दिवाली रावण को मारने के बाद राम के वनवास से अयोध्या लौटने की कहानी से जुड़ी है। लेकिन जैन रामायण के मुताबिक रावण का वध राम ने किया ही नहीं था।
एक वक्त की बात है। एक राजा हुआ करते थे। उनका नाम श्रेणिक था। उन्होंने जैन धर्म अपना लिया था। रामायण में बताई गई बातों को लेकर उनके मन में काफी शंकाएं थीं। इनके समाधान के लिए उन्होंने जैन गुरू गौतम को बुलाया। राजा जानना चाहते थे कि आखिर वानर जैसा जानवर समुद्र पर पुल कैसे बना सकता है और रावण जैसे शक्तिशाली राक्षस को हरा सकता है? कैसे कुंभकर्ण छह महीने तक सोया रह सकता है? और नींद भी ऐसी कैसे हो सकती है कि शरीर के ऊपर हाथी गुजर जाने, कान के पास बाजा बजाने और कानों में खौलता तेल डालने पर भी नहीं खुले? राजा को ये सब हैरान करने वाली और सच से परे बातें लगती थीं।
राजा की शंका का समाधान करने पहुंचे गुरू गौतम ने कहा कि उनका शक जायज है। ये तमाम बातें गलत हैं और बेवकूफों द्वारा फैलाई गई हैं। उन्होंने अपनी ओर से रामायण की कहानी शुरू की। दावा किया कि सच्ची कहानी यही है। उन्होंने बताया कि वानर असल में बंदर नहीं थे। वे देवताओं के अवतार थे। उन्हें विद्याधर कहा जाता था। वे किष्किंधा नगर में रहते थे। उन्हें वानर इसलिए कहा जाता था, क्योंकि वे जो ताज पहनते थे वह देखने में बंदर जैसा लगता था। इसीलिए उन्हें बंदर या वानर कहा गया। बंदर उस इलाके में पाया जाने वाला बहुत ही आम जानवर था।
यह कहानी विमलासुरी द्वारा लिखे गए पद्मचरितम के शुरुआती अध्याय में ही है। हालांकि, इसमें समय का जिक्र नहीं है। अनुमान लगाया गया है कि विमलासुरी पांचवी सदी के पहले ही रहे होंगे। जैनियों के बीच रामकथा के अनेक पारंपरिक स्रोत हैं। पद्मचरितम इनमें से एक है। यह सबसे पुराना और प्रचलित है।
बेल्जियम की घेंट यूनिवर्सिटी में पढ़ाने वाले जैन धर्म के एक्सपर्ट डॉ. इवा डि क्लार्क कहते हैं, ‘राम कथा जैनियों के बीच काफी लोकप्रिय है। पूरे भारत में जैन लेखकों ने इस बारे में दर्जनों रचनाएं लिखी हैं। ये संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश में हैं। साथ ही, कई स्थानीय भाषाओं (कन्ननड़, गुजराती और हिंदी) में भी इन्हें लिखा गया है। जैनियों की कहानी की किताबों (जैसे- वृहत्कथाकोष) में भी राम कथा लिखी गई है। जैनियों का पारंपरिक इतिहास बताने वाले जैन महापुराणों में भी इस बारे में विस्तार से बताया गया है।’
जैन रामायण की खास बात है रावण के बारे में इसमें लिखी गई बातें। जैन विद्वान और अहमदाबाद में इंस्टीट्यूट ऑफ जैनोलॉजी के मैनेजिंग ट्रस्टी डॉ. कुमारपाल देसाई कहते हैं, ‘जैन रामायण में रावण को बड़े महान और अच्छे शासक के साथ-साथ विद्वान और जैन भक्त के रूप में चित्रित किया गया है।’ इसके मुताबिक रावण राक्षस नहीं था। हनुमान और दूसरे वानरों की तरह विद्याधर था। जैन रामायण में रावण के प्रति काफी सुहानुभूति दिखाई गई है। बस उसकी एक कमजोरी बताई गई है- लालच।
जैनियों के पारंपरिक इतिहास के मुताबिक कई शाक्यपुरुष और चक्रवर्ती सम्राट हुए। बलदेव, वासदुव और प्रतिवासुदेव भी इन्हीं में थे। राम (जिन्हें पद्म के रूप में भी जाना जाता है), लक्ष्मण और रावण क्रमश: बलदेव, वासुदेव और प्रतिवासुदेव थे। ऐसे नायक हर युग में होते हैं। वासुदेव और प्रतिवासुदेव हमेशा एक-दूसरे से लड़ते रहते थे। तो इस तरह रामायण के जैन वर्जन के मुताबिक रावण को राम ने नहीं, लक्ष्मण ने मारा था।