एनटीपीसी के 2,066 करोड़ रुपए के एक ठेके को हासिल करने के लिए रूस की एक कंपनी द्वारा कथित तौर पर रिश्वत देने के मामले में एक अदालत ने सीबीआइ निदेशक को आगे जांच पर नजर रखने को कहा है और साथ ही एजंसी को उचित तरीके से जांच नहीं करने के लिए आड़े हाथ लिया है। विशेष सीबीआइ न्यायाधीश ब्रजेश गर्ग ने कहा कि सीबीआइ के अधिकारी एनटीपीसी के वरिष्ठ अधिकारियों और बुनियादी संरचना पर कैबिनेट की समिति (भारत सरकार) के सदस्यों द्वारा आपराधिक लापरवाही या पदों के दुरुपयोग होने की बात का पता लगाने के लिए मामले में आगे जांच को इच्छुक नहीं लगते। ऐसा लगता है कि इन वरिष्ठ अधिकारियों और नेताओं के ऊंचे संपर्क हैं और भारत सरकार के कामकाज में इनकी अच्छी खासी चलती है।’’

सीबीआइ की ओर से दाखिल आरोपपत्र को स्वीकार करने से इनकार करते हुए अदालत ने कहा कि एजंसी ने एनटीपीसी के वरिष्ठ अधिकारियों और बुनियादी संरचना पर कैबिनेट समिति के सदस्यों को बचाने का प्रयास किया है। सीबीआइ निदेशक को आगे जांच पर निगरानी रखने का आदेश देते हुए अदालत ने उनसे ऐसे किसी अधिकारी को तफ्तीश का काम सौंपने को कहा है जो संयुक्त निदेशक के स्तर से नीचे का नहीं हो। अदालत ने पिछले साल अप्रैल में मामले में दाखिल सीबीआइ के आरोपपत्र को वापस कर दिया था और एजंसी को एनटीपीसी के उन अधिकारियों की जिम्मेदारी तय करने के पहलू पर आगे जांच करने का निर्देश दिया था, जिन्होंने ‘जानबूझकर’ रूसी कंपनी टेक्नोप्रोमएक्सपोर्ट (टीपीई) के निविदा दस्तावेजों में विसंगतियों को रेखांकित नहीं किया था।

हालांकि अदालत ने इस बात पर नाराजगी जताई कि सीबीआइ ने उसके पहले के आदेश का पालन करने के लिए पिछले डेढ़ साल तक कोई जांच नहीं की। सीबीआइ के मुताबिक साल 2002 से 2005 तक एनटीपीसी के कुछ अधिकारियों ने बिहार के बाढ़ में सुपर थर्मल पॉवर परियोजना का ठेका देने के लिए रिश्वत ली थी। इंटरपोल, लंदन की सूचना पर मामले में प्राथमिकी दर्ज की गई जिसने आरोप लगाया कि ब्रिटेन के एक बैंक खाते में डेढ़ करोड़ पौंड पड़े हैं और ये रिश्वत का पैसा लगता है। सीबीआइ ने आरोप लगाया था कि एनटीपीसी ने टीपीई रशिया के साथ तीन करार किए थे और अग्रिम राशि के रूप में उसे पांच करोड़ 36 लाख डॉलर से भी ज्यादा की रकम भेजी थी।