आपातकालीन स्थिति में खरीदे गए हथियारों और सैन्य उपकरणों को कॉन्ट्रैक्ट पर हस्ताक्षर करने के एक साल के भीतर ही डिलीवर करना होगा वरना अनुबंध रद्द कर दिया जाएगा। रक्षा मंत्रालय द्वारा यह निर्णय इसके बाद लिया गया है कि पहले कई बार इमरजेंसी रूट से की गई अनेक खरीद, विशेष रूप से पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर महीनों तक चले सैन्य गतिरोध के दौरान, समय पर नहीं की गई जिससे आपातकालीन खरीद का उद्देश्य ही विफल हो गया।

इंडियन एक्सप्रेस को मिली जानकारी के अनुसार, यह रक्षा मंत्रालय द्वारा भारतीय सशस्त्र बलों के लिए महत्वपूर्ण सैन्य अधिग्रहण में तेजी लाने और उसे कारगर बनाने के लिए किए जा रहे नीतिगत बदलावों में से एक है। अधिकारियों ने बताया कि इमरजेंसी रूट से केवल बाजार में आसानी से उपलब्ध हथियार और गोला-बारूद ही खरीदे जाएंगे।

24 जून को रक्षा मंत्रालय ने आपातकालीन खरीद के पांचवें चरण के तहत 1,981.90 करोड़ रुपये के 13 अनुबंधों पर हस्ताक्षर किए , जिसमें दूर से संचालित हवाई वाहन, लोइटरिंग म्यूनिशन, ड्रोन और काउंटर-ड्रोन सिस्टम से लेकर बहुत कम दूरी की वायु रक्षा प्रणाली और रडार शामिल थे।

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रक्षा उपकरणों को कॉन्ट्रैक्ट पर हस्ताक्षर करने के एक साल के भीतर डिलीवर करना होगा

एक अधिकारी ने इंडियन एक्स्प्रेस से कहा, “इन सभी उपकरणों को अनुबंध पर हस्ताक्षर करने के एक साल के भीतर डिलीवर करना होगा और ऐसा न करने पर अनुबंध रद्द कर दिया जाएगा।” दरअसल, ऑपरेशन सिंदूर के कुछ सप्ताह बाद सरकार ने तीनों सेनाओं को आपातकालीन शक्तियां प्रदान की थीं, जिसके तहत वे अपने बजट का 15 प्रतिशत तक उपयोग गोला-बारूद और उपकरण तत्काल खरीदने में कर सकते थे। फरवरी 2019 में बालाकोट हवाई हमले और 2016 में उरी सर्जिकल स्ट्राइक के बाद तीनों सेवाओं को राजस्व खरीद के लिए आपातकालीन शक्तियां भी प्रदान की गईं। इमरजेंसी रूट का उपयोग कम समय सीमा के भीतर रक्षा उपकरणों की डिलिवरी के लिए किया जाता है।

रक्षा उपकरणों की डिलिवरी का समय कम करने की कोशिश

रक्षा सचिव राजेश कुमार सिंह ने हाल ही में कहा कि सामान्य रक्षा खरीद प्रक्रिया को दो वर्षों में पूरा करने के लिए कदम उठाए जा रहे हैं। इसके तहत वर्तमान 5-6 साल खरीद प्रक्रिया में शामिल विभिन्न चरणों की समयसीमा को अलग-अलग कम करना शामिल है। मई में एक कार्यक्रम में रक्षा सचिव ने बताया कि खरीद चक्र की कुछ समयसीमाओं में पहले ही कटौती कर दी गई है जिससे प्रक्रिया की समयसीमा में 69 सप्ताह की कटौती हो गई है।

सरकार रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया (डीएपी)-2020 को सरल बनाने की प्रक्रिया में है और अधिग्रहण प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने के लिए महानिदेशक (अधिग्रहण) की अध्यक्षता में एक पैनल का गठन किया है, जिसमें वर्गीकरण, व्यापार करने में आसानी, परीक्षणों का संचालन, अनुबंध के बाद प्रबंधन, फास्ट-ट्रैक प्रक्रियाएं और एआई जैसी नई तकनीकों को अपनाना शामिल है। पढ़ें- हाईकोर्ट ने NGO से पूछा तीखा सवाल