सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस बीएन श्रीकृष्णा पर्सनल डाटा प्रोटेक्शन बिल का ड्राफ्ट करने वाली कमेटी के हेड हैं। जस्टिस बीएन श्रीकृष्णा ने अब इस बिल को लेकर चेतावनी दी है कि यह बिल केन्द्र सरकार को जो शक्तियां और कानूनी ताकत देगा, वह खतरनाक ट्रेंड हो सकता है, जिससे समाज के खुलेपन को खतरा है।

जस्टिस श्रीकृष्णा ने संसद की ज्वाइंट सलेक्ट कमेटी को बिल का नोट भेजा है, जिसमें कहा गया है कि “डाटा का स्थानीयकरण करना मुश्किल हो रहा है क्योंकि विदेशी कंपनियों द्वारा इसे लेकर दबाव बनाया जा रहा है।”

जस्टिस श्रीकृष्णा के नेतृत्व में गठित कमेटी ने ‘प्राइवेसी बिल’ का पहला ड्राफ्ट जुलाई 2018 में जारी किया गया था। बता दें कि यह देश का पहला ऐसा बिल है, जो कि देश के किसी नागरिक के डाटा कलेक्शन, मूवमेंट और प्रोसेसिंग को रेगुलेट करेगा ताकि उसके निजता के अधिकार की रक्षा हो सके।

इस विधेयक के तहत पर्सनल डाटा के इस्तेमाल से पहले उपभोक्ताओं की मंजूरी लेनी जरूरी होगी, जबकि बायोमीट्रिक डाटा के लिए सरकार की मंजूरी आवश्यक होगी। बच्चों के मामले में और ज्यादा सख्ती बरती जाएगी। वहीं सभी कंपनियों को अपने डाटा की तमाम जानकारी सरकार के साथ शेयर करनी होगी।

जस्टिस श्रीकृष्णा द्वारा तैयार किए गए ड्राफ्ट में सभी पर्सनल डाटा, जिसमें संवेदनशील और गैर संवेदनशील डाटा भी भारत में स्टोर करने की बात कही गई है। लेकिन अब आईटी मंत्रालय ने बिल का नया स्वरूप पेश किया है, जिसमें संवेदनशील डाटा के भी विदेश में स्टोर करने का प्रावधान किया गया है। हालांकि इसके लिए सरकार की मंजूरी आवश्यक होगी।

संसदीय समिति को लिखे नोट में जस्टिस श्री कृष्णा ने बताया है कि यदि डाटा शॉर्ट नोटिस पर एक्सेस करने की जरूरत पड़ी तो MLAT प्रक्रिया के तहत ऐसा करना नामुमकिन होगा क्योंकि इस प्रक्रिया में कम से कम 18 से 24 माह का वक्त लगेगा।

बता दें कि MLAT (Mutual Legal Assistance Treaty) वो प्रक्रिया है, जिसके तहत भारतीय अथॉरिटीज अमेरिकन कंपनियों से कानूनी मकसद से जानकारी ले सकती हैं। विदेशी कंपनियों को दी गई सुविधाओं पर जस्टिन श्रीकृष्णा ने कहा कि सरकार इससे हमेशा डाटा प्रोटेक्शन अथॉरिटी पर सरकार का दबाव रहेगा और सरकार इसकी निगरानी कर सकती है, जिसका भयावह प्रभाव हो सकता है।

केन्द्रीय मंत्रीमंडल ने 4 दिसंबर, 2019 को पर्सनल डाटा प्रोटेक्शन बिल को मंजूरी दी थी। इसके बाद इसे 12 दिसंबर, 2019 को  30 सदस्यों वाली कमेटी को भेजा गया था। इस कमेटी की दो बैठकें हो चुकी हैं और फिलहाल कमेटी इस बिल पर लोगों की प्रतिक्रियाएं जानने की कोशिश कर रही है।