10 दिनों के अंदर पनामा पेपर्स से जुड़े दो व्हिसलब्लोअर के सार्वजनिक होने का मामला चर्चा में है। बता दें कि प्रमुख मीडिया संस्थानों को व्हिसलब्लोअर द्वारा दिए गए साक्षात्कार का पहला मामला 13 जुलाई को और दूसरा मामला 22 जुलाई को सामने आया। इस दौरान पनामा पेपर्स के व्हिसलब्लोअर ने एक जर्मन दैनिक समाचार पत्र को अपना साक्षात्कार दिया।

उबर के साथ एक वरिष्ठ लॉबिस्ट के रूप में वर्षों तक काम करने वाले मार्क मैकगैन ने 1,24,000 दस्तावेजों को लीक किया था, जिन्हें अब उबर फाइल्स के रूप में जाना जाता है। उबर के व्हिसलब्लोअर मार्क मैकगैन का कहना है कि वास्तव में जब मैं उबर के साथ काम कर रहा था, तभी से खतरों का सामना करना पड़ रहा था।

इस महीने की शुरुआत में अपने साक्षात्कार में मैकगैन ने कहा, “मुझे लगता है कि मैंने जिन तथ्यों को उजागर किया है, उसे लोगों को देखने की जरूरत है। मैं जो कर रहा हूं वह आसान नहीं है, लेकिन मेरा मानना ​​है कि यह सही है।”

बता दें कि पनामा पेपर्स के जरिए खुलासा हुआ कि बहुत अधिक पैसे वाले लोग अपने पैसों को उन देशों में जमा करते हैं जहां टैक्स का कोई चक्कर नहीं होता। इसमें कई भारतीयों का भी नाम शामिल है। पनामा पेपर्स लीक होने के बाद जर्मन पत्रकार फ्रेडरिक ओबरमेयर और बास्टियन ओबरमेयर के साथ बातचीत में एक व्हिसलब्लोअर जॉन डो ने कहा कि उसे अब भी वित्तीय भ्रष्टाचार सामने लाने के बाद उससे बदला लेने की आशंका सताती है।

व्हिसलब्लोअर जॉन डो ने जर्मन समाचार आउटलेट से बात करते हुए कहा कि यह एक जोखिम भरा है। इसके साथ मैं अपना जीवन बिता रहा हूं। वो भी उस हालत में जब रूसी सरकार की मंशा है कि वह मुझे मारना चाहती है।

साक्षात्कार के जरिए खुद के सामने आने पर जॉन डो ने कहा कि दुनिया में जिस तरह से अस्थिरता बढ़ रही है, उसे देखते हुए वो अपनी बात रखने के लिए प्रेरित हुए। पनामा पेपर्स के जरिए इतना बड़ा खुलासा होने के बाद भी आरोपियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई है। ओबेरमायर को दिए अपने साक्षात्कार में पनामा पेपर्स व्हिसलब्लोअर ने खुद को गुमनाम रखा है। उसे केवल “जॉन डो” कहा जाता है।

बता दें कि 2015 में जॉन डो ने पहली बार पत्रकार ओबरमेयर से संपर्क साधा था। इसके बाद उन्होंने पनामा की कानून कंपनी मोजेक फोंसेका के अंदर से 2.6 टेराबाइट का डेटा उपबल्ध कराया था। दिलचस्प बात यह है कि जॉन डो ने खुलासा किया है कि उन्होंने पहले कम से कम तीन प्रमुख प्रकाशनों को पनामा पेपर्स डेटा डंप की पेशकश की थी, जिसमें विकीलीक्स भी शामिल थे।

व्हिसलब्लोअर ने यह भी कहा है कि 2017 में पनामा पेपर्स के प्रकाशन होने के एक साल बाद उसने जर्मन पुलिस को पैसे बदले मोजेक फोंसेका को दस्तावेज दिए थे। हालांकि इसपर उसने जर्मन अधिकारियों पर समझौते का उल्लंघन करने का आरोप लगाया और कहा कि इससे मेरी सुरक्षा को खतरा पैदा हो गया।

पानामा पेपर्स:

साल 2016 में पनामा पेपर्स के जरिए दुनिया भर के उन लोगों का खुलासा हुआ था, जिन्होंने पनामा की लॉ कंपनी ‘मोसाक फोन्सेका’ की मदद से विदेशों में अपने पैसे जमा किए व संपत्तियां बनाई थीं। अमीर लोगों ने उन देशों में अपनी संपत्तियां बनाई जिन्हें ‘टैक्स हैवन’ कहा जाता है। इन देशों में कानून है कि पैसा जमा करवाने वाले की असली पहचान सामने नहीं लाई जाती।

भारत की तरफ से ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ अखबार ने पनामा पेपर्स की जांच की। इसमें भारतीय पत्रकार- पी वैद्यनाथन अय्यर और जय मजूमदार जांच करने वाले दल के सदस्य थे। दोनों ने 1 करोड़ 10 लाख से ज्यादा फाइलों में से भारत से जुड़ी 36,957 फाइलें तलाशी थीं।

पनामा में भारतीयों के नाम:

पनामा पेपर्स में अमिताभ बच्चन, ऐश्वर्या राय बच्चन, अजय देवगन, विनोद अडाणी, शिशिर बजौरिया का नाम आया। इनमें गड़वारे परिवार, अपोलो ग्रुप के चेयरमैन ओंकार कंवर, वकील हरीश साल्वे, टैफे की चेयरमैन मल्लिका श्रीनिवासन, डीएलएफ के केपी सिंह का भी नाम है।