केंद्र सरकार के थिंक टैंक NITI आयोग अब जंगलों को पुनर्जीवित करने के लिए लिए पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) मॉडल लागू करने पर विचार कर रहा है। जानकारी के मुताबिक, प्राकृतिक जंगलों को बचाने और वनरोपण कार्यक्रम के लिए आयोग निजी कंपनियों के साथ समझौता करने के बारे में योजना तैयार कर रहा है।

द प्रिंट वेबसाइट के मुताबिक, नीति आयोग ने एक प्रेजेंटेशन में बताया कि अभी देश में जारी वन्यीकरण कार्यक्रमों का कोई वांछित प्रभाव नहीं पड़ा है। इसलिए इस क्षेत्र में भी अब पीपीपी मॉडल को लागू किए जाने की जरूरत है, ताकि निवेश को बढ़ाया जा सके और क्षमता और मैनपावर के साथ वन्यीकरण में आधुनिक तकनीक लाई जा सके।

बताया गया है कि जिन क्षेत्रों में पीपीपी मॉडल लागू किए जा सकता है, उनमें लकड़ी और गैर-लकड़ी के जंगली चीजों से तैयार किए गए उत्पाद, ईको कैंपिंग, ऑर्गेनिक खेती जैसे क्षेत्र शामिल हैं। नियमों के मुताबिक, वन्यीकरम कार्यक्रम में अभी सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियां और कोऑपरेटिव पीएसयू, राज्य सरकार के अंतर्गत आने वन विकास निगम, ग्राम सभा-पंचायत, स्वायत्त जिले और ग्राम विकास बोर्ड, एनजीओ शामिल हो सकते हैं। अगर नीति आयोग की योजना सफल रहती है, तो आने वाले समय में प्राइवेट कंपनियां भी इस लिस्ट का हिस्सा बन सकेंगी।

माना जा रहा है कि जिन कंपनियों को सरकार अपने साथ वन्यीकरण कार्यक्रम में जोड़ेगी उनमें छोटे और मध्यम स्तर के फसल काटने वाले, कॉरपोरेट और टूरिज्म सेक्टर से जुड़ी कंपनियां शामिल हो सकती हैं। पर्यावरण मंत्रालय की ओर से मिली जानकारी के मुताबिक, यह योजना अभी सिर्फ एक ड्राफ्ट है और सरकार ने इसे नीति का रूप नहीं दिया है। मंत्रालय के मुताबिक, इस योजना को इसी महीने पेश किया जाना था, पर कुछ तकनीकी खामियों की वजह से इसे नहीं दिखाया जा सका।

दूसरी तरफ एक्सपर्ट्स ने इस प्रस्ताव पर मिली-जुली प्रतिक्रियाएं दी हैं। कुछ एक्सपर्ट्स का कहना है कि बर्बाद हो रहे जंगलों पर ध्यान केंद्रित करना अच्छा है, पर निजी कंपनियों को इसमें लाना समस्या पैदा कर सकता है। हालांकि, नीति आयोग के प्रेजेंटेशन के मुताबिक, इस तरह के कार्यक्रम के लिए सभी समझौते तीन हिस्सों में होंगे। इनमें केंद्र सरकार के साथ, निजी संस्था और स्थानीय समुदाय भी शामिल होगा।