अर्थशास्त्र के लिए नोबेल पुरस्कार हासिल करने वाले भारतीय-अमेरिकी अभिजीत बनर्जी भारत की मोदी सरकार की नीतियों की आलोचना करते रहे हैं। उन्होंने भारत में सरकारी डेटा को दबाने की प्रवृत्ति के खिलाफ भी आवाज उठाई थी। दरअसल, इसी वर्ष 14 मार्च को दुनिया भर के अर्थशास्त्रियों और सामाजिक वैज्ञानिकों ने भारत में परेशान करने वाले आंकड़ों को दबाने की प्रवृत्ति के खिलाफ आवाज बुलंद की थी। इस तबके ने तब सार्वजनिक आंकड़ों तक पहुंच और इसकी अखंडता को बहाल करने और सांख्यिकी संगठनों की स्वतंत्रता को फिर से स्थापित करने की मांग उठाई थी। इसमें 108 लोग शामिल थे। इनके हस्ताक्षर के तहत एक अपील में कहा गया था कि सरकार की उपलब्धि पर जो आंकड़े संदेह का कारण बनते हैं, उन्हें संशोधित या दबाया जा सकता है।

इस अपील के समर्थन में अभिजीत बनर्जी और उनकी पत्नी एस्थर डुफ्लो समेत कुछ अन्य सम्मानित अर्थशास्त्री और सांख्यिकीविद आगे आए थे। यह अपील ऐसे वक्त में आई थी जब बेरोजगारी और इससे जुड़े अस्पष्ट डेटा पर सवाल उठाए जा रहे थे। गौरतलब है कि जनवरी के आखिर में राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग (NSC) के कार्यवाहक चेयरमैन ने रोजगार के आंकड़े जारी करने में होने वाली देरी के खिलाफ इस्तीफा दे दिया था। बाद में लीक हुई सूचना के तहत जानकारी सार्नजनिक हुई कि जून 2018 में देश के भीतर बेरोजगारी की दर बढ़कर 6.1 प्रतिशत हो गई, जो पिछले 45 वर्षों में उच्चतम स्तर थी।

ऐसी परिस्थिति में अपील करने वालों ने पेशेवर अर्थशास्त्रियों और सांख्यिकीविदों तथा नीति के संबंध में शोधकर्ताओं से अपील की थी कि वे अपने वैचारिक झुकाव की परवाह किए बिना सरकार के आंकड़ों को दबाने की प्रवृत्ति के खिलाफ बोलने को कहा था। उस दौरान ”Economic Statistics in a Shambles: Need to Raise a Voice” नाम से एक शीर्षक छपा था जिसमें अर्थशास्त्रियों ने चिंता जाहिर की थी।

गौरतलब है कि जब अभिजीत बनर्जी समेत 108 अर्थशास्त्रियों और सांख्यिकीविदों ने आर्थिक आंकड़ों में राजनीतिक दखलंदाजी को लेकर सवाल खड़े किए थे, तब तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने इनकी जमकर आलोचना की थी। उन्होंने ब्लॉग के जरिए अर्थशास्त्रियों के द्वारा उठाए गए संदेह पर सवाल खड़े किए थे और भारतीय अर्थव्यवस्था को दुनिया की सबसे तेज गति से विकसित होने वाली अर्थव्यवस्था करार दिया था।

जेटली ने इस मुहिम को नकली अभियान करा दिया और कहा कि केंद्रीय सांख्यिकी संगठन (CSO) हमेशा से स्वंतत्र तौर पर काम करता है। डेटा को वैश्विक प्रथाओं के अनुरूप ही तैयार किया जाता है। उन्होंने लिखा था कि विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने हमेशा हमारे आंकड़ों को स्वीकार करते हुए अनुकूल टिप्पणी की है।