वाघ बकरी चाय का साम्राज्य खड़ा करने वाले पराग देसाई अब हमारे बीच नहीं रहे हैं। अपनी चाय पत्ती से पूरी दुनिया में ख्याति बटोरने वाले पराग देसाई की ऐसी मौत की कल्पना किसी ने नहीं की थी। इसे एक सामान्य घटना समझकर नजरअंदाज भी नहीं किया जा सकता है। सुबह वॉक पर निकले, आवारा कुत्तों ने पीछे किया, डरकर भागे और सड़क पर फिसलने की वजह से सिर में गंभीर चोट आ गई। देखते ही देखते कुछ दिनों में अस्पताल में पराग का निधन हो गया और पीछे छूट गए कई गंभीर सवाल।
एनिमल लवर्स बनाम इंसानों की जान की कीमत
आवारा कुत्तों की समस्या कोई आज की नहीं है, पिछले कई सालों के कई मौकों पर ये सवाल उठाया जा चुका है। जब भी इस मुद्दे की बात आती है, ये समाज दो हिस्सों में बंट जाता है। एक हिस्सा जानवरों के अधिकारों की बात करता है, सरल शब्दों में उन्हें एनिमल लवर्स भी कहा जा सकता है। वहीं दूसरी वर्ग वो रहता है जो सख्त कानून की मांग करता है, जिसके लिए आवारा कुत्तों का आतंक एक गंभीर मुद्दा बन चुका है।
कुत्तों के बढ़ते हमले, सरकार के क्या आंकड़े?
सरकार ने ही लोकसभा में आवारा कुत्तों के आतंक पर एक आंकड़ा जारी किया था। बताया गया था कि देश में साल 2019 में कुत्ते के काटने के मामले सर्वधिक 72.77 लाख रहे थे। अगले साल ये आंकड़ा कम होकर 46.33 लाख तक पहुंच गया था। फिर 2021 में और कम होकर 17 लाख तक चला गया, लेकिन 2022 में अकेले जुलाई महीने तक में ही 14.50 कुत्ते के काटने की घटनाएं सामने आ गईं। इसी कड़ी में एक रिपोर्ट बताती है कि भारत में औसतन रोज 11 हजार लोगों को कुत्तों ने काटा है।
रेबीज की बीमारी, भारत में सबसे ज्यादा मौतें
यहां ये समझना भी जरूरी है कि सिर्फ कुत्तों का काटना एक समस्या नहीं है, असल दिक्कत ये है कि ज्यादातर आवारा कुत्तों की वैक्सिनेशन नहीं होती है। ऐसे में इनके काटने से लोगों में रेबीज की बीमारी भी तेजी से बढ़ गई है। हैरानी की बात ये है कि पूरी दुनिया की रेबीज से जो कुल मौते रहती हैं, उसमें 36 प्रतिशत अकेले भारत में रहती है। यहां भी एक रिपोर्ट के मुताबिक हर साल भारत में रेबीज की वजह से 20 हजार लोग अपनी जान गंवा रहे हैं।
लापरवाह नगर निगम, आवारा कुत्तों का कोई नहीं
चिंता का विषय ये भी है कि इन आवारा कुत्तों की संख्या देश में बढ़ रही है। वर्तमान में ये आंकड़ा साढ़े छह करोड़ के करीब बताया गया है जिसे अगर नहीं रोका गया तो आगे चलकर ये 10 करोड़-15 करोड़ तक भी जा सकता है। जानकार मानते हैं कि ये जो आवारा कुत्ते हैं, इनकी कोई भी देखभाल नहीं करता है। कहने को कुछ नियम जरूर रहते हैं, कागज पर कई काम भी कर दिए जाते हैं, लेकिन जमीन पर ये कुत्ते बिना किसी मदद के ऐसे ही घूमते रहते हैं।
गाड़ियों के पीछे क्यों भागते हैं कुत्ते?
नगर निगम की ये जिम्मेदारी रहती है कि इन आवारा कुत्तों का भी पूरा ध्यान रखा जाए। उनकी टीकाकरण हो, जरूरत पड़ने पर उन्हें शेल्टर होम में भी जगह दी जाए। लेकिन भारत में तो स्ट्रीट डॉग्स कई मौकों पर खाने के लिए भी तरस जाते हैं। इसके ऊपर उनके हिंसक होने के भी अपने कारण माने जा रहे हैं। कुछ जानकारों के मुताबिक कुत्ते गाड़ियों के पीछे इतना इसलिए भागते हैं क्योंकि उनसे डर लगता है। डर कहीं उन्हें कोई कुचल ना दे। ये एक आम बात है, कई बार देखा गया है कि तेज रफ्तार गाड़ियां कुत्तों को टक्कर मार जाती है। ऐसे में खुद को बचाने के लिए ये कुत्ते इतना हिंसक हो जाते हैं।
कुत्तों की बढ़ती आबादी पर कैसे काबू?
इसके अलावा सच्चाई ये भी है कि इन कुत्तों की आबादी बढ़ने का कारण ये है कि समय रहते कई की नसबंदी नहीं की गई है। इसकी जिम्मेदारी भी नीचे के अधिकारियों की दी जाती है, लेकिन ये काम कभी पूरा हो ही नहीं पाता। उसी लापरवाही का ये नतीजा है कि आवारा कुत्तों का आतंक बढ़ता जा रहा है। उनके काटने से मरने वालों की संख्या भी काफी ज्यादा चल रही है।