जाने-माने स्‍कॉलर, राजनीतिक विश्‍लेषक और टिप्पणीकार प्रताप भानु मेहता ने राजनीतिक दबाव के चलते अशोका यूनिवर्सिटी से इस्‍तीफा दिया है। मेहता ने अपने लेखन से और सार्वजनिक तौर पर सरकार पर सवाल उठाए हैं। उन्हें राजनीति और राजनीतिक सिद्धांत, संवैधानिक कानून, शासन और राजनीतिक अर्थव्यवस्था पर देश के अग्रणी स्‍कॉलर्स में से एक माना जाता है। उनके इस्तीफे का जो मजमून है उसमें इसी बात के संकेत मिल रहे हैं कि उनका यह कदम राजनीतिक दबाव के चतते है। लेकिन हाल फिलहाल मेहता इस मसले पर खुलकर नहीं बोल रहे हैं।

मेहता के इस्तीफे में दिखा राजनीतिक दबाव

डियर प्रोफेसर सरकार,
मैं अशोका यूनिवर्सिटी से प्रोफेसर के पद से इस्तीफा दे रहा हूं। फाउंडर्स से मिलने के बाद यह साफ हो गया है कि यूनिवर्सिटी से मेरा संबंध पॉलिटिकल लायबिलिटी समझा जा सकता है। मेरा सार्वजानिक लेखन उन चीजों के समर्थन में है, जो आजादी और सभी नागरिकों के लिए बराबर सम्मान के संवैधानिक मूल्यों का सम्मान करती है। उसे यूनिवर्सिटी के लिए खतरा समझा जाने लगा है। यूनिवर्सिटी के हित में मैं इस्तीफा देता हूं। वह निवेदन करते हैं कि इस्तीफा त्वरित प्रभाव से हो। वह एक क्लास पढ़ा रहे हैं और बच्चों को बीच में नहीं छोड़ना चाहते। लेकिन उन्हें लगता है कि यूनिवर्सिटी इसका कोई हल निकाल लेगी। अगर कोई उपाय नहीं निकलता है तो वह अनौपचारिक तौर पर बाकी क्लास खत्म करा सकते हैं। मेहता ने लिखा, अशोका में अच्छे साथी और छात्रों से मिलना सुखद रहा है। वह उम्मीद करते हैं कि इंस्टीट्यूट हमेशा कामयाबी की राह पर अग्रसर होता रहे।

मेहता ने लिखा, यह साफ है कि मेरा अशोका से जाने का समय आ गया है। एक उदार यूनिवर्सिटी को पनपने के लिए उदार राजनीतिक और सामाजिक संदर्भ की जरूरत होती है। मुझे उम्मीद है कि यूनिवर्सिटी ऐसा माहौल बनाने में भूमिका निभाएगी। Nietzsche ने एक बार कहा था कि यूनिवर्सिटी में सच के लिए जिंदा रहना मुमकिन नहीं। मेरी उम्मीद है कि भविष्यवाणी सच न हो। लेकिन मौजूदा माहौल की रोशनी में प्रशासन और फाउंडर्स को अशोका के मूल्यों के लिए एक नई प्रतिबद्धता चाहिए होगी और अशोका की आजादी के लिए एक नया साहस।

उन्होंने लिखा, मेरा एक निवेदन है कि प्रशासन सभी ट्रांजिशन औपचारिकताएं आसानी से करने में सहयोग दे। अगर उनके ड्राइवर गजेंद्र साहू के लिए कोई व्यवस्था हो पाए तो वह आभारी रहेंगे। उन्होंने मेरे साथ नौकरी बदली हैं और उनको सजा नहीं मिलनी चाहिए। जब तक कि कोई दूसरी व्यवस्था न हो, उन्हें कुछ अंतरिम मदद दी जा सके, तो वह संस्थापकों के आभारी रहेंगे।
कृपया अशोका के सभी छात्रों, स्टाफ और फैकल्टी तक मेरा आभार पहुंचा दें। मेहता ने लिखा, इस मेल को मेरा इस्तीफा समझा जाए। वह एक हार्ड कॉपी भी साइन करके भेज देंगे।

प्रोफेसर अपूर्वानंद ने कहा कि मेहता एक दुर्लभ बुद्धिजीवी हैं। उनका अपना एक कद है और इसी वजह से उनकी आवाज का असर है। सरकार को यह बात खटक रही है। उनका कहना है कि अशोका जैसे विवि जैसे घोषणा करते हैं कि वैश्विक स्तर पर वह अनुकरणीय हैं, लेकिन अगर वो बौद्धिक स्वतंत्रता को अपने यहां जगह नहीं देते तो केवल एक महंगा संस्थान बनकर रह जाएंगे।

अरविंद गुनसेकर ने ट्विटर पर लिखा, मेहता ने जैसे इस्तीफा दिया, उससे साफ लग रहा है कि वह राजनीतिक दबाव में हैं। मेहता जैसे स्कॉलरों की आवाज को दबाकर सरकार केवल विरोध के स्वर को दबाना चाहती है। उसे लगता है कि मेहता जैसे प्रबुद्ध लोगों की आवाज की एक अहमियत है और इसे बंद करना ही बेहतर है। उनका कहना है कि इस तरह का चलन लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं है।