कू ऐप जुलाई 2020 में शुरू किया गया। यहां भारतीय लोगों को अपने खुद की भाषा में अपने विचार रखने का विकल्प है। इसमें चीजों को पोस्ट तो किया ही जा सकता है, साथ ही तस्वीरों और वीडियो को अटैच भी किया जा सकता है। इसके अलावा आप दूसरे के पोस्ट पर कमेंट करने के साथ उसे फालो भी कर सकते हैं।

इसमें आपको आडियो, वीडियो और टेक्स्ट तीनों का विकल्प मिलता है। इस मंच में हिंदी के अलावा तमिल, कन्नड, और तेलगु भाषा का विकल्प है। कंपनी आने वाले समय में मराठी, गुजराती, पंजाबी, आसामी, बांग्ला, मलयालम, ओड़िया जैसी भाषाएं भी इस मंच में शामिल करेगी। कंपनी ने अपने इस ऐप को एंड्राइड और आइओएस दोनों के लिए उपलब्ध करवाया है।

क्या कहते हैं जानकार

ट्विटर में काम करने वाले पूर्व और वर्तमान के लोग मजबूत और प्रतिभावान हैं। वे हमेशा अपना रास्ता खोज लेंगे, चाहे कितने भी कठिन समय में ही क्यों न हो। मैंने इस कंपनी के आकार को बहुत जल्दी ही बड़ा बना लिया, इसके लिए सबसे माफी मांगता हूं।

  • जैक डोर्सी, ट्विटर के सह संस्थापक

कू से जुड़ने के लिए हम मस्क को आमंत्रित करते हैं। हम माइक्रोब्लागिंग मंचों के लिए एक विकेंद्रीकृत विचार लेकर आए हैं। हम दुनिया की बड़े गैर अंग्रेजी आबादी को आवाज दे रहे हैं और हर देश के कानून का बारीकियों के साथ पालन कर रहे हैं।
अप्रमेय राधाकृष्ण, कू के सह संस्थापक और सीईओ