प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावों के दौरान हर साल 1 करोड़ नौकरियों के नए अवसर सृजित करने का वादा किया था। मोदी सरकार चार साल पूरा कर चुकी है। अगले साल आम चुनाव होने हैं, ऐसे में चुनाव पूर्व रोजगार को लेकर किए गए वादों पर अमल को लेकर सवाल उठने शुरू हो गए हैं। केंद्र ने रोजगार के नए मौकों को बढ़ाने के लिए वर्ष 2015 में प्रधानमंत्री मुद्रा योजना की शुरुआत की थी। सरकार इसके जरिये व्‍यापक पैमाने पर रोजगार मिलने का दावा कर रही है। हालांकि, सूचना का अधिकार कानून (आरटीआई) के तहत वित्‍त मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले वित्‍तीय सेवा विभाग से मिली जानकारी से कुछ अलग ही तस्‍वीर सामने आई है। ‘द वायर डॉट इन’ के अनुसार, मुद्रा योजना के तहत जितने भी लाभार्थियों को लोन दिया गया है, उनमें से सिर्फ 1.3 फीसद को ही स्‍वरोजगार के लिए 5 लाख रुपये या उससे ज्‍यादा का कर्ज दिया गया है।

दिल्‍ली के आरटीआई कार्यकर्ता चंदन काम्‍हे के आवेदन पर वित्‍तीय सेवा विभाग ने मुद्रा योजना से जुड़े कई महत्‍वपूर्ण आंकड़े मुहैया कराए हैं। इसके अनुसार, वर्ष 2017-18 के दौरान इस योजना के तहत 4.81 करोड़ लोगों को कुल 2,53,677.10 करोड़ रुपये का लोन दिया गया था। इसका मतलब यह हुआ कि एक लाभार्थी को अपना व्‍यवसाय शुरू करने के लिए औसतन 52,700 रुपये का लोन मिला। विशेषज्ञों की मानें तो इतनी कम राशि में ऐसा व्‍यवसाय शुरू नहीं किया जा सकता, जिससे रोजगार के नए मौके का सृजन हो सके। बता दें कि मुद्रा योजना के तहत पहली बार व्‍यवसाय शुरू करने जा रहीं महिलाओं और दलितों पर विशेष ध्‍यान दिया जाता है। गौरतलब है क‍ि मोदी सरकार मुद्रा लाभार्थियों को रोजगार में लगा हुआ मानने पर विचार कर रही है। श्रम मंत्रालय ने इस आशय का प्रस्‍ताव रखा था।

12 करोड़ से ज्‍यादा को मिला मुद्रा लोन: पीएम मोदी महत्‍वाकांक्षी मुद्रा योजना के तहत 3 मई, 2018 तक 12.61 करोड़ लोगों को कर्ज दिया जा चुका था। उपलब्‍ध आंकड़ों के अनुसार, इनमें से सिर्फ 17.57 लाख लोगों (1.3 फीसद) को 5 लाख रुपये उससे ज्‍यादा का लोन दिया गया। इनमें से बैंकों और माइक्रो फाइनेंस इंस्‍टीट्यूशंस द्वारा क्रमश: 65 फीसद और 35 प्रतिशत लोन दिए गए। अर्थशास्त्रियों का मानना है कि 5 लाख रुपये से कम में औरों को रोजगार देने लायक व्‍यवसाय करना बेहद मुश्किल है। हालांकि, वित्‍त वर्ष 2015-16 (1,32,954 करोड़ रुपये) के मुकाबले वित्‍त वर्ष 2017-18 (2,46,437 करोड़ रुपये) में इस योजना के तहत 85 फीसद ज्‍यादा लोन प्रदान किए गए।

रिस्‍की लोन: मुद्रा योजना के तहत दिए जाने वाले लोन को रिस्‍की भी माना जाता है। इस योजना में कोलेटरल (लोन के एवज में रखी जाने वाली संपत्ति) का प्रावधान नहीं है। ऐसे में यदि कोई कर्जदार लोन नहीं चुका पाता है तो वित्‍तीय संस्‍थानों के पास रिकवरी के लिए कोई विकल्‍प नहीं बचता है। आर्थिक विशेषज्ञ इसे उचित नहीं मानते हैं। ऐसे में पहले से ही नॉन परफॉर्मिंग एसेट के बोझ तले दबे बैंकों का एनपीए और बढ़ने की आशंका है।