देश के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) अजित डोवाल की कश्मीर घाटी में घूमते-फिरते और आम लोगों से बातचीत की तस्वीरें काफी वायरल हो रही हैं। वर्तमान NSA को करीब से जानने वाले बताते हैं कि इंसर्जेंसी के बीच रैलिक्स तरीके से रहने की आदत उनके लिए कोई नई बात नहीं है। जब पंजाब में आतंकवाद अपने चरम पर था उस दौर में डोवाल से जुड़ी कई जानकारियां बाहर आईं। इस बात का खुलासा हुआ कि डोवाल ‘ऑपरेशन ब्लैक थंडर’ में भी बतौर खुफिया अधिकारी अहम भूमिका निभा रहे थे।
NSA के बारे में “रिटर्न ऑफ द सुपरस्पाई” में पत्रकार यतीश यादव लिखते हैं, “1988 में अमृतसर स्थित स्वर्ण मंदिर के आसपास रहने वाले और खालिस्तानी आतंकवादियों ने एक रिक्शावाले को अपना धंधा-पानी करते पाया। रिक्शाचालक ने आतंकवादियों को आश्वस्त किया कि वह एक आईएसआई (पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी) के एजेंट हैं और उन्हें पाकिस्तानी आकाओं द्वारा खालिस्तान समर्थकों की मदद के लिए भेजा गया है। ऑपरेशन ब्लैक थंडर से दो दिन पहले रिक्शा चालक ने स्वर्ण मंदिर में प्रवेश किया और महत्वपूर्ण जानकारी के साथ लौटा, जिसमें मंदिर के अंदर आतंकवादियों की वास्तविक स्थिति और ताकत का अंदाजा मिला। वह कोई और नहीं बल्कि अजीत डोवाल बतौर अंडरकवर एजेंट थे। जब अंतिम हमला शुरू हुआ तब नौजवान पुलिस अधिकारी (डोवाल) मंदिर के भीतर ही थे, ताकि जानकारी जुटाते रहें और सुरक्षा बलों को आतंकियों के पूर्ण सफाया करने में मदद कर सकें।”
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2014 में डोवाल जब NSA बनाए गए तब उनके कार्यों के एक मात्र गवाह और ऑपरेशन ब्लैक थंडर में एनएसजी को कमांड करने वाले रिटायर्ड कर्नल करन खर्ब ने बताया, “जब अजित डोवाल वहां पहुंचे। तब हमारे बीच के सिर्फ चुनिंदा लोग ही ऑपरेशन में इस सुपरकॉप के महान योगदान को जान रहे थे। स्वर्णमंदिर कॉम्प्लेक्स के भीतर की क्या-क्या गतिविधियां है इसकी पहली जानकारी वह हमारे तक पहुंचा रहे थे। वह अपनी व्यक्तिगत सुरक्षा की फिक्र न करते हुए गोलीबारी के बीच में भी कॉम्प्लेक्स के भीतर दौड़भाग कर रहे थे। बाद में हमें पचा चला कि उन्होंने खुद को ISI एजेंट के रूप में वहां पहचान बनाई थी।”